Saturday, July 6, 2019

पोर्टब्लेयर डायरी 2

2) #पोर्टब्लेयर #andmannikobar #portblair 
धरती की नमी सूरज की तपिश से ऊभचुभ होकर बादल बनने को बेताब थी और इस बेताबी की बैचेनी वह लोगों के चेहरों पर छोड़ जा रही थी। सबसे पहले तो हमने इस बैचेनी से बचने के लिए नारियल पानी पिया फिर गाड़ी में बैठकर होटल पहुँचे। रात्रि जागरण और ठिठुरन की थकान हावी थी। ड्राइवर ने बताया कि दोपहर तीन बजे सेल्यूलर जेल देखने जाना है तब तक का समय हमारा था। कमरे में सामान रख कर जल्दी से नहाया फिर नाश्ता किया और बिस्तर पर पीठ टिकाते ही आँख लग गई।
दोपहर पोर्टब्लेयर की ऊँची नीची पहाड़ी सड़कों से शहर की एक झलक देखते कुछ कुछ उसका मिजाज़ समझने की कोशिश करते हम काला पानी के नाम से कुख्यात उस जेल के गेट पर पहुँच गये जो पहली झलक में किसी पुरानी लेकिन बेहतर रख रखाव वाली सरकारी इमारत सी ही लगी। बाहर लोगों की लंबी कतार लगी थी। यहाँ हमें एक व्यक्ति हमारे टिकट के साथ मिला और कुछ ही देर में हम जेल के अंदर थे। एक बड़े से अहाते में जिसमें जेल की तीन तीन मंजिला दो भुजाएँ पूरी लंबाई में फैली थीं बीच में बना एक वाॅच टाॅवर जिससे सभी तरफ नजर रखी जा सकती थी और एक भुजा समुद्र की दिशा की तरफ थी। उस तरफ दूर तक फैला विशाल समुद्र इमारत को भयावह सन्नाटे से घेरे रखता था। एक जैसी आठ बाय दस फीट की कोठरियाँ जिसके रौशनदान और दरवाजे से कतरा भर आसमान दिखता था। ऐसी इमारत जहाँ से कहीं भागना संभव नहीं था उसमें दीवार के बीच आले बनाकर लोहे के दरवाजे में मोटी सांकल लगाई गई थी। इन्हीं दो भुजाओं के बीच रसोई घर फाँसी घर और दंड देने के लिए बनी कार्यशाला जिसमें तीस पौंड तेल निकालने जैसी सजा दी जाती थी। आज हमें मिली तमाम आजादी और सुरक्षा के बीच उसकी भयावहता समझना मुश्किल है लेकिन उस समय बरसों उस एकांत वास में हड्डी तोड़ मेहनत और मनोबल तोड़ने वाले व्यवहार और सजा के बीच रहने वाले उन 218 कैदियों की जीवटता को समझ पाना और भी ज्यादा मुश्किल है। अंग्रेज उनकी जीवटता और इरादों से किस कदर डरे हुए होंगे यह जानने के लिए लोहे के दरवाजे और सांकल की मोटाई ही काफी है।
शाम छह बजे से परिसर में लाइट और साउंड शो था जिसमें कालापानी का इतिहास और कैदियों को दी जाने वाली सजाओं को बताया गया। इस शो में लाइट का इफेक्ट झुटपुटे उजाले के कारण मध्यम ही रहा तो लाइट से भी बेहतरीन प्रयोग की काफी संभावना अपेक्षित थी। बाकी रही सही कसर फोटोग्राफी और रिकार्डिंग न करने के नियम तोड़ने वाले कर देते हैं। खैर कुल मिलाकर इतिहास से परिचित करवाने का अच्छा प्रयास है।
हम जब बाहर निकले अंधेरा घिर गया था दूसरा एक ड्राइवर लेने आया था जिसने हमें थोड़ी देर मार्केट में कुछ शापिंग करने का समय दिया और फिर वापस होटल छोड़ा।
अगले दिन सुबह साढ़े छह बजे की फेरी से हमें हैवलाक आयरलैंड जाना था जिसके लिए सुबह साढ़े पाँच बजे तैयार होना था ताकि चैक इन के लिये समय से पहुँच सकें। खाना खाकर जल्दी ही हम सो गये।
