पार्क की उस बेंच पर वे दो लड़के हमेशा दिखते थे मोबाइल में सिर घुसाये दीन दुनिया से बेखबर। रमेश और कमल रोज पार्क में घूमने आते उन्हें देखते और मुंह बिचकाते ये नई पीढ़ी भी एकदम बर्बाद है। कभी-कभी उनका मन करता उन्हें समझायें कि इस तरह उनकी आंखें और दिमाग खराब हो जायेगा पर युवा पीढ़ी की बदमिजाजी झेले हुए थे इसलिए हिम्मत नहीं होती थी।
उस दिन एक लड़के ने दूसरे को अपना मोबाइल दिखाते हुए कुछ पूछा तो रमेश जी के कान खड़े हो गए। उन्होंने मोबाइल में देखना चाहा पर देख न पाये। कमल बाबू की तरफ देखा वह भी अचरज में थे। रहा न गया तो उस लड़के से पूछ ही लिया 'आप लोग मोबाइल में क्या करते रहते हो और अभी आप किस बारे में बात कर रहे थे।
लड़के ने उन दोनों को देखा फिर एकदूसरे को देखते हुए बोले हम पावर ब्रेक के मैकेनिज्म को पढ कर समझने की कोशिश कर रहे हैं। गरीब और स्वर्ण परिवार से होने के कारण कालेज में एडमिशन नहीं ले पाये पर हमारे दोस्त कालेज में हैं वे लेक्चर के वीडियो हमें भेज देते हैं जिन्हें देखकर हम सीखते हैं और एक गैराज में काम करते हुए प्रेक्टिस करते हैं। कभी-कभी इंटरनेट से भी लेक्चर डाउनलोड कर लेते हैं।
रमेश जी बहुत प्रभावित हुए फिर बोले लेकिन बिना डिग्री के तुम कहीं नौकरी तो नहीं पा सकते।
यह सुनकर वे दोनों मुस्कुराने लगे हां नौकरी तो नहीं पा सकते पर अपना गैरेज खोल कर दूसरों को नौकरी तो दे सकते हैं।
कविता वर्मा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
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