Tuesday, June 2, 2015

इस प्रयास को समर्थन मिले

शांति प्रिय और सुरक्षित माने जाने वाले शहर इंदौर में पिछले कुछ दिनों में जो घटनाएँ घटीं वे इस शहर की छवि से कतई मेल नहीं खातीं। जिस तरह शहर में गुंडा गर्दी बढ़ रही है शराब और ड्रग्स के नशे में सरे राह लोगो पर कातिलाना हमले हो रहे हैं वह शहर की फ़िज़ा में चिंता घोलने के लिए काफी थे ही उस पर एक और खबर ने लोगों को ना सिर्फ चौंका दिया बल्कि हर लड़की के माता पिता को चिंता में डाल दिया। गुंडों के डर से एक परिवार को अपनी बेटियों को शहर में ही हॉस्टल में भेजना पड़ा। जब वे अपने माता पिता से मिलने आईं तो वे गुंडे फिर उनके घर में आ धमके और लड़कियों से छेड़ खानी शुरू कर दी और उन के माँ बाप पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। शहर में गुंडा विरोधी अभियान के तहत पुलिस की कार्यवाही को कई न्यूज़ चैनल्स ने सनसनी खबर के तौर पर दिखाया जिसमें गुंडों की सरे आम पिटाई की गई उनका जुलुस निकाला गया। पुलिस के इस कदम पर सवालिया निशान लगाये गए की क्या उसे ऐसे अधिकार हैं ?क्या मानव अधिकारों का उलंघन नहीं है ?मुख्यमंत्री का ये बयान की पुलिस कार्यवाही में कोई राजनैतिक हस्तक्षेप नहीं होगा ने हंगामा ही बरपा दिया। विरोधियों ने तो यहाँ तक कहा कि सरकार गुंडा गर्दी पर उतर आई है। 
पहले भी कई परिवारों ने कबूला है कि वे गुंडा गर्दी से बचाने के लिए अपनी बेटियों की पढाई छुड़वा कर उन की कम उम्र में शादी करने को मजबूर हुए हैं। 
इंदौर जैसे शहर में गुंडों के हौसले रातों रात तो नहीं बढ़ गए।  स्वाभाविक है पिछले काफी समय से या तो इन्हे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाये गए या राजनैतिक प्रश्रय से इनके लिए उपजाऊ जमीन तैयार की गई , और जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तब इन पर लगाम लगाने की कवायदें की गई। 
इंदौर में लिंगानुपात का अंतर प्रांत के कई पिछड़े जिलों से से भी काफी अधिक है। ये वो जमीनी हकीकत है जो सरकार की बालिकाओ के लिए चलाई जा रही कई योजनाओं के बाद है। क्या माना जाये कि लोगों में व्याप्त भय उन्हें लिंग परिक्षण के लिए बाध्य कर रहा है ? लड़कियों का जन्म लेना उसके बाद उनकी परवरिश सुरक्षा जैसे मुद्दों पर माता पिता की चिंता स्वाभाविक है। पुलिस प्रशासन उन्हें सुरक्षा देने में बुरी तरह नाकामयाब रहा है। 
अभी जब गुंडा विरोधी अभियान चलाया गया जिसमे गुंडों की उन्ही के इलाकों में पिटाई करके उनका जुलुस निकाला गया इस पर देश भर में एक बहस शुरू हो गई । इसे अनैतिक और बर्बर कार्यवाही करार दिया गया तो कहीं इन गुंडों के मानवाधिकारों की बात भी कही गई। ये शोर मचाने वाला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या तो जमीनी हकीकत से बिलकुल अनजान है या इससे आँखें मींचे बस खबरे और बहस चला कर वाहवाही बटोरना चाहता है। 
ये हमारे देश की विडम्बना है कि यहाँ गैर कानूनी कामों में लिप्त लोगों के जीने के अधिकारों की जोरदार पैरवी करते समय हमारा प्रबुद्ध वर्ग आम आदमी के शांति से जीने के अधिकार को भूल जाता है। उन लड़कियों और उनके परिवारों के उन सपनों को भूल जाता है जो इन गुंडों के कारण असमय दम तोड़ देते हैं। 
पुलिस भी जानती है कि हमारी लचर कानून व्यवस्था इन्हे हफ्ते भर भी कैद में नहीं रख पायेगी और बाहर आ कर ये सवा शेर हो जायेंगे इसलिए इन्हे इन्ही के इलाके में पीट कर और इनका जुलुस निकाल कर इन्हे ये सन्देश देने की कोशिश की जा रही है कि ये कानून से ऊपर नहीं है और लोगों में उनके खौफ को कम करने का एक प्रयास है जिसे हर इंदौरी का समर्थन मिलना ही चाहिए। 
कविता वर्मा 

3 comments:

  1. jawalt mudde ko aap uthai hain...or jo ho raha hona hi chahiye...samadhan to prashan ko krna chahye...umda lekh.

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  2. जरूरी है । सुंदर आलेख ।

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  3. जब क़ानून कमजोर होगा .. ऐसी व्यवस्था जरूरत सी लगने लगती है ...

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