सिक्किम यात्रा (नाथुला पास )
नाथुला पास वाले ट्रिप में तीन ही पॉइंट्स होते हैं छंगू लेक नाथुला पास और बाबा मंदिर। अब वापसी का समय था। मौसम बहुत ठंडा हो गया था। सेना के कैंटीन की चाय समोसे जम चुके थे। ठंडी हवा हड्डियों को भी जमा चुकी थी। दरअसल गंगटोक दिन में पहुँचे थे तब मौसम गरम था शाम को थोड़ी ठण्ड हो गई थी और हम उसी हिसाब से साधारण ठण्ड के कपडे पहने थे जो अब और गरम रखने में असमर्थ साबित हो रहे थे।
वापसी का सफर शुरू हो गया थोड़ी ही देर बाद गाड़ी फिर रुक गई चाय नाश्ते के लिये। हमारा पेट तो भरा ही था और ज्यादा चाय पीने की आदत नहीं है इसलिए हमने फिर कदमताल करने का विचार बना लिया। ड्राइवर को बताया और निकल पड़े। रास्ता उतार का था तो मेहनत भी नहीं करना पड़ रही थी और मज़ा भी आ रहा था। शहर में गाड़ियों की भीड़ से त्रस्त लोगों के लिए खाली साफ सुथरी सड़कें किसी वरदान से कम नहीं लगतीं।
तभी एक गाड़ी पास आकर रुकी ड्राइवर ने कहा आगे मिलिट्री एरिया है वहाँ की फोटो ना खींचें। सच अभिभूत हो गई स्थानीय लोगों की अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति सजगता देखकर। अगर यही सजगता हर प्रदेश में हर नागरिक में हो तो देश की आधी से ज्यादा समस्याएं खुद बखुद ख़त्म हो जाएँ। हमने भी अच्छे नागरिक होने की जिम्मेदारी समझी और कैमरा अंदर रख दिया। चलते चलते गर्मी आ गई थी और रुकने का मन ही नहीं हो रहा था कब डेढ़ दो किलोमीटर तय कर लिए पता ही नहीं चला जब हमारी गाड़ी आकर रुकी तो ड्राइवर ने पूछा बैठोगे या पैदल ही आ जाओगे ? मन तो वाकई नहीं था गाड़ी में बैठने का पर पचास किलोमीटर चलने की हिम्मत भी नहीं थी।
रास्ते में फिर छंगू झील के पास से निकले पानी को बादलों ने ढँक लिया था। अब चढ़ाई शुरू हो गई और थोड़ी ही देर में हम बादलों के बीच से गुजर रहे थे। ट्रेकिंग की भाषा में इसे व्हाइट आउट होना कहते हैं जिसमे आप बादलों से इस तरह घिरे हों कि आगे पाँच दस किलोमीटर भी न दिखे। उस समय यही हाल था सड़क किस ओर मुड़ रही है यह भी नहीं दिख रहा था घाटी बादलों से भर गई थी लेकिन गाड़ी उसी रफ़्तार से चल रही थी। ये तो मानना पड़ेगा वहाँ ड्राइवर्स बेहद एक्सपर्ट हैं। बिना हॉर्न टेड़े मेढे संकरे रास्ते पर गाड़ी चलाना ओवरटेक करने साइड देने में नियमों का पालन करना। ये तो बाद में पता चला कि तय समय में मिलिट्री एरिया से बाहर नहीं आने पर ड्राइवर पर पाँच हजार का जुर्माना होता है।
थोड़ा और नीचे उतर आये थे व्हाइट आउट ख़त्म हो गया अब आपस में बातें शुरू हुई। चार अलग अलग प्रदेशों से आये दस लोग अब एक मित्र मंडली से हो गए थे।
मैंने ड्राइवर रुस्तम खवासी से पूछा इस रास्ते पर कभी कोई हादसा हुआ है जैसे गाड़ियों की टक्कर या कोई गाड़ी खाई में गिरी हो ?
