(9th day )नाथुला पास।
अगले दिन सुबह नाथुला पास जाना था भारत चाइना बॉर्डर जो पूर्व सिक्किम गंगटोक जिले में पड़ती है। गंगटोक से 80 किलो मीटर दूर लगभग 14140 फ़ीट की ऊंचाई पर है जहाँ जाने के लिये शेयर्ड टैक्सी भी मिलती हैं और प्राइवेट टैक्सी भी। लगभग हर होटल में टूरिस्ट एजेंसी के एजेंट मौजूद होते हैं जो बुकिंग करते हैं। बुकिंग के साथ ही दो फोटो और पहचान पत्र की एक कॉपी देना होती है। वहाँ जाने के लिए पहले परमिट बनवाना पड़ता है जो एजेंट करवा देते हैं।
गंगटोक का टैक्सी स्टैंड जो शहर के बीचों बीच है बहुत ही बढ़िया लगा। कम जगह में बेहतरीन व्यवस्था। यह एक तीन मंजिला टैक्सी स्टैंड है हर मंजिल पर जाने के मेन रोड से अलग अलग रास्ते जो अंदर भी सीढ़ियों से जुड़ा है। हर मंजिल पर एक रेस्टॉरेंट और टॉयलेट।
परमिट बनते बनते 10 /11 बज ही जाते हैं। साढ़े ग्यारह तक स्टैंड लगभग खाली हो जाता है और लोकल टैक्सी या प्राइवेट गाड़ियों की पार्किंग के काम आता है। शाम को जो टैक्सी जल्दी आती हैं यहीं सवारी उतारती हैं पर रात में यहाँ कोई गाड़ी खड़ी नहीं रहतीं सब अपने मालिक या ड्राइवर के घर के सामने सड़क किनारे लेकिन व्यवस्थित तरीके से खड़ी होती हैं। रात आठ बजे तक हर सड़क के एक किनारे गाड़ियों की कतार मिलती है जो सुबह साढ़े सात बजे तक हटा कर फिर स्टैंड पर पहुँचा दी जाती हैं। गंगटोक में टैक्सी ड्राइवर का पार्किंग सेंस इतना अनुशासित है कि आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते। खास कर विशाल मैदानी इलाकों में रहने वाले जो जगह और पार्किंग की कमी की शिकायत करते हैं पर ना नियमो का पालन करते हैं ना ही अपनी आदतें सुधारते हैं।
शहरी सीमा पार करते ही गाड़ी खुले पहाड़ी रास्ते पर बढ़ चली। एक ओर आसमान में फख्र से सिर उठाये ऊँचे पहाड़ तो दूसरी ओर अपनी विनम्रता की मिसाल देती गहरी खाईयाँ। पहाड़ों से झरते झरने अपनी ओर ललचा रहे थे। एक चेकपोस्ट पर गाड़ी रुकी तो पानी की बोतल लेने का विचार किया। कीमत तीस रुपये सुन कर रुक गई। मेरा मन तो झरने का शुद्ध शीतल जल पीने का हो रहा था लेकिन उन तक पहुँचना मुश्किल था। फिर सोचा अभी तो आधी बॉटल पानी है जब ज्यादा पैसे देना ही है तो ऊपर ही देंगे इतनी दूर संभालना नहीं पड़ेगा।
चाय नाश्ते के लिये गाड़ी रुकी तो सामने ही बहुत बड़ा एक झरना था लेकिन बहाव तेज़ और पहुँचने का रास्ता उबड़ खाबड़ इसलिए मन मसोस कर रह जाना पड़ा। अच्छी बात ये है कि पूरे सिक्किम में पेड टॉयलेट हर जगह हैं और उसके अलावा कहीं गाड़ी रोकने से ड्राइवर मना कर देते हैं। अपने टूरिस्ट की बात के ऊपर अपने प्रदेश की साफ सफाई को तरजीह देना बहुत बड़ी बात हैं। वैसे अपवाद सभी जगह देखने को मिलते हैं वही आदत से लाचार लोग।
साफ़ सुथरी सड़कें नीला आसमान मिलिट्री एरिया की सुरक्षा मन मचल ही गया पैदल चलने को। हमने ड्राइवर से कहा हम पैदल चलते हैं आप चलोगे तो रास्ते से हमें ले लेना। ड्राइवर हंसमुख था बोला आप छूट गये तो मेरी जिम्मेदारी नहीं।
मैंने हँसते हुए कहा "आपने परमिट चेक करवाया था ना आठ लोगों को लेकर आये थे छह को वापस लेकर जाओगे तो सेना आपको पकड़ लेगी कि आपने दो लोगों को बॉर्डर पार करवा दी। "
