बचपन से वह उस पहाड़ी को देखती आ रही थी। उबड़ खाबड़ रास्ते फैले झाड़ झंखाड़ और फिसलन के बीच से उसकी चोटी पर वह बड़ा सा पत्थर सिर उठाये खड़ा था। मानों चुनौती दे रहा हो दुनिया को है हिम्मत इन दुर्गम रास्तों को पार कर मुझ तक पहुँचने की ?आसमान को छू लेने की ?
उसने भी हमेशा सपना देखा था एक दिन वह वहाँ तक जरूर पहुँचेगी लेकिन इतना आसान तो ना था।
रास्ते के छोटे पत्थरों से रोड़े तो उसकी पढाई में भी आये।लोगों की कंटीली बातें ताने सुन कर उनसे अपने आत्मविश्वास को लहूलुहान होने से बचाते उसने नौकरी शुरू की। पुरुष मानसिकता की कीचड भरी फिसलन में खुद को संभालते संभालते आज जब उसका प्रमोशन ऑर्डर हाथ आया उसका मन चोटी की उस बड़ी चट्टान पर उछल कर मानों आसमान को छू रहा था।
कविता वर्मा
म्हणत सफल हो तो उम्मीद भी जागती है ... आशावान भाव लिए ..
ReplyDeleteवाह कविता जी बहुत अच्छी उड़ान थी ये
ReplyDeleteऔर ऊँचाई मिलें ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर इस सन्दर्भ में २०१० में "संघर्ष की सुखद अनुभूति" नाम से लिखी कविता टिप्पणी के रूप में प्रस्तुत कर रही हूँ। .
ReplyDeleteआशा और निराशा के बीच
झूलते-डूबते-उतराते
घोर निराशा के क्षण में भी
अविरल भाव से लक्ष्य प्राप्ति हेतु
आशावान बने रहना बहुत मुश्किल
पर नामुमकिन नही
होता है इसका अहसास
सफलता की सीढ़ी-दर-सीढ़ी
चढ़ने के उपरांत
चिर प्रतीक्षा चिर संघर्ष के बाद
मिलने वाली हर ख़ुशी बेजोड़ व अनमोल है
क्योंकि इसकी सुखद अनुभूति
वही महसूस कर सकता हैजिसने
हर हाल में रहकर अपना सघर्ष जारी रखकर
कोशिश की सबको साथ लेकर
निरंतर बने रहने की
कभी भाग्य के भरोसे नहीं बैठे
लगे रहे कर्म अपना मानकर
और सफलता के मुकाम पर पहुचे
सगर्व, सम्मान
तभी तो कहा जाता है
आदमी अपने भाग्य से नहीं
अपने कर्म से महान होता है
छोटी-छोटी लड़ाईयां जीतने के बाद ही
कोई बड़ी जंग जीतता है
बढ़िया
ReplyDelete