समाज सेवा प्रकोष्ठ का तीन दिवसीय बाल व्यक्तित्व विकास शिविर देवास जिले के गंधर्व पुरी में लगा। आज दूसरा दिन था और मुझे बच्चों को कहानियों के माध्यम से साहित्य और शिक्षा से जोड़ना था। सुबह लगभग आठ बजे हम इंदौर से चले। गाँव की ही एक अधबनी धर्मशाला में शिविर लग रहा था। साफ सुथरी बिसात बिछी थी पंखे चल रहे थे जो गर्मी से राहत देने की भरसक कोशिश में लगे थे।
इसके पहले एक शिविर में मैंने कहानियाँ सुनाई थीं पर वहाँ छोटे बच्चे थे यहाँ सभी उम्र के बच्चे थे आठ नौ साल से लेकर सत्रह अठारह साल तक के। स्वाभाविक है अब कंटेंट में बदलाव करना जरूरी था। कुछ देर बच्चों की गतिविधियों को देखते मैंने एक दिशा निर्धारित की।
सामान्य बात चीत से शुरू हुई गोष्ठी बच्चों के ज्ञान पढ़ने की आदत और इंटरनेट के उपयोग तक पहुंची। इंटरनेट पर उपलब्ध ज्ञान और कथा कहानियों में उपलब्ध ज्ञान के अंतर को बताते हुए कहानियों के माध्यम से व्यक्तित्व निर्माण सोच और नज़रिए का विकास भाषा बोली का विकास जैसी बातें बच्चों को बताई।
एक बात उभर कर आई कि ग्रामीण बच्चों में पढ़ने की आदत बिलकुल नहीं है ना ही उनके पास किताबें हैं और ना ही कोई प्रेरणा। स्कूल में लाइब्रेरी है यह बात भी कई बच्चों को नहीं पता। जिन्हे पता है उन्होंने भी कभी वहाँ से पढ़ने के लिए पुस्तकें नहीं ली। अखबार पढ़ने की आदत भी बिलकुल नहीं है। हाँ कुछ बड़े बच्चे जो इंटरनेट का उपयोग करते हैं वे भी वहाँ से सिर्फ गाने डाउन लोड करते हैं या शायद कुछ ऐसी साइट्स देखते हैं जो वे बता नहीं सकते थे या व्हाट्स ऐप या फेस बुक चलाते हैं। यहाँ तक की बच्चों को नए फ़िल्मी गानों के अलावा पुराने फ़िल्मी या जनगीत भी नहीं पता।
गाँव में हर घर पक्का है सड़के पक्की है बच्चों का रहन सहन पहरावा भी साफ सुथरा और व्यवस्थित दिखा। ऊपरी तौर पर देखा जाए तो बहुत तरक्की दिखी लेकिन वैचारिक बौद्धिक तरक्की में कहीं बहुत पीछे छूट गए। ऐसा लगा कि इन बच्चों के साथ बैठ कर बेतकल्लुफी से बात करने की बहुत जरूरत है। कई ऐसी बाते हैं जिन्हे बताया जाना चाहिए कई ऐसे प्रश्न हैं जिन्हे सुलझाया जाना चाहिए। उनको दिशा देने की बहुत जरूरत है।
एक और बात जो उभर कर आई बच्चे चाहे जिस भी उम्र के हों कहानियाँ बड़े ध्यान से सुनते हैं और उनमे निहित संदेशों को भी बखूबी समझ लेते हैं जो हम उन्हें देना चाहते हैं। गंधर्व पुरी एक ऐतिहासिक स्थल है यहाँ एक प्राचीन शिव मंदिर है। मंदिर से कई पुरानी मूर्तियाँ निकली हैं जिनमे से कई तो वहीं रखी हैं तो करीब ढाई तीन सौ मूर्तियाँ पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में रखी हैं। यहाँ घर बनाने के लिए नींव की खुदाई करने पर भी मूर्तियाँ निकलती हैं।
चिलचिलाती धूप में 44 डिग्री टेम्प्रेचर में मंदिर संग्रहालय घूमकर रास्ते में भोजन करते हुए लगभग चार बजे घर पहुंचे। एक सार्थक दिन रहा जिसने बहुत कुछ सिखाया और बहुत कुछ सिखाने को प्रेरित किया।
कविता वर्मा
आपका दिन सार्थक बीता ये अच्छी बात है ... अच्छी रिपोर्ट है ...
ReplyDeleteशुक्रिया जी
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ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-6-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2368 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बढ़िया विवरण रहा, मंगलकामनाएं आपको
ReplyDeleteछोटे बच्चों को कहानियां सुना कर आपका दिन निश्चित रूप से सार्थक हो गया हैै। आज के इस दौर में जब बच्चे किताबों और कहानियों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे समय में आपके द्धारा कहानियां सुनाने निर्णय सचमुच बहुत ही स्वागत योग्य है।
ReplyDeleteछोटे बच्चों को कहानियां सुना कर आपका दिन निश्चित रूप से सार्थक हो गया हैै। आज के इस दौर में जब बच्चे किताबों और कहानियों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे समय में आपके द्धारा कहानियां सुनाने निर्णय सचमुच बहुत ही स्वागत योग्य है।
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