Thursday, February 23, 2012

उन दिनों तुम

बहुत पहले इसी शीर्षक से एक कविता लिखी थी आज उसी कविता का दूसरा रूप प्रस्तुत कर रही हूँ http://kavita-verma.blogspot.in/2011/07/blog-post.html


लौटते ही घर 
झांक आते थे हर कमरे ,
आँगन रसोई और छत पर 
मेरी एक झलक पाने को ,
नज़रों से पुकारा करते थे मुझे
अपने पास आने को 

जब धीरे से अटका देते थे 
 कली मोगरे की मेरे बालों में 
जतन से पल्लू में छुपा कर उसे 
में  सराबोर हो जाती थी 
तुम्हारे प्यार की खुशबू से

बस यूं ही देखा करते थे 
 मुझे संवरते हुए 
 मेरे हाथ से लेकर सिन्दूर दानी 
भर देते थे सितारे मेरी मांग में 
अंकित कर देते थे 
तुम्हारे प्यार की मोहर
मेरे माथे पर 

तुम अब भी वही हो 
चाहते मुझे 
अपने अंतस की गहराइयों से 
और व्यावहारिक और जिम्मेदार 
अपने प्यार के मजबूत 
सुरक्षा चक्र से घेरे मुझे 
लेकिन न जाने क्यों 
मुझे याद आती है
तुम्हारी उँगलियों के पोरों की 
वो हलकी सी छुअन 
में याद करती हूँ 
उन दिनों के तुम . 

8 comments:

  1. एक - एक पल को बड़ी ही सुन्दरता से व्यक्त किया है
    बहुत ही सुन्दर मनमोहक रचना है ..
    :-)

    ReplyDelete
  2. ज़िन्दगी एक सी नहीं चलती...सबमें कुछ परिवर्तन होता जाता है...नयापन अच्छा लगता है...इसलिए बदलना ज़रूरी है...दोनों को एक दूसरे के लिए...

    ReplyDelete
  3. कोमल एहसासों से भरी सुंदर अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  4. .मन में उतर जाती हैं आपकी कवितायें...

    ReplyDelete
  5. कोमल भावो की अभिवयक्ति......

    ReplyDelete
  6. भावों की सुदर प्रस्तुति,
    अहसासों को किस तरह शब्दों में बांधा जाए, ये आप से सीखना चाहिए।

    ReplyDelete
  7. कविता जी हमेशा नयी सुबह यादगार बन जाती है !इस कविता की रौनक सभी के दिलो में उभर आई होगी ! जीती-जागती सच से प्रोत कविता ! बहुत - बहुत बधाई

    ReplyDelete
  8. सच में कुछ पल कभी नहीं भूलते...कोमल अहसासों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...