Sunday, September 15, 2024

शिवा बाबा

 

शिवा बाबा
बहुत दिनों से विचार चल रहा था शिवा बाबा जाना है लेकिन दो घंटे का रास्ता गर्मी उमस के चलते मैं ही जाना टालती रही। शुक्रवार फिर मन बना लेकिन शनिवार लोक अदालत है इसलिए नहीं जा पाये फिर तय हुआ रविवार को चलेंगे।
आज सुबह निकलना तो जल्दी था लेकिन कुछ रविवार का आलस कुछ काम निपटा लेने का लालच दस साढ़े दस बज ही गये। अच्छा यह था कि आज धूप नहीं थी। खरगोन से बिस्टान होते धूलकोट से तितरानिया पाडल्या होते बुरहानपुर जिले में प्रवेश किया। सड़क कुछ डामर की कुछ कांक्रीट की कुछ गढ्ढेदार। पूरा आदिवासी इलाका छोटे छोटे फलिए दूर दूर खेत में एक एक झोपड़े आसपास खेत और उसके बाद सागौन के जंगल। बारिश न बची धरती को हरियाली की चादर से ढंक दिया था। रास्ते पर इक्का दुक्का वाहन की आवाजाही। पूरी तरह एक अलग दुनिया। छोटे छोटे गाँव में दैनिक जरूरत के सामान की एक दो दुकानें इसके अलावा न कोई बाजार न बड़े भारी मकान।
बस चले जा रहे थे शिवा बाबा।
दो तीन जगह रास्ता पूछा लोगों ने बड़े उत्साह से बताया आखिर वे उनके भी पूज्य हैं। गाड़ी मंदिर के सामने रुकी तब भी अंदाजा नहीं था इतना विशाल भव्य लेकिन सरल सहज मंदिर होगा। सामने बड़ा सा प्रांगण जिसके दोनों तरफ पेड़ों की कतारें। उसे पार करके हम पहुँचे एक कुएं पर जो तिरपाल से ढँका था। पानी इतना कि दो हाथ रस्सी से निकल जाये और पानी ऐसा कि एसिड से धुला कांच भी शरमा जाये। स्टील की बाल्टी में भरे पानी की पारदर्शिता देखकर चौंक गये हम। कुएं में झांका तो आश्चर्य से मुँह खुला रह गया। इतना साफ शुद्ध जल।
वहाँ हाथ पैर धोकर पीछे बने एक हाॅल में बैठे। हाँ मंदिर बारह बजे से एक बजे तक बंद रहता है। करीब दस मिनट बाद मंदिर खुला और हम दर्शन के लिए पहुँचे। साफ सुथरे मंदिर में शिवा बाबा की छोटी सी पिंडी मंदिर में सिर्फ पुरुषों का प्रवेश। हमने बाहर से दर्शन किये और सिंदूर चढ़ाया। बगल में देवी जी का मंदिर था जिसमें दुर्गा काली और गौरी की प्रतिमा थीं। दोनों ही मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बने थे। गोपुरम मूर्ति मंदिर की पेंटिंग का काम दक्षिण भारतीय कारीगरों ने किया है।
इसके बाद हम पहुँचे मंदिर के विशेष आकर्षण केंद्र पर।
जी हाँ इस मंदिर में एक पत्थर है थोड़ा गोल चौकोर सा सामान्य सा दिखने वाला पत्थर लगभग चालीस पचास किलो का। इस पत्थर को उठाने के बाद आदमी सीधा नहीं हो पाता और आधा एक फीट उठाकर रख देता है। यही पत्थर ग्यारह लोग एक तर्जनी से उठा लेते हैं। जी हाँ ग्यारह लोग चाहिये और पत्थर उठाने के पहले शिवा बाबा का आव्हान करना चाहिए। अगर किसी के भी मन में यह अहंकार आया कि मैं उठा लूँगा फिर यह पत्थर नहीं उठता। अब ग्यारह लोग कहाँ से आएँ? मंदिर में दर्शन करने आये लोगों को आवाज दी कुछ मंदिर के सेवादार थे सबने एक साथ जयकारा लगाया तर्जनी ऊंगली आगे की ओर देखते ही देखते चालीस पचास किलो के पत्थर को कमर की ऊँचाई तक उठाकर नीचे रख दिया।
बाद में बातचीत में पता चला कि पहले इसे सात लोग उठा लेते थे। शायद अब धरती पर पाप का बोझ ज्यादा हो गया है इसलिए ग्यारह लोग लगते हैं।
शिवरात्रि पर यहाँ बड़ा मेला लगता है हालांकि उस समय पत्थर को एक जंगले में रखा जाता है बाहर नहीं निकालते।प्रांगण में एक बड़ी तुला रखी थी। मन्नत पूरी होने के बाद लोग तुलादान करते हैं।
दर्शन के बाद चाय नाश्ते का आग्रह किया गया। साथ ही जानकारी मिली कि रामदेवरा का जागरण था रात में और आज अभी उनका भण्डारा चल रहा है। साहब जमीन पर बैठकर प्रसाद ग्रहण करेंगे या नहीं पूछने में संकोच था। मैंने तुरंत समाधान किया कि चाय नाश्ता न बनाया जाये हम रामदेवरा जी का प्रसाद ग्रहण करेंगे। सुनकर ही सेवादार लोग इतने प्रसन्न हो गये कि तुरंत आयोजन स्थल पर इंतजाम के निर्देश दिए गये। हम उनके पीछे वहाँ पहुँचे।
एक चौकी पर रामदेवरा जी विराजित थे दर्शन करके अंदर के साफ सुथरे कमरे में बिछात बिछाई गई और भोजन परोसा। सब्जी पूरी सूजी का हलवा दाल चावल। सादा लेकिन स्वादिष्ट भोजन। हलवा खाने के पहले लगा कि खूब मीठा होगा लेकिन बिलकुल नापतौल से डली शक्कर न मीठा न फीका। पता चला कि आज पूरा गाँव इस आयोजन में शामिल है। आसपास रहने वाले भी आज गाँव आ गये हैं। भोजन भी सभी ने मिलकर बनाया है।
भोजन प्रसाद पाकर हम बैठे और ग्रामीणों ने अपनी बिजली की समस्या साझा की। अच्छा यह था कि उसका समाधान भी था। उसके लिए जरूरी निर्देश देकर हम वहाँ से विदा हुए।
#शिवाबाबा
#बुरहानपुर

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