Thursday, January 17, 2013

यादों का अंकुश




मन की गलियों में भटकते कई बातें याद आती है तो कभी ऐसा कुछ घटित होता है की उसके बहाने कोई पुरानी बात याद आ जाती है तो कभी किसी पुरानी बात के बहाने कोई काम करते हाथ या कहें मन ठिठक जाता है। कुछ बाते बहुत बहुत पुरानी होकर भी मानों पुरानी नहीं होती उनकी स्मृति मन पटल पर कल की घटना सी ताज़ा होती है। वह कचोटती भी है और कुछ करने से या तो रोकती है या कहीं अंकुश लगाती है। वह खुद से कुछ नहीं कहती लेकिन उस स्मृति की छाप इतनी मजबूती से मन पर पड़ी होती है की वह अपने मौन से भी बहुत कुछ कह जाती है। ये अलग बात है की कभी कभी उस अदृश्य रोक को नज़रंदाज़ करके वही किया जाता है जो करना होता है लेकिन उसके बाद भी वह जेहन में अपनी उपस्थिति दर्ज तो करवा ही देती है। 

एक समय था जब बाज़ार किसी खास मौके पर ही जाना होता था। नए कपडे सिलवाना या लेने जाना किसी अवसर विशेष पर ही होता था। अब तो बोरियत दूर करने के लिए भी लोग खरीदी करने निकल जाते हैं। एक नया चलन आया है विंडो शोपिंग का जिसमे खरीदना कुछ खास नहीं होता बस मार्केट में घूम कर मन को बहला लिया जाता है और कुछ पसंद आये तो खरीद लो मनाही तो कोई है नहीं। माल संस्कृति ने इस विंडो शौपिंग को बहुत बढ़ावा दिया है। खरीदो तो खरीदो घूमो खाओ पियो और अपनी बोरियत माल के किसी कोने में फेंक कर वापस घर आ जाओ। 

कभी कभी तो मन ऐसा बन जाता है की अरे इतना घूमे है तो कुछ तो खरीद लें,फिर भले घर आ कर खरीदी हुई चीज़ देखने का मन ही न हो या लगे अरे बेकार खरीद लिया। ऐसे समय में उन बुजुर्ग का चेहरा आँखों के आगे घूम जाता है। उनकी बेबस निगाहें कांपते हाथ और मायूस आवाज़, उनका अचानक दूकान से बाहर चले जाना और अपनी बेबसी। 

बात करीब 20 साल पुरानी है शादी के बाद नयी नयी आज़ादी, हाथ में पहली बार अपना पैसा, अकेले खरीदी करने का उत्साह,या घूमने के बहाने घर से बाहर अपनी दुनिया में अकेले रहने का सुख जो भी कहें। बस बाज़ार में घूमते हुए कहीं कुछ खाते पीते छोटी मोटी चीज़े खरीदते हुए हम अपने आप में मस्त रहते थे। कई बार बाज़ार की चमक इतना आकर्षित करती थी की कुछ चीज़े जरूरत न होने पर भी खरीदने का मन हो जाता था। हाँ ये चीज़ें छोटी छोटी ही होती थीं क्योंकि बहुत पैसा तो पास होता नहीं था। 

ऐसे ही एक दिन किसी दुकान पर अपने लिए हेयर क्लिप्स खरीदने रुक गयी। नयी नयी शादी हुई थी इसलिए ऐसी चीज़ों की कमी नहीं थी लेकिन बस यूं ही। उसी दूकान पर एक बुजुर्ग सज्जन एक बटुआ देख रहे थे। उम्र होगी यही कोई 60-65, सामान्य से कपडे पैरों में हवाई चप्पल उन्होंने उसे खोल कर उलट पलट कर देखा और उसका दाम पूछा। 

दुकानदार ने जो दाम बताया तो एक बार तो उन्होंने बटुआ काउंटर पर रख दिया लेकिन फिर उसे उठा कर देखने लगे। फिर उसका दाम पूछा। फिर बहुत धीमी आवाज़ में पूछा कुछ कम नहीं हो सकता? 
जाने क्यों उनकी और ध्यान अटक गया और अपनी खरीदी छोड़ कर मैं उन्हें देखने लगी। 
दुकानदार ने कहा नहीं कम का चाहिए तो ये देखिये उसने दूसरा बटुआ काउंटर पर रख दिया लेकिन उन्हें तो पहले वाला ही पसंद था। वे उसी को अपने कांपते हाथों से उलटते पलटते रहे। वो तो कहिये दुकानदार सज्जन था की धीरज से उन्हें देखते रहने दिया कोई और होता तो शायद झिड़क देता। उन्होंने आखरी बार उसे देखा फिर काउंटर पर रखते हुए बड़ी मायूस आवाज़ में कहा रहने दो और धीरे से दुकान से बाहर निकल गए। 

