उठ कर चल दिए
मुझे छोड़ कर यूँ
बिना अलविदा कहे
दूर तक दिखता रहा
तुम्हारा धुंधलाता अक्स
सोचती रही क्या होंगे
उन आँखों में आंसूं
या एक खुश्क ख़ामोशी
जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
बिखरी पड़ी यादों को
अकेले संभालना है मुश्किल
एक गठरी में बाँध
लोटना चाहती हूँ तुम्हे
कि ये शिकवा ना कर सको
चुपके से रख लीं मैंने
रास्ते पर ढूँढती हूँ
तुम्हारे कदमों के निशान
लेकिन मिलते है
सूखे पानी के रेले रेत पर
आंसुओं के निशान पर चल कर
यादों कि गठरी लौटाई नहीं जाती
अब भी सहेजे हुए हूँ उसे
उस दिन के इंतजार में
जब तुम आ कर ले जाओगे अपनी यादें
ओर कौन जाने मेरी यादें
तुम भी सहेजे रखे हो अब तक.
सुंदर भाव, बेहतरीन शब्द संयोजन
ReplyDeleteआभार
आंसुओं के निशान पर चल कर
ReplyDeleteयादों कि गठरी लौटाई नहीं जाती
अब भी सहेजे हुए हूँ उसे
उस दिन के इंतजार में
जब तुम आ कर ले जाओगे अपनी यादें
ओर कौन जाने मेरी यादें
तुम भी सहेजे रखे हो अब तक.
खुबसूरत भाव लिए बेहतरीन रचना
बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,,,,,के लिये बधाई,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST -मेरे सपनो का भारत
bhtreen
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ReplyDeletesaarthak srijan, badhai.
यादें लौटाई नहीं जाती ... न ही उन्हें निकालना आसान है दिल से ...
ReplyDeleteये गठरी तो उम्र के साथ ही जाती है ...
आंसुओं के निशान पर चल कर
ReplyDeleteयादों कि गठरी लौटाई नहीं जाती
....बहुत खूब! बहुत भावमयी और प्रभावी प्रस्तुति...
सुन्दर कविता |
ReplyDeleteभावमयी सुन्दर रचना...
ReplyDeleteओर कौन जाने मेरी यादें
ReplyDeleteतुम भी सहेजे रखे हो अब तक.....sacchi bat ....
भावनात्मक प्रस्तुति सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteप्यारी रचना....
अनु
sunnder kvita.......
ReplyDeleteयादों की गठरी, याने जीने का सामान...!
ReplyDeletesajone layak yaad...
ReplyDeletebehtareen rachna..
ओर कौन जाने मेरी यादें
ReplyDeleteतुम भी सहेजे रखे हो अब तक.
---- जो अतीत की स्मृतियों की गलियों के परमानंद में जीता है ....वही जीता है...
vaah kavita !!sukhad asharya ke saath tunhara blog bahut achha kag raha hai aati rahungi yahan.
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