baiking |
खैर आज का मुख्य आकर्षण वाटर स्पोर्ट्स थे. लेकिन आज बिटिया का आग्रह था गीली रेत में दूर तक टहलने का. अब इसका आनंद शब्दों में तो नहीं बता पाउंगी ये तो गूंगे का गुड है खा कर ही महसूस किया जा सकता है. घूमते हुए दूर तक निकल गए जब पलट के देखा तब इसका एहसास हुआ. बच्चे लहरों का आना ओर उसके वापस लौटने पर रेत में बनने वाले पैटर्न देख रहे थे .वैसे शायद इस बात पर कुछ विवाद हो लेकिन मुझे तो १००% यही लगता है की लड़कियां ज्यादा सृजनात्मक होती हैं. बस रेत में से सीपियाँ इकठ्ठी करने में लग गयी की इससे कितनी सुन्दर ज्वेलरी बनाई जा सकती है .फिर क्या था वापसी में हमने ढेर सारी सीपियाँ इकठ्ठी कर लीं.
आज समुन्द्र का मिजाज़ पिछले दिन से कुछ अलग था. लगा लहरें आज की शांति में ज्यादा शोर कर रहीं हैं. बच्चे तो आज की ऊँची लहरों का मज़ा लेने लगे में कहती रह गयी की पहले राइड्स कर लो .सारी राइड्स के लिए बात करके पहले बाइकिंग की गयी. तेज़ गति से पानी में बैक चलाना ओर उठती लहरों से बचते हुए उसे मोड़ना बहुत रोमांचक था. इसके बाद आयी वेलोसिटी जिसमे एक सोफा सा बना था आगे तीन लोगों के बैठने की व्यवस्था ओर पीछे एक के.इस राइड में सबसे ज्यादा मज़ा आया क्योंकि सब एक साथ थे. हाँ पानी में जाने से पहले सबने लाइफ जेकेट पहनी थीं .इसके बाद जब बनाना राइड पर गए तो बीच समुद्र में जाकर वह रुक गयी ओर नाविक ने कहा कूदो.
क्ययायाया?????बस यही निकाला मेरे मुंह से. अथाह समुद्र, लहराता पानी उसमे कूद पड़ना.
पानी कितना गहरा है?
५-१० फीट .(अब ५ या १० इसमें कोई फर्क तो है नहीं.)
मैडम डरो नहीं साथ में लाइफ गार्ड हैं. मैंने पीछे देखा दो लाइफ गार्ड पानी में उतर रहे थे.तब तक धम्म की आवाज़ आयी ओर छोटी बिटिया पानी में. वह लहरों के साथ खेल रही थी.उसे पानी में देख कर पिताजी कैसे रुक सकते थे वह भी तुरंत पानी में कूद गए. ओर फिर बड़ी बिटिया भी. ओर हमारी नाव आगे बढ़ गयी .में तो मुड़ मुड़ कर सबको देखती ही रह गयी. एक चक्कर लगा कर हमने सबको वापस नाव पर चढ़ाया तब जान में जान आयी. जब वापस आये एक बहुत बहुत अद्भुत आनंद से सब भरे हुए थे. इतने बड़े समुद्र में अथाह पानी के बीच खुद को पाना रोमांचित करने वाला तो था ही बहुत कुछ सोचने ओर समझने वाला अनुभव भी था. ऐसे में अगर कोई बड़ी लहर आ जाती ?कोई भंवर पानी में खींच लेती या कोई बहुत छोटा सा ही लेकिन जहरीला समुद्री जीव ही..खैर विचार तो विचार ही है इन्हें कोई रोक तो नहीं सकता .लेकिन ये तय है की इन्सान अभी भी प्रकृति की विशालता के आगे बहुत तुच्छ है फिर चाहे वह कितना ही बड़ा होने का दंभ भरे.
हमारे कुछ ही दूर पर एक ओर परिवार था मेरी उस लेडी से कई बार नज़रें मिलीं ओर लगा की वह भी मुझसे बात करना चाहती है .
थोडा पास आने पर उन्होंने पूछा आप कहाँ से आये हैं?
इंदौर से .
इंदौर से??इतनी दूर से आप यहाँ समुद्र में नहाने आये हैं?