थोड़ी दूर ही चले होंगे कि एक और झरना मिल गया यह कम प्रवाह वाला और कुछ आसान पहुँच वाला था। मैंने झट से बॉटल निकली उसमे बचा पानी ख़त्म किया और थोड़ी मशक्कत के बाद पतिदेव बॉटल भर लाये। ठंडा मीठा पानी जो किसी भी कंपनी के पैक पानी को मात करता है। हवा ठंडी थी पर धूप की गुनगुनाहट उसे भला बना रही थी क्यों न हो आखिर प्रकृति के अवयव एक दूसरे के हाथ में हाथ डाले ही चलते हैं। हम लगभग आधे पौन किलोमीटर आ गए थे कई गाड़ियाँ निकलती जा रही थीं और अब हमें डर लगा कहीं सच में हम छूट तो नहीं गये ? वहाँ से कोई खाली गाड़ी कोई टैक्सी भी नहीं मिलने वाली थी सब गिनती के पैसेंजर लेकर आती हैं और किसी के पास खाली सीट नहीं होती। ओवर लोडिंग वहाँ होती नहीं। आगे खड़ी चढ़ाई थी इसलिये अब हम रुक कर अपनी गाड़ी का इंतज़ार करने लगे।
रास्ते में कई जगह सेना के कैंप हैं जहाँ फोटोग्राफी निषिद्ध है। परमिट चेक करने के लिए गाड़ियों को थोड़ी ज्यादा देर रुकना पड़ता है। पहाड़ों के बीच जहाँ भी थोड़ी जगह थी वहाँ टीन के शेड और बैरक बने थे। गाड़ियाँ हथियार से लैस। कई जगह रास्ते में बोर्ड लगे थे चीनी निगरानी क्षेत्र। गलबंद गरम कपड़ों से लैस जवान मुस्तैदी से अपने काम में जुटे थे। लगातार ठंडी हवाओं ने चेहरे की त्वचा को झुलसा कर काला कर दिया था लेकिन ड्यूटी के आगे इसकी चिंता किसे है ? मैं सोचने लगी जब ये जवान छुट्टी में घर जाते होंगे तब ही शायद ध्यान जाता होगा इस ओर।
यात्रा का पहला पड़ाव था छंगू लेक (झील ) Tsomgo lake जो 14310 फ़ीट ऊँचाई पर है। पहाड़ों से घिरी इस प्राकृतिक झील तक पहुँचते बादल छाने लगे थे ठण्ड बढ़ गई थी। इतनी ऊंचाई पर पहाड़ों पर वनस्पति कम होने लगी थी। झील को जगह देने के लिए यहाँ पहाड़ पीछे खिसक गए हैं और बीच में झील और पर्यटकों के लिए बड़ी सी जगह छोड़ दी गई है। झील में मछलियाँ हैं और 51 फ़ीट गहरी यह झील ठंडों में पूरी तरह जम जाती है। यहाँ सजे धजे याक लिये स्थानीय रहवासी याक पर फोटो खिंचवाने का आग्रह करते हैं।
आगे बढते ऊपर हुए बार बार झील दिखती है और हम देखते जाते हैं साफ सुथरे स्थिर पानी पर पहाड़ों का प्रतिबिम्ब मन मोह लेता है। पचास साठ फ़ीट ऊपर से भी उथली सतह के पत्थर दिखते हैं तब अनछुई प्रकृति की सुंदरता गहराई से महसूस होती हैं।
नाथुला पास करीब आ रहा था ठण्ड बढ़ने लगी थी गाड़ी में भी हाथ में मोबाइल और कैमरे की अनुमति नहीं थी। पास के करीब हर मोड़ पर चार बाय चार के केबिन के बाहर मुस्तैदी से मशीनगन थामे जवान खड़ा था। संभवतः लोगों को फोटो खींचने से रोकने के लिए यह तैनाती थी। यह इलाका चीनी निगरानी क्षेत्र में आता है इसलिए यह सावधानी जरूरी है।
गाड़ी से उतरते ही ड्राइवर ने कहा अपने मोबाइल कैमरे गाड़ी में छोड़ जाइये जवानों ने देख लिए तो जब्त हो जायेंगे फिर वापस नहीं मिलेंगे। मैंने बैग से सिर्फ पानी की बॉटल निकाली और बैग भी गाड़ी में छोड़ दिया। पार्किंग से लगभग ढाई तीन सौ फ़ीट चल कर बार्डर थी। ठण्ड बहुत बढ़ गई थी बादल आसपास उतर आये थे हवा में ऑक्सीजन की कमी थी। ड्राइवर ने कह दिया था ज्यादा देर मत रुकना नहीं तो तबियत ख़राब हो जाएगी अधिकतम एक घंटे। कई महिलाएं और बच्चे हांफ रहे थे कई अपर्याप्त गरम कपड़ों में थे तो कइयों ने पर्याप्त कपड़ों के बावजूद उन्हें ठीक से नहीं पहना था। जैकेट की जिप खुली थी सिर नहीं ढँका था साँस लेने में तकलीफ के बावजूद लोग बच्चों को चढ़ा रहे थे या उनके मुँह पर स्कार्फ नहीं लपेटा था।
