वैसे तो अभी तक स्कूल कि छुट्टियाँ चल रहीं थीं लेकिन स्कूल दिमाग से निकलता थोड़े ही है.बल्कि छुट्टियों में और ज्यादा समय मिलता है स्कूल कि बातें सोचने उन पर नए सिरे से विचार करने का. रोज़ कि पढाई के साथ एक अतिरिक्त जिम्मेदारी टीचर्स पर होती है और वह है किसी टीचर के अनुपस्थित होने पर उसकी क्लास लेना.वैसे तो इस पीरियड में पढाई ही होनी होती है लेकिन बच्चे सच पढ़ना नहीं चाहते.बड़ी मुश्किल से तो उन्हें कोई फ्री पीरियड मिलता है. तो जैसे ही क्लास में पहुँचो पहली ख़ुशी उनके चेहरे पर दिखती है कि चलो आज पढना नहीं है.लेकिन जल्दी ही ये ख़ुशी काफूर हो जाती है जब उन्हें पता चलता है कि ये फ्री पीरियड फ्री नहीं है बल्कि इसमें भी पढना ही है.और सच बताऊ मुझे इसमें बहुत तकलीफ होती है.बच्चों को इस फ्री पीरियड में अपने मन का काम करने की ,अपने दोस्तों से बात करने कि आज़ादी होना ही चाहिए.आखिर ये भी तो सीखने का एक तरीका हो सकता है.अपने दोस्तों से बात करना या उनके साथ बैठ कर अपनी पढाई कि मुश्किलों को हल करना या अपना अधूरा काम पूरा करना या फील्ड में जाना खेलना वगैरह.लेकिन स्कूल में खेलने और लायब्रेरी के पीरियड होते हैं इसलिए और एक्स्ट्रा पीरियड देना संभव नहीं होता.
वैसे इन पीरियड में में बच्चों से बात करना चाहती हूँ.ये टीचिंग लर्निंग का सबसे अच्छा तरीका है.लेकिन अफ़सोस बच्चे इसमें आसानी से शामिल नहीं होते. उन्हें लगता है कि टीचर उनसे कुछ उगलवा कर उनके खिलाफ ही उपयोग कर सकती है.वैसे भी अविश्वास एक राष्ट्रीय बीमारी हो गयी है.खैर कभी कभी बच्चों को ये भी कहना पड़ता है कि बातचीत में शामिल होना उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा है इस तह मजबूरी में ही सही लेकिन जब बच्चे बातचीत में शामिल होते है तब बहुत आश्चर्यजनक ओर अद्भुत तथ्य सामने आते हैं.कभी बच्चों का डर तो कहीं उनके मन के संदेह सामने आते हैं तो कभी कभी लगता है कि बच्चे सच में बहुत छोटी छोटी साधारण सी बातें भी नहीं समझ पा रहे हैं क्योंकि ये बातें कभी उनके सामने हुई ही नहीं.
एक दिन ऐसे ही किसी क्लास में हुई चर्चा यहाँ दे रही हूँ..आप खुद ही पढ़िए सोचिये और समझिये कि सच में इस पीढ़ी कि जरूरत क्या है?
टीचर : आप लोग दिन भर में इतनी बातें करते हैं कभी सोचते हैं कि इनमे से कितनी बातें ऐसी होती हैं जिनका कोई अर्थ होता है?
बच्चे: चुप्पी
टीचर: अच्छा कितने लोग हैं जो रात में सोचते हैं कि हमने दिन भर में कितनी और क्या क्या बातें कीं?
बच्चे: (सिर्फ एक मुस्कान)
टीचर: देखिये अगर आपलोग बात नहीं करना कहते तो ठीक है में मेथ्स के सवाल दे देती हूँ.क्योंकि समय बर्बाद नहीं किया जा सकता कुछ तो करना ही है.
बच्चे: नहीं मैडम
टीचर: अच्छा आपमें से कितने बच्चों को लगता है कि आप अपनी किसी बात से अपने दोस्तों को या साथियों को हर्ट करते हैं?
बच्चे: (इधर उधर देखते हुए) एक फिर दो फिर तीन चार बच्चे हाथ उठाते हैं?
टीचर: अच्छा कितनों को हर्ट करने के तुरंत बाद लगता है कि आपने हर्ट किया है?
फिर ८- १० हाथ उठाते हैं.
