एक समय था जब बाज़ार किसी खास मौके पर ही जाना होता था। नए कपडे सिलवाना या लेने जाना किसी अवसर विशेष पर ही होता था। अब तो बोरियत दूर करने के लिए भी लोग खरीदी करने निकल जाते हैं। एक नया चलन आया है विंडो शोपिंग का जिसमे खरीदना कुछ खास नहीं होता बस मार्केट में घूम कर मन को बहला लिया जाता है और कुछ पसंद आये तो खरीद लो मनाही तो कोई है नहीं। माल संस्कृति ने इस विंडो शौपिंग को बहुत बढ़ावा दिया है। खरीदो तो खरीदो घूमो खाओ पियो और अपनी बोरियत माल के किसी कोने में फेंक कर वापस घर आ जाओ।
कभी कभी तो मन ऐसा बन जाता है की अरे इतना घूमे है तो कुछ तो खरीद लें,फिर भले घर आ कर खरीदी हुई चीज़ देखने का मन ही न हो या लगे अरे बेकार खरीद लिया। ऐसे समय में उन बुजुर्ग का चेहरा आँखों के आगे घूम जाता है। उनकी बेबस निगाहें कांपते हाथ और मायूस आवाज़, उनका अचानक दूकान से बाहर चले जाना और अपनी बेबसी।
बात करीब 20 साल पुरानी है शादी के बाद नयी नयी आज़ादी, हाथ में पहली बार अपना पैसा, अकेले खरीदी करने का उत्साह,या घूमने के बहाने घर से बाहर अपनी दुनिया में अकेले रहने का सुख जो भी कहें। बस बाज़ार में घूमते हुए कहीं कुछ खाते पीते छोटी मोटी चीज़े खरीदते हुए हम अपने आप में मस्त रहते थे। कई बार बाज़ार की चमक इतना आकर्षित करती थी की कुछ चीज़े जरूरत न होने पर भी खरीदने का मन हो जाता था। हाँ ये चीज़ें छोटी छोटी ही होती थीं क्योंकि बहुत पैसा तो पास होता नहीं था।
ऐसे ही एक दिन किसी दुकान पर अपने लिए हेयर क्लिप्स खरीदने रुक गयी। नयी नयी शादी हुई थी इसलिए ऐसी चीज़ों की कमी नहीं थी लेकिन बस यूं ही। उसी दूकान पर एक बुजुर्ग सज्जन एक बटुआ देख रहे थे। उम्र होगी यही कोई 60-65, सामान्य से कपडे पैरों में हवाई चप्पल उन्होंने उसे खोल कर उलट पलट कर देखा और उसका दाम पूछा।
दुकानदार ने जो दाम बताया तो एक बार तो उन्होंने बटुआ काउंटर पर रख दिया लेकिन फिर उसे उठा कर देखने लगे। फिर उसका दाम पूछा। फिर बहुत धीमी आवाज़ में पूछा कुछ कम नहीं हो सकता?
जाने क्यों उनकी और ध्यान अटक गया और अपनी खरीदी छोड़ कर मैं उन्हें देखने लगी।
दुकानदार ने कहा नहीं कम का चाहिए तो ये देखिये उसने दूसरा बटुआ काउंटर पर रख दिया लेकिन उन्हें तो पहले वाला ही पसंद था। वे उसी को अपने कांपते हाथों से उलटते पलटते रहे। वो तो कहिये दुकानदार सज्जन था की धीरज से उन्हें देखते रहने दिया कोई और होता तो शायद झिड़क देता। उन्होंने आखरी बार उसे देखा फिर काउंटर पर रखते हुए बड़ी मायूस आवाज़ में कहा रहने दो और धीरे से दुकान से बाहर निकल गए।
अब दुकानदार मुझसे मुखातिब हुआ कौन सी हेयर क्लिप दूं मेडम ? ये देखिये लेकिन मेरे कान तो उस आवाज़ की मायूसी से सुन्न से हो गए थे और नज़रें उनका पीछा कर रही थीं। मन उन्हें आवाज़ दे रहा था अंकल जी आप ये बटुआ ले लीजिये बाकि पैसे मैं दे देती हूँ लेकिन न आवाज़ बाहर निकल सकी न वे वहां रुके और अपनी बेवजह की खरीदी पर खुद से शर्मिंदा सी होती मैं दुकान से बाहर आ गयी।
बाजार जाएं तो ऐसी घटनाओं से आमतौर पर कभी ना कभी सभी रुबरू हुए होंगे, लेकिन संवेदनशील मन ही इसे अपने जेहन में समेट लेता है और ये बातें मन के भीतर ऐसी जगह बना लेती हैं कि आप कितना भी भूलना भुलाना चाहें, आसान नहीं होता है।
ReplyDeleteये घटना तो मन को छू ही गई, लेकिन आपके मन की संवेदनशीलता को नमन ना करुं तो आपकी आपबीती से न्याय नहीं होगा।
बढिया, सबके लिए आत्ममंथन जरूरी है। आभार
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति...आज मॉल संस्कृति में हम ये सब अहसास कहाँ देख पाते हैं..
