तुम सुंदर हो खुद को आइने में देखो और खुद को जानो।
तुम माधुरी नहीं मधु हो और मधु बनकर नाचो किसी और की तरह क्यों होना चाहती हो।
शादी में ये भारी लंहगे सांस रोकने वाले टाइट ब्लाउज क्यों पहनाए जाते हैं?
आपके और पापा के बीच क्या चल रहा है आप उनसे बात क्यों नहीं करतीं जाइये उनसे बात करिये।
मुझे अपना अधिकार चाहिये मुझे उससे मिलना है जिसने आपको मुझसे छीन लिया है।
सेक्स के लिए शादी करना क्यों जरूरी है?
एक दूसरे के अच्छे दोस्त बने रहने के लिए एक दूसरे का साथ देने के लिए शादी करना क्यों जरूरी है?
शास्त्रीय गायन की बंदिशों में नायिका गोरी खूबसूरत ही क्यों होती है वह साधारण क्यों नहीं हो सकती?
शादीशुदा महिलाएँ सेक्स करते हुए आर्गेज्म को महसूसती हैं?
क्या शादी सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए की जाती है?
ऐसे बहुत सारे प्रश्न उठाता नाटक #लेडीजसंगीत कल इंदौर में यूनिवर्सिटी आडिटोरियम में रसभारती के आयोजन में प्रस्तुत किया गया। मुंबई के बाइस कलाकारों द्वारा प्रस्तुत इस संगीतमयी प्रस्तुति में एक शादी के लेडीज संगीत की तैयारी के दौरान इन गंभीर प्रश्नों को उठाया गया।
रसभारती द्वारा आयोजित दिये गये समय से लगभग चालीस मिनट बाद शुरू हुए इस नाटक लेडीज संगीत में गीत संगीत हँसी मजाक के द्वारा मुख्यतः महिलाओं के प्रति समाज की सोच और उस सोच में ढली महिलाओं का खुद की सीमा तय कर एक खुशहाल जिंदगी जीने के पीछे छुपे दर्द और प्रश्नों को उभारने का प्रयास हुआ।
गाँव की हवेली में दादी की जिद के चलते पारंपरिक शादी में वेडिंग प्लानर द्वारा की गई व्यवस्था और उसके बीच उभरते इन प्रश्नों का सामना करते दर्शक कहीं कहीं अनावश्यक लंबे खींचे गये दृश्यों को शांति से देखते रहे। स्त्री शरीर के अंगों को मादकता और पुरुषों को लुभाने वाले हथियार के रूप में प्रयोग करने वाले कुछ दृश्य बाडी शेमिंग की तरफ कब बढ गये यह शायद कलाकार और डायरेक्टर समझ नहीं सके या शायद हास्य को अश्लील बनाकर परोसने के लोभ में उस हद को पार कर गये।
गीतों के साथ आगे बढ़ते इन प्रश्नों के जवाब पाने की कोशिश की गई। पुराना सभी अच्छा और नया सब खराब नहीं है इसे स्थापित करने का प्रयास कथावस्तु पर हावी रहा। हालाँकि दादी द्वारा शास्त्रीय संगीत की बंदिशों का गायन और पोती द्वारा उन्हें नये अंदाज में गाना और इस दौरान दादी का धैर्य पोती का अधैर्य बेहद रोचक रहा।
कोरोना काल के बाद संभवतः यह पहली नाट्य प्रस्तुति थी जिसे सराहा जाना चाहिए लेकिन कुछ मुद्दे इंदौर जैसे शहर के दर्शकों द्वारा हजम किये जाना मुश्किल ही था जैसे बेटी का माँ से सेक्स के आर्गेज्म तक पहुंचने बाबत पूछना या पच्चीस साल के वैवाहिक जीवन के बाद पति का गे होना अविश्वसनीय परिस्थितियां बनाता गया और दर्शकों की रुचि कम करता गया।
नाटक में कुछ तथ्यात्मक गलतियाँ भी थीं जो अखरने वाली थीं।
नाटक के बीच मध्यांतर ने भी इस लय को तोड़ा। बहुत सारे मुद्दों को समेटने के कारण किसी एक को समग्रता से नहीं उठाया जा सका। बहरहाल कुछ संवादों गीतों और बंदिशों ने ध्यान आकर्षित किया।
मंच और लाइट का इस्तेमाल अच्छा हुआ। कलाकारों द्वारा लाइव गायन ने आकर्षित किया संगीत भी अच्छा था।
कविता वर्मा
#लेडीजसंगीत
#हिन्दी_नाटक
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