बात तो बहुत छोटी सी है और कोई नई बात भी नहीं है रोज होती है और सैंकड़ों हजारों के साथ होती है। फिर भी उसका जिक्र करना चाहती हूँ पूछना चाहती हूँ अपने सभी मित्रों से खास कर पुरुष मित्रों से। उम्मीद नहीं है कि आप यहां जवाब देंगे न भी दें लेकिन इस पर विचार तो करें। अपने आप में और अपने बेटों में इस तरह का व्यवहार देखें तो सजग हो जायें। समझें कि सोच में बदलाव की जरूरत है।
कल फेसबुक पर एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई प्रोफाइल ठीक ठाक थी सौ से ज्यादा म्यूचुअल फ्रेंड थे स्वीकार कर ली। आज जय हिंद संदेश आया। मैसेंजर पर मैसेज भेजने से मना किया। कहा फेसबुक पर पोस्ट हैं उस पर विचार व्यक्त करें।
ऐसा तो होता ही रहता है। लेकिन सिर्फ यही नहीं होता। आहत होता है एक पुरुष का अहं कोई महिला किसी बात से मना कैसे कर दे?
जिस बात को वह सही मान रहे हैं उसे कोई महिला गलत कैसे कह रही है?
अगर दोस्ती की है तो उनकी मर्जी सर्वेसर्वा होना चाहिए महिला को पसंद नहीं है तो क्या फर्क पड़ता है? उसकी पसंद नापसंद के हमारे लिए कोई मायने नहीं हैं।
फेसबुक पर भी ना सुनने में जो पौरुष आहत हो जाता है शब्द बाण चला कर महिला को नीचा दिखाने की कोशिश करता है फिर अनफ्रेंड ब्लाक कर अपने अहं की तुष्टि करता है ऐसे पौरुष के साथ आम जिंदगी में बराबरी करती लडकियों महिलाओं के लिए कितनी बड़ी बड़ी मुसीबतें हैं।
कैसे मान लें फेसबुक के ये आहत पौरुष असल जिंदगी के भावी बलात्कारी नहीं होंगे।
हम दुखी होते रहेंगे बलात्कार की घटनाओं से सरकार से प्रशासन से जवाब मांगते रहेंगे अपनी बेटियों को सतर्क करते रहेंगे लेकिन जब तक पौरुष की सही परिभाषा नहीं समझी जायेगी बलात्कार होते रहेंगे।
कविता वर्मा
कल फेसबुक पर एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई प्रोफाइल ठीक ठाक थी सौ से ज्यादा म्यूचुअल फ्रेंड थे स्वीकार कर ली। आज जय हिंद संदेश आया। मैसेंजर पर मैसेज भेजने से मना किया। कहा फेसबुक पर पोस्ट हैं उस पर विचार व्यक्त करें।
ऐसा तो होता ही रहता है। लेकिन सिर्फ यही नहीं होता। आहत होता है एक पुरुष का अहं कोई महिला किसी बात से मना कैसे कर दे?
जिस बात को वह सही मान रहे हैं उसे कोई महिला गलत कैसे कह रही है?
अगर दोस्ती की है तो उनकी मर्जी सर्वेसर्वा होना चाहिए महिला को पसंद नहीं है तो क्या फर्क पड़ता है? उसकी पसंद नापसंद के हमारे लिए कोई मायने नहीं हैं।
फेसबुक पर भी ना सुनने में जो पौरुष आहत हो जाता है शब्द बाण चला कर महिला को नीचा दिखाने की कोशिश करता है फिर अनफ्रेंड ब्लाक कर अपने अहं की तुष्टि करता है ऐसे पौरुष के साथ आम जिंदगी में बराबरी करती लडकियों महिलाओं के लिए कितनी बड़ी बड़ी मुसीबतें हैं।
कैसे मान लें फेसबुक के ये आहत पौरुष असल जिंदगी के भावी बलात्कारी नहीं होंगे।
हम दुखी होते रहेंगे बलात्कार की घटनाओं से सरकार से प्रशासन से जवाब मांगते रहेंगे अपनी बेटियों को सतर्क करते रहेंगे लेकिन जब तक पौरुष की सही परिभाषा नहीं समझी जायेगी बलात्कार होते रहेंगे।
कविता वर्मा
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के शहीदों की ९९ वीं बरसी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-04-2017) को "बदला मिजाज मौसम का" (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'