Tuesday, April 10, 2012

मुस्कान से मुस्कान तक

गुलाब की पंखुरियों से होंठों पर
नन्ही किरण सी वह मुस्कान 
आई थी जन्म के साथ 
जन्म भर साथ रहने को.

अपनी मासूमियत के साथ 
बढ़ती रही वह मुस्कान 
पल पल खिलखिलाते इठलाती रही 
होंठों से आँखों तक 
ओर पहुंचती रही दिल तक.

समय के उतार चढ़ावों में 
सिमटती रही करती रही संघर्ष 
किसी तरह बचाने अपना अस्तित्व 

उम्र के तमाम पड़ावों पर 
यूं तो कभी ना छोड़ा साथ 
लेकिन भूली बिसरी किसी सखी ने 
याद किया कुछ इस तरह 
'वह 'जो बहुत हंसती थी 
अब वही चहरे ओर नाम के साथ 
पहचान नहीं आती. 

 पोपले मुंह ओर बिसरती याददाश्त के साथ 
फिर आ बैठी है अपने पुराने ठिकाने पर 
अपने उसी मासूमियत को पाने में 
तमाम उम्र गंवाकर. 

8 comments:

  1. 'वह 'जो बहुत हंसती थी
    अब वही चहरे ओर नाम के साथ
    पहचान नहीं आती.
    बेहतरीन भाव पुर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....

    RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
    RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

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  2. बढ़िया प्रस्तुति । आभार ।।

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  3. आदरणीया कविता जी हार्दिक अभिवादन
    गुलाब की पंखुरियों से होंठों पर
    नन्ही किरण सी वह मुस्कान
    -----बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..इसी का नाम है जिन्दगी !!!

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  4. बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति

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  5. बहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए हुए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  6. बहुत सुंदर

    अपनी मासूमियत के साथ
    बढ़ती रही वह मुस्कान
    पल पल खिलखिलाते इठलाती रही
    होंठों से आँखों तक
    ओर पहुंचती रही दिल तक.

    क्या कहने
    वाह

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  7. अंजाम दिखा दिया...आपने...

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