चार साल की मासूम से बलात्कार , खबर देखते ही मन कसैला हो गया.
दीदी दरवाजा लगा लो,बाई ने जाते हुए आवाज़ दी तो टीवी के सामने से उठना ही पड़ा.बाहर आते हुए बिटिया के कमरे में नज़र गयी वो अपनी किताबों में सर झुकाए बैठी थी. बाहर ठंडी हवा के झोंकों ने रोक लिया तो वंही झूले पे बैठ गयी.सामने चोकीदार के बच्चे बबूल के पेड़ पर टायर का झूला बाँध कर झूल रहे थे.उनके उस झूले पर झूलने की किलक उन्हें अनमोल खजाना मिलने की खुशी बरसा रही थी. तभी एक हाथ में एक लकडी पकडे साइकिल के टायर के साथ दौड़ते एक बच्चे ने उनके मन को दौडा कर उस छोटे से गाँव की गलियों में पहुँचा दिया .कच्ची सड़क पर नदी पहाड़ खेलता लड़कियों का वो झुंड ,खेलते खेलते गाँव की सीमा पर पहुँच जाया करता था ,वहां कबड्डी खेलते लड़कों को देखते ,अपना खेल भूल कर उनके खेल के जोश में शामिल हो जाता था,कभी खेलते खेलते नदी तक पहुँच कर शिव मन्दिर में जंगली फूल चढ़ा कर पास होने से ले कर नयी ड्रेस मिलने की और सहेली की दीदी की शादी तक की मन्नत मांग ली जाती थी.न घर जाने की जल्दी होती थी न चिंता .कभी मन करता तो कंचे छुपा कर नदी तक लाये जाते और वहीं खेले जाते .गाँव में उन्हें कंचे खेलते देख लड़कों का झुंड इकठ्ठा हो जाता और उनके अनाडीपन का खूब मजाक बनाया जाता.एक मीठी से मुस्कराहट उनके होंठों पर फैल गयीऔर उनकी तंद्रा टूटी.उठ कर अन्दर आयी बिटिया अभी पढ़ रही थी उसे देख कर उन्हें अपनी सुहानी बचपन की यादों पर ग्लानी होने लगी अभी थोडी देर पहले ही तो उन्होंने उसे बाहर खेलने जाने को मना किया था आज की ख़बर देखते देखते.
कविता वर्मा
दीदी दरवाजा लगा लो,बाई ने जाते हुए आवाज़ दी तो टीवी के सामने से उठना ही पड़ा.बाहर आते हुए बिटिया के कमरे में नज़र गयी वो अपनी किताबों में सर झुकाए बैठी थी. बाहर ठंडी हवा के झोंकों ने रोक लिया तो वंही झूले पे बैठ गयी.सामने चोकीदार के बच्चे बबूल के पेड़ पर टायर का झूला बाँध कर झूल रहे थे.उनके उस झूले पर झूलने की किलक उन्हें अनमोल खजाना मिलने की खुशी बरसा रही थी. तभी एक हाथ में एक लकडी पकडे साइकिल के टायर के साथ दौड़ते एक बच्चे ने उनके मन को दौडा कर उस छोटे से गाँव की गलियों में पहुँचा दिया .कच्ची सड़क पर नदी पहाड़ खेलता लड़कियों का वो झुंड ,खेलते खेलते गाँव की सीमा पर पहुँच जाया करता था ,वहां कबड्डी खेलते लड़कों को देखते ,अपना खेल भूल कर उनके खेल के जोश में शामिल हो जाता था,कभी खेलते खेलते नदी तक पहुँच कर शिव मन्दिर में जंगली फूल चढ़ा कर पास होने से ले कर नयी ड्रेस मिलने की और सहेली की दीदी की शादी तक की मन्नत मांग ली जाती थी.न घर जाने की जल्दी होती थी न चिंता .कभी मन करता तो कंचे छुपा कर नदी तक लाये जाते और वहीं खेले जाते .गाँव में उन्हें कंचे खेलते देख लड़कों का झुंड इकठ्ठा हो जाता और उनके अनाडीपन का खूब मजाक बनाया जाता.एक मीठी से मुस्कराहट उनके होंठों पर फैल गयीऔर उनकी तंद्रा टूटी.उठ कर अन्दर आयी बिटिया अभी पढ़ रही थी उसे देख कर उन्हें अपनी सुहानी बचपन की यादों पर ग्लानी होने लगी अभी थोडी देर पहले ही तो उन्होंने उसे बाहर खेलने जाने को मना किया था आज की ख़बर देखते देखते.
कविता वर्मा
तो सन्देश क्या है? बन्धन तो तब भी media ही था और् अब भी - और बेचारा मन ही बन्दी है. बस अवतार बदल गये है - तब भी ये बाते आती जाती थी ... कभी देवला के साथ तो कभी कनाठे बहनजी के साथ - अब आती है भास्कर और TV पर. वो हम थे और हमारा परिवार जिसने मन को टायर के चक्के की तरह हर उस दिसा मै दौड्ने की आजादी दी, जहा से उसे लौटाना सम्भव था. Media को अपनो के बीच आने देना क्या उचित है ?
ReplyDeleteयही बात अगर आपकी माताजी ने सोच कर आपको भी गर से बाहर ना निकलने दिया होता तो क्या आज आप ये पंक्तिया लिख पाती?
ReplyDeleteबच्ची को कहाँ- कहाँ रोक पायेंगी आप? आज बच्ची को खेलने से रोक लेंगी आप लेकिन कल उसे स्कूल- कॉलेज भी जाना होगा! बेहतर यही होगा कि आप बिटिया को थोड़ी बड़ी होने पर आत्मरक्षा के तरीके (मसलन जूडो-कराटे)सिखायें।
बिटिया को स्नेह।
गर= घर**
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