Saturday, February 25, 2012

ये कहाँ आ गए हम?

बेटमा,देपालपुर के बाद अब इंदौर.विश्वास ही नहीं हो रहा है की ये वही इंदौर है जहाँ लोग अपने पूरे परिवार के साथ आधी रात तक घूमते थे.मुझे याद है जब में ९थ में पढ़ती थी मेरे घर से दूसरी गली में रहने वाली एक सहेली के यहाँ रात में पढ़ने जाती थी.ओर रात में २-३ बजे जब पढाई ख़त्म होती तब वापस अपने घर लौट आती थी.अकेले.कभी कोई डर नहीं लगा न ही ऐसा लगा की कोई लेने आये अकेले घर कैसे जायेंगे. क्या ये वही इंदौर है???

अभी पिछले हफ्ते ही खबर आयी थी की बेटमा में दो नाबालिग लड़कियों के साथ गेंग  रेप हुआ लगभग १६- १७ लड़कों ने उन्हें फ़ोन कर के धमका कर बुलाया ओर ये कांड किया साथ ही उनका एम् एम् एस भी बना लिया.ओर तो ओर जब उनकी चीखें सुन कर कुछ किसान उन्हें बचाने आये तो वे भी इस कृत्य में शामिल हो गए. इसमें ज्यादातर रसूखदार लोगो के लड़के थे जिनकी उम्र १८ से २२ साल के बीच है.जब ये एम् एम् एस परिवार के ही लोगों के मोबाईल पर आया तब पीड़ित परिवार ने पोलिसे की शरण की.
ओर आज फिर सुबह का अख़बार मनहूस खबर लाया एक विवाहित महिला अपने पति के साथ मोतोर्कैकिल से मंदिर के दर्शन कर के लौट रही थी तब दो लोगो ने खुद को क्राइम ब्रांच का कर्मचारी बता कर उन्हें पास के ढाबे में चलने को कहा जहाँ उसके पति के साथ मारपीट हुई ओर महिला को जबरन शराब पिला कर ८ लोगो ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया. इसके साथ ही चार अन्य ख़बरें मूकबधिर से ,मंद्बुद्ध्धि से,नाबालिग से ओर दो सगी बहनों से बलात्कार की ख़बरें भी मुख्य पृष्ठ पर है.
अभी जहाँ मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री जोर शोर से बेटी बचाओ अभियान चला रही है. मध्य प्रदेश में बहन बेटियों की सुरक्षा की हालत चिंताजनक है. 
इंदौर में वैसे भी पोलिसे के भेष में ठगी करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है. लोग खुले आम वर्दी में या नकली आई कार्ड बना कर लोगो को ठगते है ओर पोलिसे उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती. इंदौर तेज़ी से बढ़ता शहर है लेकिन विकास इस कीमत पर??? आखिर कैसे लोगों के हौसले इस कदर बढ़ गए की वो इस तरह के कृत्यों को अंजाम दे देते है? क्यों लोगों में पुलिस का डर नहीं रह गया? क्यों पुलिसे ने अपने आप को इस कदर नाकारा घोषित कर दिया ??
बेटी बचाओ ,लाडली लक्ष्मी ओर कन्यायों के मामा बने मुख्य मंत्रीजी अब तो जागो?इन कन्यायों की सुरक्षा के लिए. 

Thursday, February 23, 2012

उन दिनों तुम

बहुत पहले इसी शीर्षक से एक कविता लिखी थी आज उसी कविता का दूसरा रूप प्रस्तुत कर रही हूँ http://kavita-verma.blogspot.in/2011/07/blog-post.html


लौटते ही घर 
झांक आते थे हर कमरे ,
आँगन रसोई और छत पर 
मेरी एक झलक पाने को ,
नज़रों से पुकारा करते थे मुझे
अपने पास आने को 

जब धीरे से अटका देते थे 
 कली मोगरे की मेरे बालों में 
जतन से पल्लू में छुपा कर उसे 
में  सराबोर हो जाती थी 
तुम्हारे प्यार की खुशबू से

बस यूं ही देखा करते थे 
 मुझे संवरते हुए 
 मेरे हाथ से लेकर सिन्दूर दानी 
भर देते थे सितारे मेरी मांग में 
अंकित कर देते थे 
तुम्हारे प्यार की मोहर
मेरे माथे पर 

तुम अब भी वही हो 
चाहते मुझे 
अपने अंतस की गहराइयों से 
और व्यावहारिक और जिम्मेदार 
अपने प्यार के मजबूत 
सुरक्षा चक्र से घेरे मुझे 
लेकिन न जाने क्यों 
मुझे याद आती है
तुम्हारी उँगलियों के पोरों की 
वो हलकी सी छुअन 
में याद करती हूँ 
उन दिनों के तुम . 

Friday, February 17, 2012

उपवास

शहर की व्यस्ततम सड़क पर दिनेश की कार एक ठेले  से टकराई ओर ठेले को खींचता बूढ़ा नीचे गिर गया. ओह्ह ये बूढ़े भी न बुदबुदाते दिनेश नीचे उतरा .आस पास भीड़ जमा हो गयी थी बच निकलना नामुमकिन था मौके की नजाकत देखते उसने आवाज़ को भरसक नरम बनाते हुए कहा - बाबा माफ़ कर दो गलती हो गयी .आपको ज्यादा चोट तो नहीं आयी? 
बूढा अपना मुंह गमछे में छुपाता उठ खड़ा हुआ. दिनेश ने पर्स से दो सौ रुपये निकाले ओर बूढ़े के चेहरे से गमछा हटाते उसकी ओर बढ़ाये .बूढ़े का चेहरा देखते उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी ओर उसके मुंह से बेसाख्ता निकला- बाबूजी आप? 
अपने पिता को मजदूरी  करते देख अगले ही पल उसका पारा चढ़ गया .भीड़ की परवाह किये बिना वह चिल्ला पड़ा बाबूजी आप को इस तरह मजदूरी करने की क्या जरूरत है?आप मेरी नाक कटवाने पर तुले है .क्या हम आपका ख्याल नहीं रखते? 
बूढ़े ने दोनों हाथ ऊपर उठाते जैसे अपना बचाव करते हुए धीरे से  कहा -बेटा तुम ओर तुम्हारा भाई बारी बारी से महीने के ३० दिन सब कुछ करते हो .पर इस महीने ३१ तारिख आने वाली है ओर एक पूरे दिन की भूख तुम्हारी माँ से बर्दाश्त नही होती ठेला धकाने में थोड़ी मदद कर देता हूँ तो एक समय खाने का इंतजाम हो जाता है. पर लगता है इस महीने उपवास ही करना होगा .कहते बूढ़े बाबूजी आगे बढ़ गए ओर दिनेश सर झुकाए  हाथ में थामे नोटों को देखता रह गया . 

Wednesday, February 1, 2012

मील का पहला पत्थर



प्रकाशक  बोधी प्रकाशन 

संपादक डा लक्ष्मी शर्मा 
पेपरबैक  प्रथम संस्करण जनवरी २०१२ 
प्रूष्ठ ३८४ 
मूल्य १०० रुपये मात्र (डाक से मांगने पर पैकेजिंग अवं रजिस्टर्ड  बुक पोस्ट के ५० रुपये अतिरिक्त) 



मुझे हर्ष है मेरी भी एक कविता इसमें शामिल की गयी है. 















अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...