में आई इस जहाँ में
बिना तुम्हारी इच्छा या मर्जी के
अपनी जिजीविषा के दम पर
सहा तुम्हारा हर जुल्म निशब्द
पर तोड़ नहीं पाए तुम मुझे
ये तुम्हारी हार थी.
अपनी हार पर संवेदनाओं का मलहम लगाते तुम
हंसती रही में तुम्हारी बचकानी मानसिकता पर
दर्द दे कर कन्धा देने से शायद मिलता हो
बल तुम्हारे पौरुष को
माँ के आंसुओं ने विवश किया मुझे
ओर में कर बैठी विद्रोह
की क्यों दूं में अपनी मुस्कान तुम्हे
क्यों रोशन करूँ तुम्हारी जिंदगी
जो ना कम हो सकी सदियों में
क्या इससे कम होगी तुम्हारी दरिंदगी
में अस्वीकार करती हूँ तुम्हे
धिक्कारती हूँ तुम्हारी हर कोशिश को
मेरे जाने के बाद
शायद तुम महसूस कर सको
कितने आदिम हो तुम
ओर रखो हमेशा याद
आई थी में अपने दम पर ओर
जा रही हूँ अपनी इच्छा से
तुम जीवित रहोगे जब तक
मुझे याद रखना तुम्हारी मजबूरी होगी
पर में तुम्हारी नहीं
अपनी माँ की स्मृतियों को ले जा रही हूँ
ओर मेरे साथ हैं माँ के आंसू
बेहतरीन तोहफे की तरह .
अस्वीकार कर तुम्हारी हर कोशिशे
ReplyDeleteशायद तुम महसूस कर सको
कितने आदिम हो तुम
जी, बहुत ही सुंदर रचना़
आपके सोचने का नजरिया सच में बिल्कुल अलग है।
sunder rachna.........bhavpurn....
ReplyDeleteबहुत ही गहरे को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteपर में तुम्हारी नहीं
ReplyDeleteअपनी माँ की स्मृतियों को ले जा रही हूँ
ओर मेरे साथ हैं माँ के आंसू
बेहतरीन तोहफे की तरह .
अनुपम भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
gambhir kavita.....
ReplyDeleteआफरीन और फलक सभी की याद दिला दी इस मार्मिक रचना ने .
ReplyDeleteमें अस्वीकार करती हूँ तुम्हे
ReplyDeleteधिक्कारती हूँ तुम्हारी हर कोशिश को
मेरे जाने के बाद
शायद तुम महसूस कर सको
कितने आदिम हो तुम
....अंतस को झकझोरती बहुत मार्मिक प्रस्तुति...कब बदलेगी हमारी मानसिकता बेटी के प्रति जो कभी वहसीपन की सीमाएं लांघ जाती है?...कब हम बेटी को बेटी के हिस्से का प्यार दे पायेंगे?...बहुत उत्कृष्ट रचना...
मैं नहीं हारी हूं .. आप हार गए ..
ReplyDeleteआपने इस कविता में बढिया सोंच दर्शाया है..
अभिव्यक्ति भी अच्छी है .. सुंदर रचना !!
में आई इस जहाँ में
ReplyDeleteबिना तुम्हारी इच्छा या मर्जी के
अपनी जिजीविषा के दम पर
gambhir bhav hai yaha
एक खबर यहां भी ..
ReplyDeleteबेटियों से नफरत का ऐसा सिला, दिल झकझोर देगा आपका!
आई थी में अपने दम पर और जा रही हूँ अपनी इच्छा से
ReplyDeleteतुम जीवित रहोगे जब तक मुझे याद रखना तुम्हारी मजबूरी होगी
अनुपम भाव, "मैं तो तुम्हें सहारा देने आई थी, तुम्हारे जीवन को कुछ अर्थ देने, पर तुम पुरुष प्रधान मानसिकता से बाहर आही नहीं सके, जाओ तुम मेरे साथ के क़ाबिल ही नहीं थे", कुछ ऐसे ही भाव हैं। सुंदर रचना, बधाई।
आई थी में अपने दम पर ओर
ReplyDeleteजा रही हूँ अपनी इच्छा से
तुम जीवित रहोगे जब तक
मुझे याद रखना तुम्हारी मजबूरी होगी
अनुपम भाव;
"मैं तो तुम्हें सहारा देकर तुम्हारे जीवन को कुछ अर्थ देने के लिए आई थी, पर तुम्ही सदियों पुरानी पुरुष प्रधान मानसिकता से बाहर नहीं असके, इसे तुम्हारा दुर्भाग्य ही कहूँगी, अफसोस और ग्लानि तुम्हारे हिस्से मे है, मेरे नहीं, जाओ तुम मेरे स्नेह त्याग और प्रेम के क़ाबिल ही नहीं बन सके।" शायद यही भाव है। बहुत सुंदर रचना, बधाई।
आई थी में अपने दम पर ओर
ReplyDeleteजा रही हूँ अपनी इच्छा से
तुम जीवित रहोगे जब तक
मुझे याद रखना तुम्हारी मजबूरी होगी
अनुपम भाव;
"मैं तो तुम्हें सहारा देकर तुम्हारे जीवन को कुछ अर्थ देने के लिए आई थी, पर तुम्ही सदियों पुरानी पुरुष प्रधान मानसिकता से बाहर नहीं असके, इसे तुम्हारा दुर्भाग्य ही कहूँगी, अफसोस और ग्लानि तुम्हारे हिस्से मे है, मेरे नहीं, जाओ तुम मेरे स्नेह त्याग और प्रेम के क़ाबिल ही नहीं बन सके।" शायद यही भाव है। बहुत सुंदर रचना, बधाई।
दमदार प्रस्तुति...
ReplyDeleteतुम जीवित रहोगे जब तक
ReplyDeleteमुझे याद रखना तुम्हारी मजबूरी होगी
पर में तुम्हारी नहीं
अपनी माँ की स्मृतियों को ले जा रही हूँ
SUNDAR BAHUT KHUBSURAT BHAWON BHARI ABHIWYAKTI
भाव बहुत सुन्दर हैं .
ReplyDeletebahot sunder! dil ko chhoo jati hai
ReplyDeleteअपनी हार पर संवेदनाओं का मलहम लगाते तुम
ReplyDeleteहंसती रही में तुम्हारी बचकानी मानसिकता पर
दर्द दे कर कन्धा देने से शायद मिलता हो
बल तुम्हारे पौरुष को
बहुत खूब..............
सलाम आपकी लेखनी को...
अनु