Wednesday, July 15, 2015

व्यापमं घोटाला

कल एक पुरानी स्टूडेंट से बात हुई वह एक साधारण परिवार की ब्रिलियंट स्टूडेंट थी।  उसका सपना था डॉक्टर बनना और हम सभी टीचर्स को पूरा विश्वास था कि उसका सेलेक्शन हो जायेगा। दो बार कोशिश करने पर भी जब उसका सेलेक्शन नहीं हुआ हम सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने भी इसे अपनी किस्मत मान कर बी एस सी करते हुए ट्यूशन लेना शुरू कर दिया।  उसके पढ़ाये बच्चे जब एग्जाम में बेहतरीन करते वह दिल से खुश होती थी लेकिन जब से व्यापम घोटाला उजागर हुआ है वह बहुत निराश है।  कल मिलते ही पूछने लगी "मैडम मेहनत और ईमानदारी का जो पाठ हमें स्कूल में पढ़ाया गया था क्या वो गलत था ?मुझे तो इसका कोई सुफल नहीं मिला।  जो सीट मैं डिज़र्व करती थी वह किसी और ने पैसों के दम पर खरीद ली। समय के साथ मेरा सपना तो टूट ही गया। अब सपने मेहनत से नहीं बेईमानी और पैसे के बल पर पूरे किये जाते हैं।" मैं अनुत्तरित थी लेकिन उसकी निराशा ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। 
आरक्षक भर्ती सेवा में चयनित होने के लिये अजय से जब पाँच लाख रुपये की माँग की गई तो वह इस कदर हतोत्साहित हो गया कि उसने सारी कोशिशें छोड़ चाय का ठेला लगा लिया।
 छात्र अभिषेक का कहना है उसके परिवार ने उसकी पढाई के लिए अपनी सारी संपत्ति दांव पर लगा दी।  
जिस तरह व्यापम घोटाला परत दर परत खुल रहा है और जिस तरह व्यापम घोटाले के आरोपी और गवाह मौत के मुँह में समा रहे हैं उससे आम जन हतप्रभ है।  पूरी कहानी जो अभी पूरी नहीं हुई है और पता नहीं कब और कैसे पूरी होगी पूरी होगी भी या नहीं लेकिन इसने नैतिक मूल्यों और साहस पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। 

कहाँ छूट गया शिक्षा का मूल उद्देश्य 

एक टीचर के रूप में मैं सोचने लगी हूँ एजुकेशन सिस्टम में बेहतरी के लिए बदलाव करते करते हम वहाँ पहुँच गये जहाँ शिक्षा का मूल उद्देश्य ही गायब हो गया है ? शिक्षा का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों को विषय विशेष में शिक्षित करके उन्हें एक अच्छा नागरिक बनाना है। अच्छा नागरिक से अभिप्राय है ऐसा नागरिक जिसमे नैतिक मूल्य नैतिक साहस हो। यही शिक्षा किसी राष्ट्र के विकास और खुशहाली के लिए आवश्यक है।  आज इस विषय को ही विलोपित कर दिया गया है।  शिक्षा का अर्थ किसी भी तरीके से स्वयं को आगे रखना है।  हर उस चीज़ को पाना है जिसकी  चाह है चाहे उसके लिए कोई भी राह अख्तियार करना पड़े।  मेहनत ईमानदारी जैसे शब्द कहीं पीछे छूट गए हैं।  

हम कर लेंगे से ज्यादा हम पा लेंगे का विश्वास 

आज छोटे छोटे बच्चे भी हर क्षेत्र में जुगाड़ लगा कर पा लेने में विश्वास करते हैं।  आश्चर्य होता है इन आधुनिक धृतराष्ट्रों पर। अपनी मेहनत से पाई सफलता से अपने बच्चों के लिए आसान सफलता खरीदने वाले ये माता पिता क्या वाकई इनके शुभचिंतक हैं ? क्या वाकई ऐसा प्यार जता कर वे इन्हे जिंदगी की जंग में उतरने के लिए तैयार कर रहे हैं ?
सॉल्वर के माध्यम से मेडिकल में प्रवेश पाये कितने ही विद्यार्थी अपना प्रथम वर्ष भी पार नहीं कर पाये हैं।  उन बच्चों की मानसिक उलझन अवसाद को समझने की कोशिश भी उनके माता पिता ने की है या वे उन्हें यही (दुः ) साहस देते रहे हैं कि हम सब संभाल लेंगे तुम चिंता मत करो लेकिन कब तक ? 

