जो टूट चुका है समझौता,
तुम उसकी लाश क्यों ढोते हो?
धोखा तुम्हारे साथ हुआ है
क्यों शराफत का लबादा ओढ़े रहते हो?
बन्दूक,गोली, बम, हथगोले देकर
चलाने की इजाजत नहीं देते हो?
क्यों अपनी इक इक जान को
उनकी दस जान से कम लेते हो?
वो घर में घुसकर ललकारते हैं,
तुम नियमों की दुहाई देते हो।
प्रतिबंधों, नाराजी के डर से
तुम अपना सम्मान खोते रहते हो।
वक्त आ गया है अब
उन्हें सबक सिखाने का।
देखें वो आँख तरेर हमें
आँख ही नोच ले आने का।
वो चार कदम जो घर में घुसे,
उन्हें दूर तक खदेड़ आने का।
क्रिकेट, व्यापार और हर द्वार बंद कर,
आर पार भिड़ जाने का।
क्या है औकात उनकी ये,
उनकी धरती पर बताने का।
उठो अब कुछ तो निर्णय लो,
ये समय नहीं बतियाने का।
बहुत हुई वार्ता, चेतावनी
कुछ जमीनी काम कर जाने का।
अपनी भलमनसाहत पर,
अपनी दृढ़ता दिखलाने का।
उठो,जागो और लक्ष्य धरो
ससम्मान जीने
या मर जाने का।
आपकी क्रांतिकारी सोच के साथ खुद को शामिल करने में मुझे वाकई गर्व है। जब देश की महिला शक्ति जवानों को ललकारने लगे, तो समझ लीजिए अब आर पार हो जाने का वक्त आ गया है।
ReplyDeleteसंभल जाओ....
ji shrivastavji..abhar.
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ReplyDeleteanju ji ab aur nahi..ab samy aa gaya hai ki unhe aouraton ki awaz sunani hi hogi..
Deleteऔरत के क्रांति स्वर को हर दौर में दबा दिया गया ...अब भी कोई झाँसी की रानी पैदा होगी ...ये संशय है ???
ReplyDeleteकाश इतनी हिम्मत हमारे देश के कर्णधारों मे होती
ReplyDeletesach vandana ji..dhanyavad..
Deleteकर्णधार ऐ देश के, सुन नारी ललकार |
ReplyDeleteछूट फौज को दे तुरत, आर-पार का वार |
आर-पार का वार, सार है इन हमलों का |
अब भी क्यूँ हैं शांत, उड़ाता रहता *कोका |
कासे कहूँ पुकार, फौज की अपनी जै जै |
हो जाए इक बार, छूट दो कर्णधार ऐ ||
*कबूतर
kya bat hai ravikar ji bahut bahut aabhar..
Deleteक्रांति के स्वर लिए बहुत ही सार्थक रचना..
ReplyDeletedhanyavad reena ji..abhar
Deleteबहुत सटीक और सार्थक प्रस्तुति..कब तक हम भैंस के सामने अमन की बीन बजाते रहेंगे?
ReplyDeletekailash sharma ji bahut abhar.
Deleteक्रान्ति के स्वर मुखर हो रहे है,युद्ध कर मुह तोड़ जबाब देना होगा,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
ji dheerendra ji ab samay aa gaya hai.
Deleteaapne desh ko jagane vali rachna prastut ki hai .........bahut sundar
ReplyDeleteshikha ji aapne padha bahut achchha laga.abhar..
ReplyDeleteओजपूर्ण!
ReplyDeleteढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस
सच्चाई को बयान करती हकीकत लाजवाब ....
ReplyDeleteदेंखे भारत जननी कब जगती है ?
ReplyDeleteutho, jaago aur lakshya dharo.. behtareen. :)
ReplyDeletebilkul theek kaha aapne
ReplyDeleteशुक्रिया कविता . मेरी कविता को पसंद करने के लिए
ReplyDeleteआपकी ये कविता पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए
अब इसी सब से रुबुरु होते जा रहे है .देश के कुछ हालत ही ऐसे है. शुक्रिया
विजय
www.poemsofvijay.blogspot.in
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
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