अवतरण
नर्मदा पर बने बाँध के किनारे जल महोत्सव की खबर सुन कर रामधन ने वहाँ जाने का मन बना लिया। नर्मदा मैया के किनारे तो पीढ़ियाँ गुजर गईं यह मैया का नया अवतार है उनके दर्शन से कैसे चूके। लगे हाथ दो डुबकी भी लगा लेंगे पुण्य मिलेगा। जब से गाँव छोड़ कर शहर आये हैं तीज त्यौहार अमावस पूनो स्नान के पुण्य से वंचित हो गए। शहर के पाप संचित होते जा रहे हैं। इतवार को जाने का तय किया पत्नी ने कहा सब्जी पूरी बना कर रख लेते हैं तो रामधन ने झिड़क दिया। नरमदा जी के किनारे महोत्सव में खाने के भंडारे चल रहे होंगे उस प्रसादी को छोड़ कर तू घर की सब्जी पूरी खायेगी। बच्चे सुनकर खुश हो गए लेकिन पत्नी का मन नहीं माना उसने रात में ही पाँच सात रोटी बना कर रख ली कि सुबह चाय के साथ खा लेंगे।
बच्चे सुबह बिना आवाज़ लगाए ही उठ गए फिर नहा कर जायें या नरमदा में ही डुबकी लगायें पर बहस छिड़ गई। जाने में देर हो रही थी तय हुआ आधे घंटे में जो नहा लें ठीक बाकी पुण्य कमा लेंगे। पत्नी और बेटी अच्छे दिखने की चाह में नहा लीं दोनों लड़के नदी में मस्ती करने और रामधन पुण्य के लालच में नहीं नहाये।
सभी मोटर सायकल पर सवार हो गए कपड़ों के झोले में पत्नी में बासी रोटी कागज में लपेट कर छुपा दीं। बूंदी भजिये के नाश्ते के लालच में किसी का मन नहीं था खाने का। पक्की सड़क पर तो मन उमंग से चलता रहा पर टूटी फूटी सिंगल रोड ने पेट के चूहों को जगा दिया। बच्चों ने भूख राग शुरू कर दिया। रास्ते में धूल उड़ाती बड़ी बड़ी गाड़ियों को जाते देख रामधन आशंकित हो गया। गाँव में नर्मदा किनारे ऐसी बड़ी बड़ी गाड़ियाँ तो कभी नहीं आती थीं। शहर के लोगों के आने का मतलब बहुत ही बड़ा मेला या शहरों में पाप या पापियों का बढ़ जाना। इसका एक मतलब यह भी था कि जलमहोत्सव खूब महंगा होगा।
रामधन ने सड़क किनारे ठेले पर गाड़ी रोक कर सबको पोहे जलेबी का नाश्ता करवा दिया रोटियाँ झोले में कसमसाती रहीं। गाड़ी बहुत दूर रोक कर धूल भरे रास्ते पर तेज़ धूप में पैदल चलते रामधन को कई बार अंदेशा हुआ कि कहीं वे गलत जगह तो नहीं आ गए। नर्मदा किनारे की हरियाली बड़े बड़े पत्थर खेत कुछ भी तो नहीं था वहाँ। बैलगाड़ी वाले दस दस रुपये में ले जा रहे थे उसने दो छोटे बच्चों को बैठा दिया। बैलगाड़ी की सवारी के पचास रुपये देने को उसका गंवई मन तैयार नहीं हुआ।
रास्ते में लगे छोटे छोटे तंबू ने फिर उसे ढाढस बंधाया कि यहाँ भी गाँव खेड़े के लोग आये हैं बेचारे तंबू में रात काट रहे हैं। सबकी टिकिट लेकर बड़े से दरवाजे से अंदर जाते हुए उसे अपने जैसा आदमी गेट पर दिखा तो उसने पूछ लिया ये एक जैसे तंबू गाँव वालों के लिए सरकार ने लगवाये हैं इनमे रुक सकते हैं ?
एक रात का किराया सुन उसकी साँस रुक गई और वह अपने जैसे दिखने वाले गार्ड की विद्रूप हंसी से खुद को बचाता अंदर घुस गया। मैया के विशाल अवतार को देख श्रद्धा से उसने सिर झुका लिया लेकिन हैरान था वहाँ कोई स्नान नहीं कर रहा था। नदी में बड़े बड़े जहाज खड़े थे जिनकी भव्यता उसे पानी का स्पर्श करने से रोक रही थी।
छोटी बड़ी नावें जहाज की सवारी का टिकिट देख कर उसका महीने का बजट लहरों पर हिलोरे लेने लगा। उसने मायूसी से पत्नी की तरफ देखा। पत्नी ने इतने गहरे पानी और इतनी तेज़ नाव में बच्चों को बैठाने से मना करते हुए वहाँ से तुरंत चलने को कहा। बच्चे भुनभुनाये और रामधन उन्हें समझाता रहा कि पानी कितना गहरा है।
ऊँची दिवार पर चढ़ना या मोटे मोटे पहियों वाली गाड़ी के तीन चक्कर चार सौ रुपये में लगाना उसके बस के बाहर था। वह लोगों को सब करते देखता रहा और मन ही मन उनकी कमाई का हिसाब लगाने की कोशिश करता रहा जो भूखे पेट असंभव लग रहा था।
नाश्ते में कुछ चीज़े उसकी चादर पर रखा सकती थीं कुछ बच्चों की मायूसी देख पत्नी ने आँखों ही आँखों में पैरवी की। रामधन ने भी सोचा यह खर्चा तन से लगेगा। चार अलग अलग चीज़ों का आर्डर देकर वह रेस्टॉरेंट से बाहर निकल आया। एक बार चक्कर लगा कर वह भंडारे वाली जगह खोजना चाहता था। उसने और पत्नी ने आधा आधा डोसा खाया और देर होने का हवाला देकर बच्चों को लेकर बाहर आ गया।
नर्मदा मैया के नए अवतरण से वह हैरान था उसने फिर भी तसल्ली की एक सांस ली मानों किसी आधुनिका को बहुत पास से देख लिया हो और गाड़ी सड़क किनारे गुमटी पर रोक चाय का आर्डर देते पत्नी से कहा झोले से रोटियाँ निकाल ले वापस ले जाकर क्या करेगी।
कविता वर्मा
सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार.
अब कहां रह गये वो नर्मदा किनारे के गांव और वहां होने वाले भंडारे? सब कुछ शहरीकरण में खो गया. बहुत सुंदर पोस्ट.
ReplyDeleteरामराम
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#हिंदी_ब्लागिंग के पुनरागमन पर सभी को शुभकामनाओं सहित
ReplyDeletebehatareen post ke liye badhai
बेहतरीन!!
ReplyDeleteअंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अन्नत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जी शुक्रिया उन सभी का जिन्होंने इसे मुहीम बनाया।
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