Thursday, February 27, 2014

पीड़ा


कहाँ थीं तुम सारी रात ?जलते हुए प्रश्न में किसी अनहोनी की चिंता के स्थान पर अविश्वास की छाया पा कर सुराली के कदम एक पल को ठिठके। मन में क्षोभ उत्पन्न हुआ बीस बरस के साथ का विश्वास एक रात में चुक गया। मन हुआ एक तीखा सा उत्तर दे लेकिन फिर खुद को रोक लिया और अंदर चली गयी। 
अविश्वास की जिस कटार से उसका दिल छलनी हुआ है जवाब ना मिलने से उपजी आशंका की पीड़ा उसे भी तो झेलने दो ,फिर तो अभी भाई आ कर बता ही देंगे कि माँ के पास हॉस्पिटल में थी वह सारी रात।
कविता वर्मा 



4 comments:

  1. अविश्वास कि पीड़ा को बहुत अच्छे से व्यक्त किया है...
    बहुत बेहतरीन..

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  2. अधूरी सी किन्तु कहानी कहती

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  3. अविश्वास मन को छलनी कर देता है ...!

    RECENT POST - फागुन की शाम.

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