टीचर: अच्छा कितनों को लगता है कि हमें अपने दोस्त या साथी से माफ़ी मांगनी चाहिए?
(संकोच से इधर उधर देखते ६ -७ हाथ उठाते हैं)
टीचर : कितने लोग सच में माफ़ी माँगते हैं?
बच्चे: एक दूसरे से आँख चुराते हुए २-३ बच्चे हाथ उठाते हैं.
टीचर: ये बताइए जब आपको लगता है कि आपने किसी को हर्ट किया लेकिन उससे माफ़ी नहीं मांगी,तो ये बात आपको परेशान करती है??
बच्चे: जी मैडम ,परेशान करती है बार बार वो बात ध्यान आती है.
टीचर: क्या बात ध्यान आती है और क्या लगता है?
बच्चे: वो बात याद आती है कि हमने किसी को हर्ट किया या बुरा किया.
टीचर: तो कितने लोग है जो इस बात को महसूस करने के बाद दूसरे दिन या उसके बाद भी माफ़ी माँगते हैं?
बच्चे: १-२ बच्चे हाथ उठाते हैं.
टीचर: चलिए कोई बात नहीं लेकिन इस बात को लेकर उस दोस्त के सामने आने में शर्म आती है या आप उससे बात नहीं करते ऐसा कितनों को लगता है?
( अब तक बच्चों को शायद ये विश्वास होने लगा था कि ये बातचीत हानिकारक नहीं है और मैडम इसका कोई रिकॉर्ड नहीं रख रही हैं. तो वे खुलने लगे)
बच्चे: लगभग १२-१५ बच्चे हाथ उठाते हैं.
टीचर: अच्छा कितनो को लगता है कि अगर तुरंत माफ़ी मांग ली होती तो ज्यादा अच्छा होता?दोस्ती भी बच जाती और यूं परेशान भी नहीं होना पड़ता?
बच्चे: हाथ उठाते हैं साथ ही अब एक दूसरे को देखते भी हैं. अभी तक कुछ बच्चे एक दूसरे से आँखे चुरा रहे थे.
टीचर: क्या आपको लगता है कि माफ़ी मांगना इतना मुश्किल है??
बच्चे: मैडम शर्म आती है.
लगता है मेरा दोस्त क्या सोचेगा?
टीचर : अच्छा कितनो को लगता है कि अगर मेरा दोस्त एक बार सॉरी कह देता तो अच्छा होता.( कई बच्चे हाथ उठाते हैं )
टीचर: अगर किसी बहुत पुरानी बात के लिए अगर कोई अभी सॉरी कहेगा तो क्या आप माफ़ कर देंगे और फिर से दोस्त हो जायेंगे?
बच्चे: यस मैडम
टीचर: अच्छा ठीक है आप लोग जिसे भी सॉरी कहना चाहते हैं उसे सॉरी कह दीजिये .( ४-५ बच्चे एक दूसरे को आँखों आँखों में सॉरी कहते हैं कुछ अभी भी चुप चाप बैठे टीचर को देख रहे हैं .उनमे अभी भी झिझक है )
टीचर: ठीक है में आँखे बंद करती हूँ आप अगर किसी से सॉरी कहना कहते हैं तो आपके पास ३ मिनिट का समय है. ( टीचर आँखें बंद करती है और पूरी क्लास में हलचल शुरू हो जाती है.आँखे खोलने के बाद बच्चों के प्रफुल्लित चहरे दिखते हैं.)
टीचर: आप लोगो को कैसा महसूस हो रहा है?
बच्चे: बहुत अच्छा ,हल्का महसूस हो रहा है.ख़ुशी हो रही है.
टीचर: अच्छा क्या सॉरी कहना वाकई इतना मुश्किल था??
बच्चे: नहीं मुश्किल नहीं था, कुछ ने कहा थोडा मुश्किल था , तो कुछ ने कहा कि मुश्किल तो है लेकिन कह सकते हैं.
टीचर: क्या आपको लगता है कि अगर हम तुरंत सॉरी कह दें तो हमारा टेंशन कम हो जाता?
बच्चे: जी मैडम सॉरी तुरंत कह देने से सच में कम टेंशन होता.
टीचर: तो क्या अब से आप लोग तुरंत सॉरी कहना अपनी आदत बनायेंगे? लेकिन हाँ किसी को जानबूझ कर हर्ट नहीं करना है कि बाद में सॉरी कह देंगे.
