Friday, February 17, 2012

उपवास

शहर की व्यस्ततम सड़क पर दिनेश की कार एक ठेले  से टकराई ओर ठेले को खींचता बूढ़ा नीचे गिर गया. ओह्ह ये बूढ़े भी न बुदबुदाते दिनेश नीचे उतरा .आस पास भीड़ जमा हो गयी थी बच निकलना नामुमकिन था मौके की नजाकत देखते उसने आवाज़ को भरसक नरम बनाते हुए कहा - बाबा माफ़ कर दो गलती हो गयी .आपको ज्यादा चोट तो नहीं आयी? 
बूढा अपना मुंह गमछे में छुपाता उठ खड़ा हुआ. दिनेश ने पर्स से दो सौ रुपये निकाले ओर बूढ़े के चेहरे से गमछा हटाते उसकी ओर बढ़ाये .बूढ़े का चेहरा देखते उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी ओर उसके मुंह से बेसाख्ता निकला- बाबूजी आप? 
अपने पिता को मजदूरी  करते देख अगले ही पल उसका पारा चढ़ गया .भीड़ की परवाह किये बिना वह चिल्ला पड़ा बाबूजी आप को इस तरह मजदूरी करने की क्या जरूरत है?आप मेरी नाक कटवाने पर तुले है .क्या हम आपका ख्याल नहीं रखते? 
बूढ़े ने दोनों हाथ ऊपर उठाते जैसे अपना बचाव करते हुए धीरे से  कहा -बेटा तुम ओर तुम्हारा भाई बारी बारी से महीने के ३० दिन सब कुछ करते हो .पर इस महीने ३१ तारिख आने वाली है ओर एक पूरे दिन की भूख तुम्हारी माँ से बर्दाश्त नही होती ठेला धकाने में थोड़ी मदद कर देता हूँ तो एक समय खाने का इंतजाम हो जाता है. पर लगता है इस महीने उपवास ही करना होगा .कहते बूढ़े बाबूजी आगे बढ़ गए ओर दिनेश सर झुकाए  हाथ में थामे नोटों को देखता रह गया . 

16 comments:

  1. सामयिक और मार्मिक लघुकथा

    ReplyDelete
  2. बहुत ही मार्मिक एवं भावुक कर देने वाली लघुकथा...
    बधाई......
    नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

    ReplyDelete
  3. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  4. बंहुत बढि़या।

    ReplyDelete
  5. सभ्य समाज का यही असली चेहरा है। सच कहूं तो ऐसे चेहरों पर नकाब पड़ा ही रहे तो ज्यादा बेहतर है, तथाकथित बडे चेहरों से नकाब हटा तो इतना बदबूदार चेहरा सामने आएगा कि इससे बाकी समाज के भी दूषित हो जाने का डर बना रहेगा।

    ReplyDelete
  6. मार्मिक लघुकथा
    आपको पढना वाकई सुखद अनुभव है।

    ReplyDelete
  7. आधुनिकता की क़यामत है ! करारी चोट ! बहुत - बहुत बधाई !

    ReplyDelete
  8. बहुत कुछ सोचने पर विवश करता है ..

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छा लेखन है आपका.महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  10. दुखद...
    मगर
    कड़वा सच...

    ReplyDelete
  11. बहुत दुखद चित्र दिखाया कविता जी, पर कुछ हद तक सच भी है.

    महाशिवरात्रि की मंगलकामनाएँ.

    ReplyDelete
  12. ये माँ बाप हीं हैं जो बच्चों को बद्दुआ नहीं दे पाते...

    ReplyDelete
  13. दुखद,मार्मिक कथा की बेहतरीन प्रस्तुति,...

    MY NEW POST ...काव्यान्जलि...सम्बोधन...

    ReplyDelete
  14. दर्द भरी दास्तान पर एक खूबसूरत सन्देश हुई सार्थक रचना |

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

नर्मदे हर

 बेटियों की शादी के बाद से देव धोक लगातार चल रहा है। आते-जाते रास्ते में किसी मंदिर जाते न जाने कब किस किस के सामने बेटियों के सुंदर सुखद जी...