Friday, July 15, 2011

गुम

कुछ ढूंढती है   
मेरी आँखें   
 मन चकित सा 
देखता है       
कुछ जो खो गया  
कुछ जो ढूँढना है    
कुछ जो रीत गया    
कुछ जो अनजाना है    
डोलती हूँ  बौराई    
टटोलती अलगनी    
अलमारी किताबें    
तकिये के नीचे टटोलते हुए    
कहीं नहीं है   
कुछ नहीं है    
हताश सोचती हूँ      
क्या ढूंढ रही हूँ में ? 
क्यूँ हूँ अकेली ?
क्यूँ नहीं मिल रहा 
वो तुम्हारे होने का एहसास   
गुम सा है   जब से    
तुम रूठ गए हो !  

17 comments:

  1. रुठने से उपजे भाव गहरे हैं।

    आभार

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  2. मन की उलझन की स्वाभाविक अभिव्यक्ति ..!

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  3. उलझन को अच्छी तरह व्यक्त किया है आपने

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  4. बहुत खूब कहा है ।

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  5. मन की भावनाओं को अच्छी तरह शब्दों में पिरोया है .....धन्यवाद

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  6. एक अच्छी अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें आपको !

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  7. बहुत ही सुन्दर भाव...उससे सुन्दर वे शब्द जिनमें इन भावों को पिरोया गया है..सीधे दिल में उतारते हैं ...

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  8. वो तुम्हारे होने का एहसास
    गुम सा है जब से
    तुम रूठ गए हो !

    बहुत ही सुन्दर शब्द हैं
    आपका फोलोवर बन रहा हूँ ....

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  9. मन की उलझन की सुन्दर स्वाभाविक अभिव्यक्ति ..आभार..

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  10. क्यूँ नहीं मिल रहा
    वो तुम्हारे होने का एहसास
    गुम सा है जब से
    तुम रूठ गए हो !

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

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  11. "डोलती हूँ बौराई
    टटोलती अलगनी
    अलमारी किताबें
    तकिये के नीचे टटोलते हुए"
    अपनों से अलगाव,चाहे क्षणिक ही क्यूँ न हो,बेचैनी का सबब बन जाती है क्योंकि इससे विचलित मन की उलझन बहुत बढ़ जाती है. "बौराना" और "टटोलना" जैसे शब्द उस बेचैनी ("विरह-भाव") को जीवंत कर दे रहे हैं.आधुनिक परिवेश में आपकी कविता कहीं-न-कहीं सूरदास के विरह-वर्णन की याद दिला रही है.कविता जी,मान की छूती रचना.

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  12. क्यूँ नहीं मिल रहा
    वो तुम्हारे होने का एहसास
    गुम सा है जब से
    तुम रूठ गए हो !

    बेहतरीन ।

    सादर

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  13. हमारे सब के अहसासों को बडी खूबसूरती से व्यक्त किया है इस कविताने । कुछ ना कुछ हम सभी खोज रहे हैं ।

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  14. बहुत खूब कहा है

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  15. कुछ कविताएं मन में बस जाती है और अपनी सी लगती है .. आपकी इस कविता ने यही किया है .. मन में जा बसी है ..

    बधाई
    आभार

    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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