अब दुकानदार मुझसे मुखातिब हुआ कौन सी हेयर क्लिप दूं मेडम ? ये देखिये लेकिन मेरे कान तो उस आवाज़ की मायूसी से सुन्न से हो गए थे और नज़रें उनका पीछा कर रही थीं। मन उन्हें आवाज़ दे रहा था अंकल जी आप ये बटुआ ले लीजिये बाकि पैसे मैं दे देती हूँ लेकिन न आवाज़ बाहर निकल सकी न वे वहां रुके और अपनी बेवजह की खरीदी पर खुद से शर्मिंदा सी होती मैं दुकान से बाहर आ गयी। 

22 comments:

  1. बाजार जाएं तो ऐसी घटनाओं से आमतौर पर कभी ना कभी सभी रुबरू हुए होंगे, लेकिन संवेदनशील मन ही इसे अपने जेहन में समेट लेता है और ये बातें मन के भीतर ऐसी जगह बना लेती हैं कि आप कितना भी भूलना भुलाना चाहें, आसान नहीं होता है।

    ये घटना तो मन को छू ही गई, लेकिन आपके मन की संवेदनशीलता को नमन ना करुं तो आपकी आपबीती से न्याय नहीं होगा।

    बढिया, सबके लिए आत्ममंथन जरूरी है। आभार

    ReplyDelete
  2. बहुत संवेदनशील प्रस्तुति...आज मॉल संस्कृति में हम ये सब अहसास कहाँ देख पाते हैं..

    ReplyDelete
  3. ऐसी घटनाएँ मन पर हमेशा के लिए अपनी याद छोड़ जाती हैं, कई बार हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते कि कहीं सामने वाले के स्वाभिमान पर आघात ना लग जाये... संवेदनशील मन के सुन्दर उद्गार...आभार

    ReplyDelete
  4. कभी कभी मन यूँ ही भर भर जाता है यही संसार सार है .

    ReplyDelete
  5. कुछ घटनाएँ मन पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं .... संवेदनशील संस्मरण

    ReplyDelete
  6. मन को छूती पोस्‍ट ... एक अमिट याद को साझा करने का आभार

    ReplyDelete
  7. माल संस्कृति ने फालतू की खरीदारी को भी बढ़ावा दिया ही है..बोरियत दूर करने का ज़रिया एक दूसरा पहलू है.लेख के आखिरी हिस्से में जो किस्सा आप ने बताया वाकई दिल को छू गया..ऐसी घटनाएँ कभी भूलती नहीं हैं .

    ReplyDelete
  8. ऐसे कई पल जीवन में आते हैं जो मिश्रित भाव छोड़ जाते हैं मानस पटल पर ...ओर हमेशा ताज़ा यादों में रहते हैं ... सामने आते रहते हैं ...
    मन को छू गई आपकी पोस्ट ...

    ReplyDelete
  9. ह्रदय को छू लेने वाली रचना

    ReplyDelete

  10. ऐसे में मन कितना कचोटता है ...कि काश ! ...और वह काश न जाने कितने रोज़ ..वजह बेवजह परेशान करता रहता है ...और फिर कुछ समय के बाद विलीन हो जाता है...ऐसे में एक बात तो ज़रूर मन में उठती है ..ढृढ़ निश्चय बनकर ..की अगली बार ऐसा नहीं होने दूँगी ...है न ....

    ReplyDelete
  11. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .ह्रदय को छू लेने वाली रचना.

    ReplyDelete
  12. कुछ घटनाएँ जीवन को प्रभावित करती हैं और अपनी छाप छोड़ जाती हैं. वर्ग विभिन्नता का उदाहरण, पर क्या किया जाए... मन को छू गई लेखनी. शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  13. ह्रदय को छू गई आपकी पोस्ट ...

    ReplyDelete
  14. बहुत बढि़या कविता/लेखन हैं- सारिक खान

    http://sarikkhan.blogspot.in/

    ReplyDelete
  15. आप एक अच्छे दिल की मालकिन हैं , इसके लिए ठेस ना लगे सो मंगल कामनाएं भेजता हूँ !
    अच्छा लिखती हो ...

    ReplyDelete
  16. सुन्दर संस्मरण...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  17. कभी कभी छोटी छोटी बातें भी मन पर गहरा असर छोड़ती हैं ....!!
    बहुत अच्छा संस्मरण ....
    शुभकामनायें ....

    ReplyDelete
  18. होता है ऐसा भी...... मर्मस्पर्शी संस्मरण

    ReplyDelete
  19. कहानी हालांकि एक नित होने वाला अनुभव है लेकिन आपने कहानी का प्रस्तुतीकरण सर्वोतम ढंग से किया है। शब्द बांधे रखते है शुरू से अंत तक !

    ReplyDelete
  20. बढ़िया |

    समय मिलने पर गौर फरमाएं और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...