हाँ क्या करें हमारे इंदौर में समुद्र नहीं है ना.मैंने हँसते हुए कहा.
हाँ मेरी आंटी भी कहती है आप लोगो के लिए कितना बढ़िया है ना पास में कभी भी आ जाओ
वे लोग पूना से आये थे .
उस दिन भी करीब ३ घंटे हम वहां रहे. सच कहें जाने का बिलकुल भी मन नहीं था,लेकिन आज हमें वापस निकलना था .
पूना हमारा अगला पड़ाव था जो यहाँ से करीब १९० किलोमीटर दूर है .
तय हुआ नाश्ता करके जल्दी निकला जाये ओर खाना कहीं रास्ते में खाया जाये.
poona expres high way |
अभी तक गाड़ी पतिदेव ही चला रहे थे. अभी तक के सफर में समय कम था ओर मंजिल दूर इसलिए मैंने भी जिद नहीं की .लेकिन आज तो समय भरपूर था. हम पूना जाने के लिए एक्सप्रेस हाई वे पर पहुंचे ओर गाड़ी मैंने ले ली. इस हाई वे पर गाड़ी की एवरेज स्पीड ८० किलोमीटर /अवर है. थोड़े आगे गए ही थे की लोनावाला घाट प्रारंभ हो गया. घुमावदार रास्ते एकदम खडी चढ़ाई बीच में पड़ने वाली ३ टनल बहुत रोमांचक अनुभव था. करीब ५२ किलोमीटर का घाट चढ़ कर हमने खाना खाया ओर फिर...हाँ जी गाड़ी रोकते समय ही मुझे पता था अब गाड़ी मुझे नहीं मिलेगी लेकिन क्या करें बच्चों को भूख लग रही थी इसलिए गाड़ी तो रोकना ही थी. रास्ते में नया बन रहा सुब्रतो राय स्टेडियम दिखा .हम करीब ४ बजे पूना पहुंचे.दीदी के यहाँ का रास्ता ढूँढने में पसीना छूट गया. पूना इतनी बड़ी सिटी है जहाँ एक ही नाम की कई जगहें है.वो तो भला हो सेल फोन का की हम जीजाजी से लगातार संपर्क में रहे .यहाँ भी हमें कई लोगो से उनकी बात करवानी पड़ी रास्ता समझने के लिए.एक तो वहां सारे रोड वन वे हैं इसलिए एक मोड़ चुके तो आप यूं टर्न के लिए करीब २-३ किलोमीटर आगे पहुँच जाते हैं.
मुंबई शौपिंग कैंसिल करवाने के बदले बच्चों को पूना में शोपिंग करवाना थी सो शाम को फिर निकल गए. पूना में वैसे तो गर्मी बहुत है लेकिन यहाँ शामे बहुत ठंडी होती हैं.हर सडक के किनारे हरियाली है.शहर की प्लानिंग बहुत अच्छी है ट्राफिक फास्ट है.
दूसरे दिन सुबह हमें फिर नासिक जाना था त्रयम्बकेश्वर दर्शन करते हुए वापसी. दिन के समय नासिक शहर भी साफ सुथरा दिखा. त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग है यहाँ करीब २५ साल पहले आयी थी तब से अब तक काफी कुछ बदल गया है.हा लोगो की घूमने की इच्छा ,खर्च करने की शक्ति भक्ति सब कुछ .कुछ एक प्रबंधों के साथ मंदिर वही है लेकिन भगवान शासन तंत्र के आगे बेबस. ये कहें की भगवान तंत्र के बंदी हैं तो भी गलत नहीं होगा.वैसे हमारे सरकारी तंत्र जिस अंग्रेज मानसिकता के साथ जी रहे हैं ओर भारतियों को जिस तरह दोयम दर्जे का समझते है वह कहीं अधिक शोचनीय है शाहरुख़ या आई पी एल के किसी खिलाडी के व्यवहार की चिंता करने से. मुझे तो लगता है हर धार्मिक या दर्शनीय स्थल पर तैनात सुरक्षा कर्मी या स्वयं सेवक को कम से कम एक सामान्य नागरिक के अधिकार बता कर एक सामान्य व्यवहार करने की ट्रेनिंग तो दी ही जानी चाहिए. खैर दर्शन करने के बाद चिलचिलाती धूप में जलते पैरों के साथ गाड़ी में बैठे .बस अब खाना खा कर अगला पड़ाव था वापस अपना घर.
