गली के नुक्कड़ पर जब से पान की दुकान खुली है मोहल्ले के लड़कों को ठिया मिल गया। सुबह से शाम तक मज़मा लगा रहता ,बातें और ठहाके गूंजते रहते। हालांकि किसी ने कोई ऐसी वैसी बात या हरकत नहीं की थी लेकिन फिर भी लड़कियाँ और औरतें वहाँ से गुज़रते हुए सिर और नज़रें झुका लेतीं। मोहल्ले के बड़े बूढ़े उनकी हँसी पर कुढ़ते रहते।
एक सुनसान दोपहर किसी लड़की की चीख़ के साथ दौड़ने भागने चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई दीं तो लोग दरवाज़े खोल कर बाहर आ गये, सभी को आशंका थी कि इन लड़कों ने किसी को छेड़ा होगा ,ये तो होना ही था।
तभी एक लड़का मोहल्ले की एक लड़की को उसके घर तक छोड़ कर तेज़ी से वापस भागा। लड़की ने रोते हुए बताया बाज़ार से एक लड़का उसका पीछा करते हुए मोहल्ले तक आ गया। नुक्कड़ पर खड़े लड़कों ने उसे फब्तियाँ करते सुना तो सबने मिलकर उसकी पिटाई कर दी और उन्ही में से एक भैया उसे हिफाज़त से घर तक छोड़ने आये। सब हतप्रभ थे।
कविता वर्मा
अक्सर हम समझने में भूल कर लेते हैं .......कांच समझते हैं और वो हीरा होता है
ReplyDeletesabhi bure nahi hote...par aksaran yesa hi hota hai.....bahut achhe..
ReplyDeleteबहुत खूब …
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteऐसा भी होता है ... बिना जाने कुछ भी मत बनाना शायद इसलिए ही ठीक नहीं होता ..
ReplyDeleteअक्सर ऐसा ही समझा जाता है पर सभी एक जैसे नही होते, भले लडके भी रहते हैं.
ReplyDeleteरामराम.,
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteनई पोस्ट : दर्द सहा नहीं जाता
nishabd kar diya kavita ji
ReplyDeleteTime is great for recognition.wel
ReplyDeleteयह बात तो है मूहोल्ले के लड़को को अक्सर हम गलत ही समझते है। हाँ यह बात अलग है कि वह अपने मुहोल्ले कि किसी लड़की को अपनी बहन माने या ना माने मगर बाहर का कोई आकर वहाँ कि किसी लड़की को छेड़े यह उनसे बरदाश नहीं होता। :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (18-02-2014) को "अक्ल का बंद हुआ दरवाज़ा" (चर्चा मंच-1527) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति हार्दिक शुभ कामनाये
ReplyDeleteज्यादातर ऐसा ही होता है
ReplyDeleteवैसा करने वाले कम होते हैं
वैसे पर लिखना बिकता है
ऐसे को कोई नहीं पूछता है :)
सुंदर !
अक्सर हम समझने में गलती करते हैं
ReplyDeleteअच्छी लघु कथा !