ऐसा तो कुछ नहीं हुआ लेकिन 2011 की बात है मैं टूरिस्ट लेकर नाथुला पास आया था आठ टूरिस्ट को लेकर आया था वो साउथ के थे उन्हें मेरी भाषा समझ नहीं आती थी। कुछ कुछ समझते थे तो मानते नहीं थे। घूमने आये हैं तो पूरा पैसा वसूल कर लें।
उस दिन मौसम अजीब हो चला था बाबा मंदिर पर मैंने कहा जल्दी करो वो नहीं माने। रास्ते में गाड़ी के सामने चट्टान गिरी पीछे देखा तो पीछे भी चट्टान गिरी थी गाड़ी बीच में फंस गई। थोड़ी देर में अंधेरा हो गया गंगटोक शहर की लाइट बंद थी। न कोई आर्मी का ट्रक न जवान कुछ समझ नहीं आया क्या हुआ। सारी रात गाड़ी में बैठे रहे टूरिस्ट रोते रहे। सुबह सात बजे सबको गाड़ी से निकाला चारों तरफ पहाड़ गिरे हुए थे रास्ते बंद थे। पैदल चलना शुरू किया और शाम को सात बजे सभी के साथ गंगटोक पहुंचे तब पता चला भूकंप आया है और बहुत लोग मारे गये हैं। 2011 के उस भूकंप के निशान बाद में भी सिक्किम में कई जगह देखने को मिले।
पहाड़ों पर कई जगह रंगबिरंगी झंडियाँ लगी थीं जो बौद्ध मतावलंबी लगाते हैं। इन झंडियों पर मंत्र लिखे होते हैं और मान्यता है कि जब ये हवा से लहराते है मंत्र भी हवा की लहरों पर सवार हो दूर दूर तक पहुँचते हैं। एक पहाड़ पर एक कतार में सफ़ेद झंडे लगे थे। पता चला जब किसी की मृत्यु हो जाती है उसके नाम पर उसके परिवार वाले 108 सफ़ेद झड़े लगाते हैं इन पर भी मंत्र लिखे होते हैं और ये मृत आत्मा की शांति के लिये हैं। रंगीन झंडियां घर की शांति के लिए लगाई जाती हैं। मैंने पूछा बौद्ध धर्म में मृतक का अंतिम संस्कार कैसे होता है ? दाह संस्कार ही होता है पर बौद्ध धर्म में मरना बहुत मंहगा होता है। मरने के समय के अनुसार साइत देखी जाती है उसके अनुसार निर्णय होता है कि संस्कार कितने दिन बाद होगा। तीन पांच सात ग्यारह दिन बाद या कभी कभी कभी तो महीने भर बाद। तब तक शव घर में रहता है और बौद्ध भिक्षु को रोज़ बुलाकर मंत्र पाठ करवाया जाता है। दो से पाँच सात भिक्षु रोज़ आते हैं एक भिक्षु का एक दिन का खर्च दो से पांच हजार तक होता है। बौद्ध धर्म में मरने का खर्च बहुत होता है। मैंने कहा इसका मतलब है जिंदगी भर कमाओ और अपने मरने के लिये जमा करो।
हाँ शादी का खर्च ज्यादा नहीं होता। शादी घर में या मोनेस्ट्री में हो जाती है। कोई जब तक साथ रहना चाहे ठीक है नहीं तो अपना साथी बदल ले या अलग हो जाये।
दिसंबर में सिक्किम में बौद्ध उत्सव होता है जिसमे याक का गोश्त और वहाँ के अन्य व्यंजन बनते हैं। स्थानीय रहवासी हिंदी इंग्लिश बंगाली भूटिया भाषा बोलते और समझते हैं।
एक बड़ी दिलचस्प चीज़ हर गाड़ी में देखी। गाड़ी के डेश बोर्ड पर बौद्ध हनुमान शंकर या किसी अन्य देवी देवता की मूर्ती हो उसमे एक या दो नोट (रुपये ) फंसा कर रखते हैं शायद मान्यता हो रूपया रूपये को खींचता है। खैर मैंने पूछा नहीं कभी कभी आस्थाओं की व्याख्या ना करना ना पूछना ही ठीक होता है।
शाम साढ़े पाँच तक हम लोग गंगटोक वापस पहुँच गये थे। इतने जल्दी होटल जा कर भी क्या करते तो टहलते हुए एम जी रोड चले गये। नाथुला पास एक यादगार सफर की यादों को संजोते हुए देर तक माल रोड की रौनक देखते रहे।
कविता वर्मा
क्रमशः
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’घबराएँ नहीं, बंद नोटों की चाबुक आपके लिए नहीं - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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