आज आपको दर्शन करवाते हैं खरगोन के प्राचीन नवग्रह मंदिर के। खरगोन नगर में प्रवेश करते ही बांई ओर कुन्दा नदी के किनारे एक प्राचीन मंदिर का शिखर दिखाई देता है। बगल से गुजरती अति व्यस्त सड़क के किनारे लेकिन उससे निस्पृह यह मंदिर पिछली यात्राओं में भी आकर्षित करता रहा लेकिन जाना नहीं हुआ।
आज सुबह मंदिर जाने का तय किया। मंदिर के बाहर काफी जगह है वहाँ गाड़ी खड़ी करके एक परकोटे से घिरे आंगन में पहुंचे जिसे काफी उम्रदराज नीम इमली के पेड़ अपनी छाया में लिये हुए थे।
मंदिर की सीढ़ियाँ चढकर ऊपर पहुँचे तब तक भी अंदाजा नहीं था कि कहाँ जा रहे हैं। एक छोटी सी दहलान जिसके बांई ओर छोटे छोटे मंदिर बने थे। मोटी दीवार छोटे दरवाजे वाले इन मंदिरों में अति प्राचीन पत्थर की मूर्तियाँ थीं। महालक्ष्मी मंदिर शिव मंदिर जिसमें शिव की गोद में कार्तिकेय श्री राम परिवार राम सीता लक्ष्मण भरत और हनुमान की मूर्ति। इसके बाहर एक खूबसूरत कांस्य शिव मूर्ति थी। इन छोटे-छोटे मंदिर के सामने दांई ओर एकदम खड़ी सीढ़ियाँ नीचे उतर रही हैं। ये बारह सीढियाँ बारह राशी की प्रतीक हैं।
नीचे गर्भगृह में दीवार पर बने आले में आठ ग्रहों की मूर्तियाँ उनके नाम वाहन और मंडल की जानकारी के साथ उनके स्तुति श्लोक लिखे हैं।
बीच में सभी गृहों के स्वामी सूर्य और उनके पीछे उनकी अधिष्ठात्री बगलामुखी देवी की प्रतिमा थी। माँ बगलामुखी की यह पीताम्बरा पीठ है। सूर्य अपने रथ पर सवार हैं। इनके पीछे दीवार के ऊपरी सिरे पर एक तिरछा छेद है जिसमें से जून जुलाई में जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होता है तब सूर्य की किरणें सूर्य रथ पर पड़ती हैं।
मंदिर से बाहर जाने का रास्ता दूसरी ओर है यहाँ भी बारह सीढियाँ हैं जो बारह मास चैत्र वैशाख.... फागुन की प्रतीक हैं।
ये सीढ़ियाँ एक और छोटे से कमरे में खुलती हैं जहाँ शनि राहू-केतु की मूर्तियाँ हैं जिन पर भक्त तेल तिल उडद चढ़ा सकते हैं। इसी कमरे के एक ओर छोटे झरोखे हैं जिनसे कुन्दा नदी के दर्शन होते हैं।
यहाँ मंदिर से संबंधित कई खबरों की पेपर कटिंग फोटो और मंदिर के इतिहास की जानकारी है। यह लगभग छह सौ साल पुराना मंदिर है। इस में प्रवेश के लिए सात सीढ़ियाँ हैं जो सात वार की प्रतीक हैं।
नवग्रह की हमारे सभी धार्मिक और प्रकृति के त्योहार में बड़ी मान्यता है। इस मंदिर में भी संक्राति शिवरात्रि शनि जयंती आदि पर भव्य आयोजन होता है।
सबसे अच्छी बात है कि मंदिर अभी भी अपने प्राचीन स्वरूप में है और यहाँ पर्यटक नहीं दर्शनार्थी आते हैं। मंदिर का वातावरण बेहद शांत है। आप दर्शन करते हैं उस शांति को अपने भीतर महसूस करते हैं और उन लोगों की परिकल्पना को सराहते हैं जिन्होंने छह सौ साल पहले इस मंदिर का निर्माण करवाया।
कविता वर्मा
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