ये कविता मेरे भाई योगेश वर्मा ने अपने कौलेज के दिनों में लिखी थी
मन का क्लेश
मन का क्लेश
समाप्त हुआ अब वह अध्याय
नित-सौरभ-संचन औ' काव्य व्यवसाय
नूतन से विषयों ने आज किया है मन व्यथित
और प्रिय यायावरी से भी हुआ अब तन थकित
तब लेखनी में भी हुआ करती थी एक पावन रसधार
और हम स्वप्नों को बुनते थे लेकर मन के तार|
क्या कविता महज तुकबंदी थी और गीतों में शेष तान ही था?
शब्दों का वह खेल भावुक मन का गान नहीं था?
अब भुला चला वो प्रेम स्मृतियाँ -घुटनों पर है सिर रखा
पर्वत हिलाने में सक्षम मनुष्य हिय बोझ से है थका
अनुभूति गयी,आल्हाद गया,अब अश्रु रह गए शेष!
स्नेह क्षणिक तड़ित था मन में,स्थाई है क्लेश!
बहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
beautiful lines
ReplyDeleteMan ko chhu gaye aapke bhaav.
ReplyDelete............
ये खूबसूरत लम्हे...
गहरी अनुभूति लिए ... भावमय रचना ...
ReplyDeleteसही लिखा हैं कविता जी आपने ...आज वो पहले वाला वक्त है भी नहीं ...
ReplyDeleteबदलाव ही जीवन को गति देता हैं ....सादर