Wednesday, September 30, 2009

भीड़ तंत्र


 स्कूली दिनों में शायद मेरी नागरिक शास्त्र की शिक्षिका बहुत अच्छी थीं या मैं ही बहुत लगन से पदती थी जो मैंने आम भारतीय के मौलिक अधिकारों के बारे में बहुत अच्छे से न सिर्फ़ पढ़ा बल्कि कंठस्थ भी कर लिया। इसीलिए अपने अधिकारों के प्रति सजग रहते हुए ग़लत बात के लिए बोल पड़ती हूँ .अब देखो न कालोनी के बाहर जाने वाला एकमात्र रास्ता खुदा पड़ा है कालोनी के करीब पन्द्रह बच्चे रोज गिरते-पड़ते वहां से निकलते हैं , मेरे भी बच्चे रोज ही करतब करते हैं .एक और रास्ता भी है पर उसे तो करीब छ महीनों से उस रोड पर बनने वाली कालोनी के मालिक ने बंद कर रखा है । सभी के बच्चे घूम कर गिरते पड़ते जा रहे हैं .
सिर्फ़ मेरा ही नागरिकबोध जाग पड़ा पहुँच गयी एक दिन सरपंच के पास सारी समस्या सुनाने। बड़ा भला आदमी है सरपंच भी तुंरत मुझे कुर्सी दी चाय मंगवाई पूरी  बात ध्यान से सुनी और तुंरत मुरम के डम्पर वाले को फ़ोन किया .कालोनी वाले को भी फ़ोन पर कहा भैया सड़क खोल दो लोगों को तकलीफ होती है .
मैडम दो तीन दिन में आपका काम हो जाएगा यदि न हो तो मुझे बताना।
 दसियों बार धन्यवाद दिया उन्हें, कितना भला आदमी है अब तो रोड खुल ही जायेगी .जिनके बच्चे गिरते पड़ते जाते थे उन्हें भी आश्वासन दे दिया चिंता मत करो दो चार दिन में सब ठीक हो जाएगा.
आज छ  महीने बाद भी बच्चे गिरते-पड़ते स्कूल जाते हैं कालोनी का काम अपनी गति से चल रहा है रास्ता बंद है क्योंकि कालोनी के मालिक का भी तो मौलिक अधिकार है रोज याद करने की कोशिश करती हूँ मौलिक अधिकार हर व्यक्ति को होता है या  सिर्फ उस व्यक्ति का जिसके पीछे पच्चीस-पचास की भीड़ हो .

15 comments:

  1. itani gambhir samasya ko blog par dalkar bhi apne shayad ise uchchadhikariyon ko post nahi kiya, aur agar kiya to is par koi comment n aana bhi sharm ki bat hai. aap isko ek baar phir anek patrkaron aur patron ko bhejiye.

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  2. संवेदना की सक्रिय परिणीति सराहनीय है !

    ये दुनिया ऐसी ही है ... सब कुछ मिला-जुला है : भीड़-समस्या, राजनीति-छलकूट, कोलोनाइजर-सरपन्च, अधिकार-कर्तव्या, कोलोनी-श्रमदान ....

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  3. प्रश्न उठाया आपने क्या मौलिक अधिकार?
    धनबल जनबल है जिसे उसकी है सरकार।।

    लेकिन डरना है नहीं कोशिश करें हजार।
    मिलता है संघर्ष से जो मौलिक अधिकार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. मुद्दे की बात की आपने। दर-असल हम आश्वासनों के आदी हो चुके हैं फिर भी उम्मीदें बांधना नहीं छोड़ते। या उम्मीदें हैं इसलिए आश्वासन पर शांत हो जाते हैं। खैर्। उम्मीदे हैं तो हौसले हैं, हौसले हैं तो जिंदगी है। तो फिर क्यों न इस हौसले से कुछ ऐसा करें कि उसे गड्ढे को पाटा जा सके। क्या ख्याल है आपका?

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  5. बहुत अच्छा प्रयास है। यह जागरुकता ही आवश्यक है और उम्मीद पर दुनिया कायम है लिखते रहिये आपका स्वागत है...

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  6. बहुत अच्छा लेख है। ब्लाग जगत मैं स्वागतम्।
    http://myrajasthan.blogspot.com

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  7. ब्लॉग जगत में स्वागत और बधाई

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  8. आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत ख़ुशी हुयी !
    आशा है आगे भी आप ऐसी ही पठनीय रचनाएं लिखती रहेंगी !
    पुनः आऊंगा !

    हार्दिक शुभ कामनाएं !

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  9. हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.....
    इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं

    www.samwaadghar.blogspot.com

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  10. aap sabhi ne ek chote se prayas ko jis tarah hatho hath liya uske liye aabhri hu.ye sach mein umeed se jyada hai.is housala afjahi ke liye tahe dil se shukriya.kavita

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  11. shyaamal suman jee--अगर संघर्ष से ही मिला तो वह मौलिक अधिकार कहाँ हुआ ? यह, राजा- सरकार की पूर्ण विफलता या अनैतिक होने का प्रतीक है |

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  12. esme follow up ki jarurat jayada rehati hai.Aajkal begar follow up ke kahi kam hi nahi hota hai .

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