मैरिज हाल के बाहर लगभग रोज़ ही जूठन का ढेर लगता था। आसपास की बस्तियों के बच्चे बूढ़े अौरतें बाहर खड़े हो कर इंतज़ार ही करते थे कि कब अंदर खाना पीना शुरू हो कब ख़त्म हो और कब वे अपनी क्षुधा शांत करने के लिए जूठन पाएं जो कि उनके लिए बहुत बड़ी नेमत थी। जूठन के लिए यदा कदा उन लोगों में झगड़ा मारपीट तक हो जाती; इसलिए जिसके हाथ जो आ जाता उसे लेकर वहां से दूर भागता ताकि ठीक से खा सके।
वह बच्चा उस दिन शायद बहुत भूखा था लेकिन अकेला था बहुत कोशिशों के बाद भी वह भीड़ को चीर कर खाने के लिए कुछ नहीं जुटा पाया तो रुआँसा सा भीड़ से दूर गली के कोने पर जा कर खड़ा हो गया और ललचाई दृष्टी से छीना झपटी करते लोगों को देखने लगा। एक बारगी तो लगा कि उस को आज भूखे ही रहना होगा। भगवान के इंसाफ पर शक होने लगा एक बेबस की भूख के लिए कोई जुगाड़ नहीं। तभी गली के छोर से दो लड़के हाथ में खाने का पैकेट लेकर गुजरे उनका पेट भर चुका था उन्होंने बचा हुआ खाना गली में फेंक दिया। वह बच्चा तुरंत उस पर झपटा और मिटटी पड़े खाने को वहीँ से खाने लगा।
एक बारगी भगवान के इन्साफ पर यकीन हुआ कि हर भूखे के लिए भोजन मुक़र्रर किया है ये बात अलग है कि लोग दूसरों के हिस्से पर कब्ज़ा कर उसे बर्बाद कर देते हैं इसलिए कुछ लोग भूखे रह जाते हैं।
कविता वर्मा
जो समृद्ध हैं...वो दूसरे के हिस्से का खा रहे हैं...और जिम में पचा रहे हैं...या डॉक्टर की फ़ीस भरने में लगे हैं...
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