ReplyDeleteऐसी घटनाएँ मन पर हमेशा के लिए अपनी याद छोड़ जाती हैं, कई बार हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते कि कहीं सामने वाले के स्वाभिमान पर आघात ना लग जाये... संवेदनशील मन के सुन्दर उद्गार...आभार
ReplyDeleteकभी कभी मन यूँ ही भर भर जाता है यही संसार सार है .
ReplyDeleteकुछ घटनाएँ मन पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं .... संवेदनशील संस्मरण
ReplyDeleteमन को छूती पोस्ट ... एक अमिट याद को साझा करने का आभार
ReplyDeleteमाल संस्कृति ने फालतू की खरीदारी को भी बढ़ावा दिया ही है..बोरियत दूर करने का ज़रिया एक दूसरा पहलू है.लेख के आखिरी हिस्से में जो किस्सा आप ने बताया वाकई दिल को छू गया..ऐसी घटनाएँ कभी भूलती नहीं हैं .
ReplyDeleteऐसे कई पल जीवन में आते हैं जो मिश्रित भाव छोड़ जाते हैं मानस पटल पर ...ओर हमेशा ताज़ा यादों में रहते हैं ... सामने आते रहते हैं ...
ReplyDeleteमन को छू गई आपकी पोस्ट ...
जबरदस्त!!
ReplyDeleteह्रदय को छू लेने वाली रचना
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ReplyDeleteऐसे में मन कितना कचोटता है ...कि काश ! ...और वह काश न जाने कितने रोज़ ..वजह बेवजह परेशान करता रहता है ...और फिर कुछ समय के बाद विलीन हो जाता है...ऐसे में एक बात तो ज़रूर मन में उठती है ..ढृढ़ निश्चय बनकर ..की अगली बार ऐसा नहीं होने दूँगी ...है न ....
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .ह्रदय को छू लेने वाली रचना.
ReplyDeleteकुछ घटनाएँ जीवन को प्रभावित करती हैं और अपनी छाप छोड़ जाती हैं. वर्ग विभिन्नता का उदाहरण, पर क्या किया जाए... मन को छू गई लेखनी. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteह्रदय को छू गई आपकी पोस्ट ...
ReplyDeleteबहुत बढि़या कविता/लेखन हैं- सारिक खान
ReplyDeletehttp://sarikkhan.blogspot.in/
मन को छूता बहुत ही सुंदर स्मरण
ReplyDeleteRECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...
आप एक अच्छे दिल की मालकिन हैं , इसके लिए ठेस ना लगे सो मंगल कामनाएं भेजता हूँ !
ReplyDeleteअच्छा लिखती हो ...
सुन्दर संस्मरण...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteकभी कभी छोटी छोटी बातें भी मन पर गहरा असर छोड़ती हैं ....!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण ....
शुभकामनायें ....
होता है ऐसा भी...... मर्मस्पर्शी संस्मरण
ReplyDeleteकहानी हालांकि एक नित होने वाला अनुभव है लेकिन आपने कहानी का प्रस्तुतीकरण सर्वोतम ढंग से किया है। शब्द बांधे रखते है शुरू से अंत तक !
ReplyDeleteबढ़िया |
ReplyDeleteसमय मिलने पर गौर फरमाएं और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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