बच्चे: यस मैडम अब से हम गलती करते ही तुरंत माफ़ी मांग लेंगे.
पीरियड ख़त्म होने को है. अब बच्चे बचे समय में एक दूसरे से बात कर रहे हैं वो खुश हैं और मुझे ख़ुशी है कि में उन्हें वह ख़ुशी दे पाई .एक फ्री पीरियड एक सार्थक चर्चा के साथ ख़त्म हुआ. बच्चों ने कुछ सीखा जो शायद पढाई से ज्यादा जरूरी भी था.
kavita वर्मा
कितना अच्छा होता अगर सारे अध्यापक पढाई के अलावा इन छोटी छोटी बातों पर भी ध्यान दें ....कोर्स तो हर कोई पढ़ा लेता है ...लेकिन यह बातें कोई जागरूक टीचर ही करने की सोच सकती है ...अच्छा लगा यह प्रयास और ये जागरूकता
ReplyDeleteबहुत ही बढिया आपकी यह प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteबहुत बढिया, बस ये ध्यान रहे कि बच्चे आपका ब्लाग ना पढ लें, वरना फ्री पीरिएड मे आपको देखते ही .. आपकी नकल उतारने लगेगें।
ReplyDeleteसारी सारी ( देखिए मैने सारी बोल दिया है)
वैसे कविता जी इतना सवाल जवाब, उसके पीछे छिपी ज्ञान की बातों के लिए खाली पीरिएड ही क्यों ? ये बातें तो किसी दिन बच्चों का पढने का मूड ना हो, उस दिन भी कीजिए, अच्छी बातों के लिए खाली पीरिएड का इंतजार नहीं करना चाहिए।
सारी सारी (देखिए मैने फिर सारी बोल दिया है)
आखिर में.. अगर आपने पहले लेख के पहले कहीं इसका जिक्र कर दिया होता कि बात खाली पीरिएड की है तो हम भी खाली समय में पढ़ते। बताइये आफिस के काम से समय निकाल कर पढ़ रहा हूं ..
सारी सारी
काश सभी टीचर ऐसा कर सकते,,,
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन पोस्ट,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
beautiful idea so nice post and self determination with positive valueation.
ReplyDeleteखुबसूरत पोस्ट स्व मूल्याकन और आत्मविश्लेषण की सुन्दर प्रक्रिया .......
ReplyDeleteकविता जी ..आप ने बेहद ही रोचक ढंग से सॉरी को आसन बना दिया ! अब बच्चे भी जीवन में सॉरी कहने के समय कम से कम आप को भी याद कर लेंगे ! शिक्षा और टीचर के यही रहस्य है !जो विद्यार्थी सिखते है !बहुत ही सहज और सुन्दर प्रस्तुति ! बधाई
ReplyDeletebahut khob ................ bahut hi achcha laga aapko parna.saral bhasha mai bachcho ko samjhna /samjhana ..... bahut hi umda post
ReplyDeleteकविता जी यक़ीनन यदि सभी टीचर ऐसे ही बच्चों को कुछ सिखाएं या उनके दिल की बात कर दें तो देश का भावी स्वरुप कुछ और ही होगा और किताबी पढाई से अधिक आज संस्कारों और जीवन जीने की कला समझाने की जरुरत है ..आपने बिलकुल सही उपयोग किया एक खाली पीरियड का ...बधाई ... डॉ.कमल हेतावल इंदौर kamalhetawal@yahoo.co.in
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteआज के बच्चे सारी बातें कर सकते है पर सौरी बोलने में अपनी तौहीन समझते है |वे पहले के बच्चों की तरह किसी को सम्मान देना पसंद नहीं करते |आपका आर्टिकल बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeleteआशा
आपका लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा. कभी मुझे भी बच्चों को पढाने का बहुत शौक था व उन्हें पढाया भी. अब भी वे छात्र याद आते हैं.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
ji bachchon ko padhana apne aap me anokha anubhav hai ...
Deleteसुंदर सार्थक पोस्ट , बच्चों के लिए ऐसा वैचारिक मंथन आवश्यक है...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
अगर सभी टीचर बच्चों के मनोभावों को इसी तरह समझने की कोशिश करें तो बच्चों की बहुत समस्याओं का हल हो सकता है..
ReplyDeleteछोटे-छोटे बच्चो के विए अत्युत्तम पोस्ट। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
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