मंजिल दूर थी रास्ते में खाना खाते हुए हम रात २ बजे घर वापस पहुंचे .एक छोटी सी लेकिन सुकून भरी आनंददायी यात्रा पूरी करके. अलीबाग यात्रा २
कहते है ना कि अंत भला तो सब भला.. मैं तो जब बच्चे पानी मे कूद गए तो एकदम से घबरा ही गया। अच्छा था वहां लाइफगार्ड मौजूद थे..लेकिन सच मे ये यात्रा रोमांचकारी थी।
ReplyDeleteलगता है कि खूब मजे लिए आप सब ने.. अच्छा लगा. अगली कड़ी का इंतजार..
एक छोटी सी लेकिन सुकून भरी आनंददायी यात्रा की, बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
@इंदौर से??इतनी दूर से आप यहाँ समुद्र में नहाने आये हैं?
ReplyDeleteउत्तर- क्या करें, एम पी में बिजली पानी की बहुत समस्या है। इसलिए साल में एक बार अच्छे से नहाने आ जाते हैं समुद्र में। :)
छोटी पर...मनोरंजक यात्रा साझा करने के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
sukoon bhari yatra ka hame bhi raajdaar bana liya aapne:)
ReplyDeleteबहुत रोचक ढंग से आपने यात्रा वृतांत लिखा है...अलीबाग से थोडा ही आगे कासिद बीच है जो अलीबाग से कम भीड़ भाड़ वाला और बहुत अधिक साफ़ सुथरा है...उसकी सफ़ेद बालू पर चलने का मज़ा ही कुछ और है...
ReplyDeleteनीरज
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
आपकी यात्रा का रोमांचकारी अनुभव पढके मज़ा आया ...
ReplyDeleteएक आनंदमयी यात्रा में शामिल करने के लिये आभार...बहुत रोचक वर्णन...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से आभार।
रोचक यात्रा विवरण बहुत हि बढिया है
ReplyDeleteसब कुछ स्पष्ट कर दिया आपने
रचना पढ के अलीबाग घूमने जाया जा सकता है.
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमुझे आपका कार से नज़दीक ही घूम आने का आइडिया अच्छा लगा बर्ना गर्मी की छुट्टियां गर्मी से छुटकारा पाने के लिए दी जाती हैं बच्चों को, और हम हैं कि बच्चों को उठा चल देते हैं लू में घूमने.
ReplyDeleteआपका यात्रा वृतांत अच्छा लगा । सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट कबीर पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteVery nice post.....
ReplyDeleteAabhar!
Mere blog pr padhare.
कविता जी बहुत बेहतरीन प्रस्तुति ....आनंद दाई बहुत सुन्दर कहा आप ने ... बहुत कुछ सोचने ओर समझने वाला अनुभव भी था. ऐसे में अगर कोई बड़ी लहर आ जाती ?कोई भंवर पानी में खींच लेती या कोई बहुत छोटा सा ही लेकिन जहरीला समुद्री जीव ही..खैर विचार तो विचार ही है इन्हें कोई रोक तो नहीं सकता .लेकिन ये तय है की इन्सान अभी भी प्रकृति की विशालता के आगे बहुत तुच्छ है फिर चाहे वह कितना ही बड़ा होने का दंभ भरे.
ReplyDeleteजब तक प्रभु का लाईफ जैकेट काम कतरा है कुछ नहीं बिगड़ता ..सावधानी बहुत जरुरी है ..पथरीली नदियों में यहाँ कुल्लू मनाली में हमने बहुत दर्दनाक मंजर देखे हैं ..
जय श्री राधे
भ्रमर ५
कविता जी यह यात्रा भी गुदगुदा गयी ! बच्चो का पानी में कूदना तो डरा ही दिया ! अंत में शिव जी की आखरी यात्रा भी अच्छी लगी !मुझे यात्राओ को पढ़ने में बहुत मजा आता है और उस जगह से आकर्षित भी होता हूँ ! सचित्र सुन्दर
ReplyDeletebeautiful tour and pictures like to visit.
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