एक बात बार बार कही जा रही है कि मौसम विभाग ने दो दिन पहले ही भारी बारिश की चेतावनी दे दी थी मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के कारण बादल फटने की कोई चेतावनी नहीं दी गयी थी ये अचानक आयी विपदा है जो तीन साल पहले लेह में आयी थी और अब उत्तराखंड में . बादल फटने जैसे हालात बने कैसे ?पहले इस तरह की विपदा यदा कदा आती थीं अब इनकी आवृति अचानक कैसे बढ़ गयी ? इसके पीछे कुछ सूक्ष्म कारण हैं जिन पर गौर किया जाना जरूरी है .
हमारे कई धार्मिक स्थल सुदूर पहाड़ों पर हैं इसे आमजन की आस्था कहें यात्रा का जूनून या सैर सपाटे के साथ पूण्य प्राप्ति की चाह धार्मिक स्थलों पर हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ बढती जा रही है .बढ़ी भीड़ के साथ ही इन स्थानों पर सुविधाओं की चाह भी बढ़ गयी है .पहाड़ काट कर होटल बनाये जा रहे हैं होटल के कमरों में टी वी, ए सी जैसी सुविधाओं की मांग भी बढ़ गयी है .लोग इन सुविधाओं के लिए पैसा देने को तैयार हैं और लोग कमाने को राजी है लेकिन किस कीमत पर ?
पहाड़ों पर बने होटल्स से गंदे पानी की निकासी के लिए कोई समुचित व्यवस्था नहीं है ये पानी पहाड़ों से बहता हुआ नीचे घाटी में कहीं किसी नदी नाले में मिल जाता है इस गंदे पानी से उत्पन्न अम्ल पहाड़ियों का क्षरण करता है .ठण्ड से बचने के लिए ए सी लगातार गर्मी उत्पन्न करने वाली गैसे उत्सर्जित करते हैं जिससे पहाड़ों के मौसम पर धीमा लेकिन खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है .
सुविधा के नाम पर पहाड़ों पर रास्ते बन गए हैं जिन पर लगातार गाड़ियाँ दौड़ती रहती हैं जिससे होने वाला कम्पन चट्टानों को भी हिला देता है नतीजतन भूस्खलन तेज़ और अधिक होने लगा है .
याद करें मैहर के मन्दिर की पहाड़ी को .पहले वहाँ ऊपर तक जाने के लिए सड़क बनाई गयी लेकिन गाड़ियों के कम्पन से उस पहाड़ी को खतरा होने लगा फिर उस सड़क को बंद किया गया अब वहाँ रोप वे बनाया गया जिस पर लोग घूमने मज़े लेने के लिए आते हैं .आखिर को रोप वे भी चलता तो मोटर से ही है उससे भी तो कम्पन पैदा होता ही है जिसके दूरगामी परिणाम अभी आने बाकी हैं . होना तो ये चाहिए की ये सुविधा वृद्ध अशक्त बीमार लोगों के लिए मुहैया करवाई जानी चाहिए बाकी लोग तो श्रद्धा की शक्ति से ऐसे ही चढ़ सकते हैं .
तीसरा बड़ा कारण है धार्मिक स्थलों पर मोबाइल फोन का उपयोग .सभी जानते हैं मोबाइल फोन के उपयोग से इलेक्ट्रो मेग्नेटिक तरंगें निकलती हैं जिनसे उत्पन्न गर्मी से मौसम पर असर पड़ता है . मानते हैं अपनों से संपर्क रखना जरूरी है लेकिन क्या पर्यावरण की कीमत पर अपनी जान की कीमत पर ? होना तो ये चाहिए की पहाड़ों पर मोबाइल फोन का उपयोग बिलकुल बंद किया जाए इसके बजाय राज्य सरकार वहां अपनी फोन सुविधा प्रदान करे .स्थानीय लोगों के लिए पेजर या वायरलेस सिस्टम जैसी सुविधा सीमित रूप में दी जा सकती है जो मोबाइल से कम नुकसानदेह है .
हमारे देश के पर्यावरण मंत्रालय को इस दिशा में कठोर कदम उठा कर एक कठोर गाइड लाइन बनाने की जरूरत है जिसमे नदियों के मुहाने पर निर्माण ,उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों की मोनिटरिंग कर सड़क पर आवागमन पर कंट्रोल, यात्रियों की संख्या का निर्धारण जैसे कदम उठाने की आवश्यकता है इसके लिए जरूरी है की राजनैतिक पार्टियाँ कोई अड़ंगे न डालें क्योंकि जब विपदा आती है तो वह सबको सामान रूप से प्रभावित करती है।
कविता वर्मा
प्रकृति ने जिसे इतने सुन्दर बनाने में करोड़ों साल लगाए, हमने महज सौ दौ सौ साल में बर्बाद कर दी।
ReplyDeletesahi kaha sagar ji ye vikaas ki andhi aandhi hai ...sochna to ye hai ki ham apne bachcho ke liye kya chhod kar jane vale hai ..
Deleteकब तक सहती प्रकृति अपने साथ खिलवाड़....बहुत सटीक विश्लेषण...
ReplyDeletebahut bahut abhar ..
ReplyDeleteकठोर नियम हुये बिना हम लोग मानने वाले नहीं हैं और यह काम सरकार को ही करना चाहिये।
ReplyDeleteji sanjay ji bilkul ..
Deleteabhar
उतराखंड त्रासदी पर आपके प्रभावी विचार व उपाय जानने को मिले, जिनको अपनाने में अति शीघ्रता की जानी चाहिये. यदि अब भी हम नही जागे तो प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाती ही रहेगी.
ReplyDeleteरामराम.
ji ..sahmat hu aapki baat se ...
Deleteabhar
natural and man-made both factors played its role..
ReplyDeletebut former aggravated the situation
thanks a lot jyoti ..
Deleteprakriti apne dohan ko sud ke sath batorti hai....behud dukhad hai yesab...hum insan hi iske jimmewar hai,kudrat to aksaran manjar dikhlati hi hai......bahut achha likhi hain.......
ReplyDeleteji aparna ji abhar ..
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(22-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
abhar vandana ji
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ReplyDeleteआपका विश्लेषण सही है .सबसे पहले लोगों में धार्मिक उन्माद् कम होनी चाहिए .पुण्य कमाने की जो मिथ है यह कम होना चाहिए .फिर भी यदि कोई जाना चाहता है तो उन्हें पैदल ही जाना चाहिए . होटल आदि की सुवीधा नही. सरकार की तरफ से धर्मशालाओं का निर्माण होना चाहिए जिसमे न्यूनतम सुविधाएँ होनी चाहिए .इस प्रकार ऐसी यात्राओं को हतोत्साहित करना चाहिए
aapka bahut bahut abhar ...
Deleteपहाड़ो से ज्यादा समतल क्षेत्र में प्रकृति का हरण हुआ है | फिर भी कुछ है , जिसके बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता | आखिर मृत्यु क्यों ? जो भी विश्लेसन हो धनात्मक और रिनात्मक बने रहेंगे |
ReplyDeleteji sahi kaha aapne abhar ..
Deleteप्रकृति के साथ सामंजस्य बैठा कर विकास हो ऐसा सोचना भी हमारे देश में मुमकिन नहीं. आपने सही और सूक्ष्म विवेचना की है इस विषय पर.
ReplyDeleteji rachna ji mushkil to hai ...koshish karna to hogi hi ..
Deleteaapka abhar ..