कितना पानी ढोलते है,मकान मालिक को तो पता ही नहीं,रोज़ रोज़ पाइप लगा कर नहाते है ,किससे कहे ,कैसे कहे? ये रोज़ ही महिला मंडली की चर्चा का विषय होता था.नयी बसी कालोनी में नित नए मकान बनते थे,जहा सामान की रखवाली के लिए चौकीदार होते थे,उन्हें टूबवेल चलने की आज़ादी होती थी और पानी बर्बाद करने की भी।
एक शाम जब ये चर्चा चल रही थी तभी मैं भी मंडली में शामिल हुई और पूछा माजरा क्या है,तब पता चला की सामने के मकान में रोज़ पानी की बर्बादी हो रही है। अपने अनुभव से ये तो जान ही लिया था कि पानी यदि बरसात के मौसम से ही सहेज कर नहीं रखा तो गर्मी में टूबवेल साथ नहीं देंगे।
दूसरे ही दिन शाम को २-३ लड़के पाइप चालू करके नहा रहे थे.पानी भरपूर बह रहा था। पानी बेकार बहता देख कर पारा चढ़ जाता है,और मुझे याद आ जाते है वो दिन जब मई-जून की गर्मी में सारा दिन बिना पानी पिए गुजारा करती थी .पैसे लेकर भी कोई पानी भरने को तैयार नहीं होता था..क्योंकि पानी का कोई स्त्रोत ही नहीं था।
बस पहुँच गयी वहा और उन लडको से कहा ,कितना पानी बहा रहे ?
बोले आंटीजी नहा रहे है।
ठीक है पर नहाने के लिए बाल्टी में भी तो पानी लिया जा सकता है ।
जी पर यहाँ पानी तो है न ।
हा पानी है पर इस तरह बहावोगे तो एक दिन ख़त्म हो जायेगा । तुम्हे मालूम है गाँवों में लोग कितनी मुश्किल से गुजारा करते है। तुम्हारे ही घर में औरते कितनी दूर से सर पर पानी ले कर आती है। किस गाँव के हो तुम लोग?
आंटीजी,निमाढ़ के।
तो तुम्हे नहीं मालूम वहा पानी की कितनी परेशानी है?
जी मालूम है।
फिर ?? फिर भी यहाँ मिल रहा है तो बेकार में बर्बाद कर रहे हो। अरे जीतनी जरूरत हो वापारो ,ज्यादा हो तो किसी जरूरतमंद को देदो,पर इस तरह बर्बाद तो मत करो।
जी आंटीजी,हम समझ गए ,हमने ये सोचा ही नहीं था,अबसे हम पानी बेकार नहीं धोलेंगे
टूब वेल तो कब से बंद हो गया था। उस दिन के बाद उन लडको ने कभी पानी बर्बाद नहीं किया।
मन को एक संतुष्टि मिली,पर कई प्रश्न भी उठ खड़े हुए ।
*जब लोगो ने देखा तो खुद उन लडको को ऐसा करने को मन क्यों नहीं किया?
*लोग सही बात कहने को बुरा बन्ने का खतरा क्यों समझते ?
*क्या यही बात मैं किसी पढ़े लिखे व्यक्ति को समझती तो वो भी इसे इतनी आसानी से समझ जाता?
तो जब भी आप अपने आस-पास कोई गलत kaam होते देखते है तो कुछ कहते क्यों नहीं? ये हमारा समाज है,हमारे सरोकार है इन्हें हमहें ही सुधारना है.और कई काम तो अक्सर अनजाने में होते है आप को बस एक बार बताना है ये ठीक नहीं है ,पर अधिकतर लोग इतनी भी जहमत नहीं उठाते,क्यों??????
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kyunki sir is hamaam me sab nange hain....koi beech line me ghuse to chillaate hai...fir kabhi khud ghusne ki koshish karte hain...pehle khud ko badalna zaruri hai
ReplyDeleteमेरे एक राजनैतिक संबंधी थे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधायक और उपनेता प्रतिपक्ष रहे. मैं उनके साथ बतौर सलाहकार काम करता था. वे पानी के प्रति बेहद संवेदनशील थे। उन्होंनें 90 के दशक में ही एक लम्बा आलेख समाचार पत्रों में लिखा था जिसका शीर्षक था 'पापी को पानी की तरह मत बहाईये'; आज वे याद आते हैं.
ReplyDeleteहम सबको अपना कर्तव्य समझते हुए पहल तो करना ही पड़ेगा.
कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन
ReplyDeleteपुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है- समीरलाल समीर। चुनाव अधिकारी थे ज्ञानदत्त पांडे। श्री पांडे पर काफी गंभीर आरोप लगे फलस्वरूप वे समीरलाल समीर को प्रमाण पत्र दिए बगैर अज्ञातवाश में चले गए हैं। अब श्रेष्ठ ब्लागरिन का चुनाव होना है। आपको पांच विकल्प दिए जा रहे हैं। कृपया अपनी पसन्द के हिसाब से इनका चयन करें। महिला वोटरों को सबसे पहले वोट डालने का अवसर मिलेगा। पुरूष वोटर भी अपने कीमती मत का उपयोग कर सकेंगे.
1-फिरदौस
2- रचना
3 वंदना
4. संगीता पुरी
5.अल्पना वर्मा
6 शैल मंजूषा
jwalant mudde par sarthak rachna. Kavitaji ! Saadhuvaad
ReplyDeleteपानी इस पिर्थवी का अमृत ......ये अमृत लोगों को आसानी से मिल जाता है इसलिए इसकी कद्र नहीं समझते है ......हा लेकिन जो इस अमृत की कद्र समझता है .....वो पानी को अनमोल समझता है ...........आपका प्रयास सार्थक रहा है ...ये पढ़ कर अच्छा लगा .
ReplyDeleteसही बात!सिर्फ़ बात करने से कुछ होने वाला नही है,शुरूआत खुद करना होगा!आंख खोलती और प्रेरणा देती पोस्ट।
ReplyDeleteaap sabhi ko dhanyvad....
ReplyDeleteकविता जी,संवेदनाशून्य होते समाज की आँखें खोलने का बेहतरीन प्रयास है जो आगे चलकर एक मिशाल बन जायेगा और बहुतों को नई राह दिखलायेगा.अत्यंत सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteआम जीवन में यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें तो आधी समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी... हम लोग थोड़े हैं जो सोचते हैं लेकिन विरले ही हैं जो इस दिशा में काम करते हैं... बहुत सुंदर और समीचीन आलेख... व्यक्तिगत तौर पर मैं अपने बेटे से टैप के बजाये बाल्टी और मग का उपयोग करने को कहता हू... स्वयं भी ऐसा करता हूँ.. काफी पानी बचता है इस से... रोज ही...
ReplyDeletethanx 4 nice post
ReplyDeleteSahee chot kee hai...
ReplyDeleteकित्ता अच्छा लिखा आपने ..ढेर सारी बधाई व प्यार !!
ReplyDelete_____________
और हाँ, 'पाखी की दुनिया' में साइंस सिटी की सैर करने जरुर आइयेगा !