बरसात
मड़िया में बैठा रामभरोसे झमाझम बारिश होते देख रहा था। बरसती हर बूँद के साथ उसका मन प्रफुल्लित होता जा रहा था। मन ही मन प्रार्थना करते उसने कहा। बरखा मैया ऐसे ही दो चार दिन बरसियो फसल को अमृत पिला दियो जा बेर तुम्हरी मेहर रही तो बिटिया के हाथ पीले कर दूंगो। बरखा रानी भी उसकी प्रार्थना को अनसुना कहाँ कर पाई ऐसे झूम कर बरसी की खेत खलिहान नदी बन गए।
रामभरोसे मड़िया में बैठा बरखा रानी को कोस रहा है जा दारी बरसात ने सब कुछ बहा डालो सबरी फसल गल गई खेत में नदी की कीचड़ भर गई हे आग लगे ऐसी बरसात के। भगवान इस साल तो खाबे को अन्ना मिल जाये बहुत है। बिटिया की किस्मत पर पानी फेर डारो।
गरीब की सुनवाई किस रूप में होती है ये तो जग जाहिर है। अगले बरस रामभरोसे मड़िया में बैठे आसमान ताक रहा है बादल का नमो निशान नहीं है एक बरसात के बाद खेतों में बीज डाल दिया था फसल पानी की आस में मुरझा गई है और रामभरोसे बिटिया की किस्मत को कोस रहा है।
कविता वर्मा
सच गरीब पर सबसे ज्यादा और सबसे पहले मुसीबत आती हैँ
ReplyDeleteसही कहा...
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