बहुत दिनों से बिना काम की व्यस्तता ने पुरानी यादों को कही गहरे दफ़न कर दिया था। आज यूँ ही सी मिली फुर्सत में एक पुरानी घटना याद आ गयी जिससे जुडी थी एक मीठी सी याद तो एक कड़वी सी बात। वैसे तो कडवाहट देर तक अपना असर रखती है लेकिन मिठास कुछ ज्यादा है शायद इसलिए कड़वी याद को भी एक मुस्कान के साथ याद कर लेती हूँ .
बात होगी यही कोई १३- १४ पुरानी हमने अपना घर शिफ्ट किया इससे हमारा लैंड लाइन फोन का नंबर भी बदल गया .नया नंबर पहले किसी मुथु साहब (परिवर्तित नाम ) का था जो शायद किसी बड़े सरकारी महकमे में रहे होंगे तो हमारा फोन शुरू होते ही उनके लिए फोन आने लगे जब तक लोकल फोन आते रहे तब तक कोई बात नहीं थी लेकिन कई बार बंगलोर, चेन्नई,कोयम्बतूर से फोन आते तो बड़ा अफ़सोस होता की लोगों का पैसा बेकार बर्बाद हो रहा है. ऐसे ही एक दिन इंदौर से ही किसी महिला का फोन आया वे किसी स्कूल की रिटायर्ड प्रिंसिपल थीं .जब मैंने उन्हें बताया की मुथु साहब का ये नंबर मुझे मिला है और उनके लिए बहुत सारे फोन आते हैं अगर आपको उनका नंबर कहीं से मिले तो प्लीज़ मुझे भी बता दीजियेगा ताकि में लोगों को उनका नंबर बता दूँ .
ये सुन कर वे बहुत खुश हुईं और कहने लगीं में पता करती हूँ .आप उन लोगों की मदद करना चाहते हैं जिन्हें जानते भी नहीं और उनकी परेशानी दूर करना चाहते हैं ये बहुत अच्छी बात है. उन्होंने अपना नंबर भी मुझे दिया .
मैं उनके फोन का इंतजार करती रही और कुछ दिनों बाद उनका फोन आया भी और मुझे मुथु साहब का नंबर मिल गया . मैंने उस नंबर पर फोन किया तो मुथु साहब ने ही फोन उठाया . मैंने उन्हें बताया की उनके पुराने नंबर पर बहुत लोगों के फोन आते हैं और वह भी एस टी डी .ये आपका ही नंबर है न ये जानने के लिए फोन किया था मैंने आपका ये नया नंबर में उन लोगों को दे दूं??
वे साहब जाने किस अकड़ फूँ में थे कहने लगे कोई जरूरत नहीं है जिसे जरूरत होगी वो खुद पता कर लेगा ,और फोन काट दिया .
मैं सिर्फ फोन को देखती रह गयी .
शाम को जब ये बात अपने पतिदेव को बताई और बताया की उन्होंने किस लहज़े में मुझसे बात की तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया . कहने लगे अब जिसका भी फोन आये उसे ये नंबर जरूर देना और वह नंबर लिख कर फोन के पास ही रख दिया .
खैर कुछ दिनों में ही लगभग सभी लोगों तक वह नंबर पहुँच गया और फिर उनके लिए फोन आने बंद हो गए .
एक दिन एक फोन आया किसी राजपुरवाला साहब के लिये. स्वाभाविक था मैंने कहा रॉंग नंबर तो कहने लगे नंबर तो यही है. लेकिन यहाँ तो कोई राजपुरवाला साहब नहीं रहते .खैर फोन बंद हो गया . अब ये सबके लिए कौतुहल हो गया की मुथु साहब के बाद किसी और के फोन .बच्चे तो कहने लगे मम्मी बड़ा मज़ा आयेगा .
अब तो ये सिलसिला भी चल निकला हफ्ते में कम से कम ३- ४ फोन आ ही जाते थे राजपुरवाला साहब के लिये. हर बार लोग मायूस होते थे कहते नंबर तो यही है .एक दिन ऐसे ही बात करते अचानक मैंने पूछ लिया की ये राजपुरवाला साहब रहते कहाँ हैं ?
पता चला उज्जैन मे.
अब सारा माज़रा समझ में आया की उनका और हमारा नंबर तो सामान था लेकिन लोग उज्जैन के कोड की जगह इंदौर का कोड लगा देते थे और फोन हमारे यहाँ लग जाता था .
एक दिन मैंने उज्जैन का कोड लगा कर अपना ही नंबर डायल किया और राजपुरवाला साहब से बात की और उनसे कहा की वे अपने रिश्तेदारों और मित्रों को सही कोड लगाने को कहें ताकि उनका समय और पैसे बर्बाद ना हों .उन्होंने मुझे अनेकों धन्यवाद दिए और एक मीठी सी मुस्कान के साथ फोन बंद किया गया .
हालांकि बाद में भी राजपुरवाला साहब के लिए फोन आते रहे लेकिन सिर्फ एक बात की उज्जैन का कोड लगाइए के साथ हम हंसते हुए फोन बंद करते रहे.
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeletedhanyvaad ravikar ji...
Deleteहाहा.. एक ही फ़ोन पर भिन्न लोग.. यही है अनूठी दुनिया!
ReplyDeletesach hai prateek ji ,ek hi phone se khushi aur ,,,,,milana sach ye duniya anoothi hai...
Deleteखूबसूरत यादे हैं ...मज़ा आया पढ़ कर
ReplyDeleteमजेदार संस्मरण. किसीके साथ बात करने के बाद आप उससे अपरिचित होते हुए भी उसके बारे में बहुत कुछ जान जाते हैं.
ReplyDeleteबढिया संस्मरण,अक्सर ऐसा हो जाता,,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग गुलाल है यारो,
हैरान करते हैं ऐसे वाकये ....
ReplyDeleteमोबाईल इन सब को लील गया
ReplyDeleteरोचक प्रसंग .... :-)
ReplyDelete~सादर!!!
IT HAPPENS ALWAYS EVERY WHERE BUT YOU HAVE TO MANAGE IT CAREFULLY WITH MORAL VALUES.
ReplyDeleteमनुष्य के व्यवहार के दो विरोधी पहलुओं को दर्शाता बहुत रोचक संस्मरण...
ReplyDeleteखर्चीले , पर कभी - कभी आनंद भी देते है |
ReplyDeleteचलो देर से सही कुछ अच्छा होता है बहुत ख़ुशी मिलते है सभी को ...बहुत बढ़िया याद...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
ReplyDeleteकैसे-कैसे लोग और कैसी-कैसी बातें -आप तो बीच में फँस गईँ !!
ReplyDeleteमजेदार संस्मरण है .. ऐसा होता कई बार ... ओर कई बार तो माए रिश्ते भी बन जाते हैं ऐसे ही ...
ReplyDeleteमेरे एक रिश्तेदार हईं सुरत में उनका नंबर है XXXXX57000 दिन में कम से कम दस फोन (जो आगे के पाँच में से चार नंबर मिलते हुए फोन नंबर वालों के लिए होते हैं) तो आते हैं कि भई ग्रे के ताके (साड़ियों का कच्चा माल) अब तक उठाया नहीं कब प्रिंट होगा और कब हमें डिलेवरी मिलेगी? कई बार तो लोग यूं ही डाँट भी देते हैं कि अब तक माल पहुँचा नहीं, अगली बार पेमेंट लेने आना, तब बतायेंगे।
ReplyDeleteलोग कहते हैं कि दुनिया में सब लोग वैसे ही हैं, उन्हें क्या पता कि लोग कैसे कैसे हैं! :)
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