तोड़ी है उम्मीद 
शिक्षा का व्यवसायीकरण करके प्रायवेट स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी बनने से इसे बिकाऊ तो कई सालों पहले बना दिया गया था लेकिन तब ये सभी के लिए बिकाऊ हुई।  स्कूलों की मोटी फीस यूनिफार्म स्टेशनरी का खर्च सभी के लिए एक सामान था। इसके बाद डोनेशन कॉलेजों के दौर में अपनी काबिलियत से स्थान पाने वालों के बाद कुछ सीट्स बेचीं जाती थीं लेकिन तब भी स्टूडेंट्स का मेहनत के प्रति विश्वास बना रहता था।  इस घोटाले ने तो सारा सिस्टम ही उलट दिया है जिसमे पहले खरीददारों का नंबर आता है उसके बाद काबिलियत का।  इस सब ने मेहनत , लगन , धीरज जैसे गुणों की हिम्मत तोड़ दी है। 

छींटे सभी पर आये हैं। 
व्यापम घोटाला जिस तरह से पूरे देश की सुर्खी बनी है , जिस तादाद में बड़े रसूखदार नाम इसमे शामिल हैं व्यापम एक ऐसे कीचड़ भरे बदबूदार तालाब की तरह हो गया है जिससे होकर गुजरने वाला इससे अछूता माना ही नहीं जा सकता।  चूंकि इसकी शुरुआत आठ से दस साल पहले हो गई थी इसलिए पिछले चार पाँच सालों पहले अपनी मेहनत से पास हुए बच्चों की काबिलियत पर भी ऐसा सवालिया निशान लग गया है जिससे निजात पाना उनके लिए आसान ना होगा।  खुद को हमेशा संदेह से देखा जाना , कमतर आँका जाना बेहद दुखदायी है।  

क्या है भविष्य ?
अब इन घोटालों के खुलने और अपने बच्चों के साथ आरोपी बनाये जाने वाले और जेल जाने वाले ये पालक क्या जिंदगी में कभी एक दूसरे से आँख मिला पाएँगे ? इस तरह अपना करियर और जीवन तबाह करने के लिये क्या ये बच्चे अपने माता पिता को माफ़ कर पाएँगे ? इनके जेहन में क्या ये प्रश्न नहीं उमड़ेगा कि हम तो बच्चे थे आप तो माँ बाप हैं अनुभवी हैं अच्छा बुरा सही गलत समझते हैं फिर क्यों आपने इतनी गलत राह चुनी जो कभी किसी मंजिल पर ही नहीं पहुँचती।  

क्या दाग अच्छे हैं ? 
राजनैतिक बात करें तो जिस तरह लालू यादव के नाम के साथ चारा , मायावती के साथ अंबेडकर पार्क , जयललिता के साथ अनुपात हीन संपत्ति जुड़ गए हैं उसी तरह शिवराज चौहान के साथ व्यापम का नाम जुड़ गया है।  इस राजनैतिक जीवन में इस दाग को किसी सर्फ़ से धोया नहीं जा सकता।  यह दाग जो जानबूझ कर लगाया गया हो या अनदेखी करते अब इतना बड़ा और भद्दा हो गया है साथ ही इसमे पड़े लाल छींटों ने इसे वीभत्स बना दिया है कि जनमानस से इसे मिटाया नहीं जा सकता।  
कविता वर्मा

12 comments:

  1. बहुत सही कहा....कविता जी

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  2. बिना दाग के होना
    भी कोई होना है
    बहुत साफ होने
    वाले का होना
    अब मतलब कहीं
    का भी नहीं होना है ।

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  3. अब नैतिक शिक्षा अर्थ हीन हो गया है ,जब दागी ही शिक्षा मंत्री हो तो शिक्षा की क्या दशा होगी ?

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  4. बहुत सही कहा कविता जी । ये घोटाले एक दस्तावेज हैं न केवल शिक्षा में आती जारही मूल्यहीनता के बल्कि लोगों की स्वार्थपूर्ण मानसिकता के भी ।

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  5. बहुत सही कहा कविता जी । ये घोटाले एक दस्तावेज हैं न केवल शिक्षा में आती जारही मूल्यहीनता के बल्कि लोगों की स्वार्थपूर्ण मानसिकता के भी ।

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  6. बहुत सही कहा कविता जी । ये घोटाले एक दस्तावेज हैं न केवल शिक्षा में आती जारही मूल्यहीनता के बल्कि लोगों की स्वार्थपूर्ण मानसिकता के भी ।

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  7. सही आकलन !मंगलकामनाएं आपको

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  8. sach kaha aapne....ghotalon ke aadhar pe khada apna desh kbtk apne ko sambhal payega.....sarthak aalekh.

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  9. वर्तमान तुम्हारे प्रांगण में हर चीज बिकाऊ हो गयी।

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  10. वर्तमान तुम्हारे प्रांगण में हर चीज बिकाऊ हो गयी।

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