सुबह जब हम पोर्ट पर पहुँचे पहली बार नीले शांत समुद्र के दीदार हुए। आसमान साफ था और उसकी परछाई से सराबोर समुद्र भी उसी रंग में रंगा था। समुद्र में खड़ा छोटा सा जहाज जिसमें हमें जाना था और दूर तक गहरा नीला समुद्र जिसकी रक्षा करने के लिए बीच बीच में हरेभरे द्वीप सिर उठाये खड़े थे। तुरंत कैमरे मोबाइल निकाले न जाने कितने फोटो लेकिन मन नहीं भरा और जहाज (जट्टी) पर चढने का समय आ गया। जहाज के चलते ही थोड़ी ही देर में हम ऊपर डेक पर आ गए। वहाँ तेज म्यूजिक के साथ डांस चल रहा था साइड गैलरी में खड़े होकर तेजी से पीछे छूटते और आगे और गहरे समुद्र में घुसते जाना एक रोमांच पैदा कर रहा था। दूर गहनता को प्रमाणित करती लहरें और जट्टी के तल से पीछे छूटती दूधिया लहरें। ओह ये दृश्य कभी पूरी संतुष्टि क्यों नहीं देते बस देखते रहो देखते रहो लेकिन मन हटने को तैयार ही नहीं होता। अब तक सूरज बादलों के बीच से निकल कर पानी के वितान पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। अपने साम्राज्य में सूर्य चाहे पृथ्वी से कितना ही बड़ा हो लेकिन पृथ्वी सुत समुद्र के एक छोटे से हिस्से पर ही चकाचौंध फैला पा रहा था। अजीब है न जब मन समंदर की तरफ हो तो वह सूरज को भी छोटा बना देता है और क्यों न बनाए आखिर अभी समंदर ही तो मन के करीब था अचंभित करता हुआ। बाँयी ओर एक बेहद विशाल पहाड़ी द्वीप साथ साथ चल रहा था। कभी करीब हो जाता कभी दूर। दरअसल समंदर और द्वीप ऐसे हाथों में हाथ डाले रहते हैं यहाँ कि न द्वीप इसके विस्तार को रोकते हैं और न समुद्र इसके किनारों पर सिर पटक कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है। सभी कुछ बड़ा शांत सौहार्द्र पूर्ण और आप इस में खोये सोचते रह जाते हैं कि हम इंसान इनके सीने चीर कर भी इस सौहार्द्र का अंश मात्र भी खुद में समाहित क्यों न कर पाये?
लगातार पानी को देखते चक्कर आने लगते हैं लेकिन दृष्टि हटती नहीं। तभी पानी में बहती एक लाल भूरी पत्ती दिखती है जो न जाने किस किनारे से किस मंजिल पर पहुंचने के लिए निकली थी। उसकी मंजिल का अंदाजा लगा ही नहीं था कि एक छोटी सी चिड़िया ने पानी में डुबकी लगाई। वह पानी से निकलती तब तक जहाज आगे बढ़ गया और मैं बस कल्पना ही कर रही हूँ कि वह अपना भोजन तलाश कर बाहर आ गई होगी।
तभी ऊपर डेक से पानी में कुछ गिरा देखते समझते तब तक लहरों में समा गया। तभी फिर कुछ गिरा इस बार आंखें एलर्ट थीं और तुरंत पकड़ लिया यह डिस्पोजेबल कप था फिर थोड़ी थोड़ी देर में कप प्लेट पैकेट फिंकाते रहे। मैंने हर बार आगे को झुक कर ऊपर देखा। एक्जीक्यूटिव क्लास में सफर करने वाले दिल दिमाग से भी एक्जिक्यूटिव हों जरूरी तो नहीं हैं। कभी-कभी सोचती हूँ काश कोई ऐसी मशीन हो जो इंसान के सिविक सेंस का आकलन कर सके और उसके आधार पर ही उन्हें ऐसे खूबसूरत प्राकृतिक स्थानों पर जाने की अनुमति दी जाये तो शायद अगली पीढ़ी के लिए हम रहने लायक पृथ्वी बचा सकेंगे। 
डेक पर म्यूजिक जोर शोर से चल रहा था और मैं सोच रही थी कि काश यह थोड़ी देर के लिए बंद हो जाये सब थोड़ी देर बिलकुल चुप हो जायें और कुछ देर नीले समंदर और हरे टापुओं पर इठलाती हवा की खामोश सदाएं सुनी जा सकें।
वैसे मुझे कभी समझ नहीं आया कि शोर तो शहरों में भी काफी है और जब उसी में रहना है तो लोग इतनी दूर प्रकृति को अपने शोर से भरने क्यों चले आते हैं?
आपको समझ आये तो बताइयेगा जरूर।



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