Wednesday, September 12, 2012

सूखी रेत के निशान

उठ कर चल दिए
 मुझे छोड़ कर यूँ 
बिना अलविदा कहे 
दूर तक दिखता रहा 
तुम्हारा धुंधलाता अक्स 
सोचती रही क्या होंगे 
उन आँखों में आंसूं 
या एक खुश्क ख़ामोशी 
जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

बिखरी पड़ी यादों को 
अकेले संभालना है मुश्किल
 एक गठरी में बाँध 
लोटना चाहती हूँ तुम्हे 
कि ये शिकवा ना कर सको 
चुपके से रख लीं मैंने 

रास्ते पर ढूँढती हूँ 
तुम्हारे कदमों के निशान 
लेकिन मिलते है 
सूखे पानी के रेले रेत पर 

आंसुओं के निशान पर चल कर 
यादों कि गठरी लौटाई नहीं जाती 
अब भी सहेजे हुए हूँ उसे 
उस दिन के इंतजार में 
जब तुम आ कर ले जाओगे अपनी यादें 
ओर कौन जाने मेरी यादें 
तुम भी सहेजे रखे  हो अब तक.

17 comments:

  1. सुंदर भाव, बेहतरीन शब्द संयोजन

    आभार

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  2. आंसुओं के निशान पर चल कर
    यादों कि गठरी लौटाई नहीं जाती
    अब भी सहेजे हुए हूँ उसे
    उस दिन के इंतजार में
    जब तुम आ कर ले जाओगे अपनी यादें
    ओर कौन जाने मेरी यादें
    तुम भी सहेजे रखे हो अब तक.

    खुबसूरत भाव लिए बेहतरीन रचना

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  3. बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,,,,,के लिये बधाई,,,,,

    RECENT POST -मेरे सपनो का भारत

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  4. यादें लौटाई नहीं जाती ... न ही उन्हें निकालना आसान है दिल से ...
    ये गठरी तो उम्र के साथ ही जाती है ...

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  5. आंसुओं के निशान पर चल कर
    यादों कि गठरी लौटाई नहीं जाती

    ....बहुत खूब! बहुत भावमयी और प्रभावी प्रस्तुति...

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  6. भावमयी सुन्दर रचना...

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  7. ओर कौन जाने मेरी यादें
    तुम भी सहेजे रखे हो अब तक.....sacchi bat ....

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  8. भावनात्मक प्रस्तुति सुन्दर रचना |

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  9. बहुत सुन्दर...
    प्यारी रचना....

    अनु

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  10. यादों की गठरी, याने जीने का सामान...!

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  11. ओर कौन जाने मेरी यादें
    तुम भी सहेजे रखे हो अब तक.
    ---- जो अतीत की स्मृतियों की गलियों के परमानंद में जीता है ....वही जीता है...

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  12. vaah kavita !!sukhad asharya ke saath tunhara blog bahut achha kag raha hai aati rahungi yahan.

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