शादी के चार ही महीने बाद अपनी गृहस्थी ले कर गाँव में जाना पड़ा नेहा को । पति की पहली पोस्टिंग ,हेड ऑफिस पर रहना जरूरी था । छोटा सा गाँव उस पर साहब का तमगा,गाँव की राजनीती,किसी के घर आना जाना नहीं होता था.घर में पड़े पड़े उकता जाती थी नेहा। तभी गाँव के स्कूल में एक अध्यापक की नियुक्ति हुई,घर के पास ही उनका घर था.उनकी भी नयी नयी शादी हुई थी, नेहा को लगा चलो कोई तो मिला जिससे दो घडी बोल-बतिया लेगी.जल्दी ही जान पहचान हो गयी,और कभी कभी रचना के घर आना जाना भी होने लगा.एक शाम नेहा अपनी सखी से मिलने के लिए उसके घर गयी पर न जाने क्या हुआ नेहा को देखते ही रचना पलटी और घर के अंदर चली गयी। अपने को अपमानित सा महसूस कर नेहा उलटे पाँव घर लौट आयी। कई दिनों तक यही सोचती रही की आखिर हुआ क्या ?रचना ने भी इसके बाद कोई सम्बन्ध नहीं रखा.वह समझ गयी जरूर किसी ने कोई गलतफहमी पैदा कर दी है।
दो साल बीत गए,एक बार पति के ऑफिस के एक कर्मचारी को देखने हॉस्पिटल जाना हुआ ,वहा जाने पर पता चला की मास्साब के ससुरजी भी भर्ती है चलती बस से गिर गए है । इंसानियत के नाते उन्हें भी देखने गए,सभी रिश्तेदार इकठ्ठे थे रचना उन्ही के साथ खड़ी थी ,देखा कर पास आयी पर कुछ बात नहीं हुई। मास्टरजी से हाल -चाल पूँछ कर वापस आ गए.अगली सुबह फिर हॉस्पिटल जाना हुआ,तो पता चला की रचना के पिताजी गुजर गए है,वहा जाने पर मास्टरजी नेहा और उसके पति को तुरंत अलग ले गए और बोले अभी रचना और उसकी माँ को कुछ नहीं बताया है आप भी अभी कोई बात नहीं करें। तब तक रचना भी वहां आ गयी,नेहा की और देख कर बोली क्या हुआ ?और नेहा की आँखों में आंसू देख कर नेहा के गले लग कर फफक कर रो पड़ी।
उसकी पीठ सहलाते हुए नेहा ने जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सीखा ,समय बड़ा बलवान है ,कब किस को किस हाल में किसके सामने खड़ा कर दे नहीं पता.
drawit kar dene wala sansmaran. Galatfamiyan apno ke beech duri paida kar deti hai lekin sab kuchh bhul kar samay par saath dene wale hi sachhe dost hote hain... sunder bhasha.. sahaj abhivyakti...
ReplyDeleteatyant hi bhavuk aur marmik chitran...
ReplyDeletehradyasparsi lekhan. thanks
ReplyDeleteसमय को परिस्थिति भी कह सकते हैं। और आदमी परिस्थितियों का दास होता है।
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कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?