जहाँ दोनो देशों के दरवाजे हैं उनके बीच महज पंद्रह बीस फ़ीट की दूरी है इसे देखने के लिए खुली टैरेस जैसी जगह है। टैरेस पर दीवार ऐसी है जैसे दो छतों के बीच दीवार होती है। दो जवान दुश्मन देश पर नज़र रखे तैनात थे तो पाँच छह जवान भारतीय पर्यटकों पर नज़र रखे थे जो किसी न किसी तरह नज़र बचा कर फोटो लेने की फ़िराक में थे। जब वे पकडे जाते अजीब अजीब तर्क देने लगते हम इतनी दूर से इतना खर्च करके आये हैं ,अपने दोस्तों को दिखाने के लिए फोटो चाहिये और कई तो अपने पद पैसे और पहुँच की धौस देने से भी नहीं चूके। जिस ठण्ड में हम बमुश्किल घूम पा रहे थे और एक घंटे बाद वापस चले जाने वाले थे वहाँ उन जवानों की लोगों से बहस मशक्कत देख सिर शर्म से झुक गया। सिविलियन को सिविक सेन्स सीखने की बहुत जरूरत है सिर्फ मंहंगे कपडे जूते गाड़ियाँ इस्तेमाल करने से ही सभ्य नहीं कहलाया जा सकता। पिंक फिल्म की तर्ज पर No को विस्तार से परिभाषित करने की आवश्यकता है। मैंने हंसते हुए एक जवान से कहा जितनी चौकसी आपको दुश्मन देश चीन की नहीं करनी पड़ती उससे ज्यादा तो अपने देश के लोगों की करना पड़ती है। वहाँ दो जवान काफी हैं यहाँ पांच जवान लगे हैं।
चाइना बॉर्डर में ख़ामोशी छाई थी मैंने वहाँ मौजूद जवान से पूछा चाइनीज़ लोग नहीं आते बॉर्डर देखने ?
कभी कभी आते है पर सिर्फ 40 /50 लोग ही आते हैं। अब पता नहीं ऐसा कम आकर्षण के कारण है या नीतियों के कारण।
लगभग चालीस मिनिट में ही ठण्ड से हमारी हालत ख़राब थी। वहीँ दो टेंट में सेना ने मेडिकल हेल्प और कैंटीन बनाया हुआ था। कैंटीन में गरमा गरम कॉफ़ी समोसे और मोमो मिल रहे थे। तीन चार टेबल कुर्सी लगी थीं लोग ठंड से राहत पाते खाते चाय-कॉफी पीते और चल देते।
सेना का एक जवान बार बार लोगों से आग्रह कर रहा था कि डस्टबिन का उपयोग करें। लोग खुद से यह भी नहीं सोच सकते कि इतनी ऊंचाई पर बार्डर पर उनके कप प्लेट उठाने के लिए कौन नौकर लगे होंगे?
गरम कॉफ़ी पी कर थोड़ी राहत मिली हम लोग वापस गाड़ी पर आ गये। अगला पड़ाव था बाबा मंदिर यानि बाबा हरभजन श्रीन का मंदिर। बाबा हरभजन सेना में थे जो रसद ले जाते हुए पहाड़ी झरने में बह गए थे और घटना स्थल से दो किलोमीटर दूर उनका शव मिला। कहते हैं उन्होंने अपने साथियों को सपने में दर्शन दे कर अपने शव की स्थिति बताई थी। सेना ही मंदिर की व्यवस्था देखती है। यहाँ पास की एक पहाड़ी पर एक बड़ी सी शिव प्रतिमा स्थापित है जिसके पीछे बड़ा सा झरना बहता है। पहाड़ों में जो जगह बड़े पास दिखती हैं वो पहुँचने में बड़ी दूर होती हैं। हमने वहाँ जाना कैंसिल किया और ठंडी हवा उतरते बादल के बीच फोटोग्राफी का मज़ा लिया।
कविता वर्मा
पहाड़ी यात्राएं कठिन तो होती हैं लेकिन मजा भी बहुत आता है..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "एक मिनट की लम्बाई - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसिक्किम का स्वभाव सिक्किम का प्रभाव मन में बहुत गहरा बैठता है वहां के लोग बड़े सहज सरल और साफ सुथरे मन के हैं सफाई के प्रति उनका आग्रह सराहनीय है
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