गुलाब की पंखुरियों से होंठों पर
नन्ही किरण सी वह मुस्कान
नन्ही किरण सी वह मुस्कान
आई थी जन्म के साथ
जन्म भर साथ रहने को.
अपनी मासूमियत के साथ
बढ़ती रही वह मुस्कान
पल पल खिलखिलाते इठलाती रही
होंठों से आँखों तक
ओर पहुंचती रही दिल तक.
समय के उतार चढ़ावों में
सिमटती रही करती रही संघर्ष
किसी तरह बचाने अपना अस्तित्व
उम्र के तमाम पड़ावों पर
यूं तो कभी ना छोड़ा साथ
लेकिन भूली बिसरी किसी सखी ने
याद किया कुछ इस तरह
'वह 'जो बहुत हंसती थी
अब वही चहरे ओर नाम के साथ
पहचान नहीं आती.
पोपले मुंह ओर बिसरती याददाश्त के साथ
फिर आ बैठी है अपने पुराने ठिकाने पर
अपने उसी मासूमियत को पाने में
तमाम उम्र गंवाकर.
'वह 'जो बहुत हंसती थी
ReplyDeleteअब वही चहरे ओर नाम के साथ
पहचान नहीं आती.
बेहतरीन भाव पुर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,लाजबाब प्रस्तुति,....
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बढ़िया प्रस्तुति । आभार ।।
ReplyDeleteआदरणीया कविता जी हार्दिक अभिवादन
ReplyDeleteगुलाब की पंखुरियों से होंठों पर
नन्ही किरण सी वह मुस्कान
-----बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..इसी का नाम है जिन्दगी !!!
बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए हुए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअपनी मासूमियत के साथ
बढ़ती रही वह मुस्कान
पल पल खिलखिलाते इठलाती रही
होंठों से आँखों तक
ओर पहुंचती रही दिल तक.
क्या कहने
वाह
बहुत ही अनुपम भाव लिए सुंदर रचना....
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
अंजाम दिखा दिया...आपने...
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