विवेक पूर्ण उपयोग जरूरी है
सोशल नेटवर्क ने जिस तरह लोगों को जोड़ा है उन्हें मनोरंजन और जरूरी सूचनाओ से अवगत कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है वह न अनदेखी की जा सकती है न ही उसके महत्व को अस्वीकार किया जा सकता है। फोन और फिर मोबाइल ने भी लोगों को जोड़ा लेकिन उसके साथ बड़े भारी बिल की चिंता भी जुडी रहती थी। लेकिन व्हाट्स एप ने इस चिंता को काफी हद तक कम किया है। लोग अपने परिवार के सदस्यों सहेलियों दोस्तों के ग्रुप बना कर आपसी बातें शेयर करते हैं जो सभी के बीच होती हैं। एकदम ड्राइंग रूम में बैठ कर होने वाली चर्चाओ जैसी बातें हंसी मजाक चुटकुले सभी कुछ तो होता है यहाँ। दोस्तों के ग्रुप में सूचनाओ का आदान प्रदान आसानी से होने लगा है तो स्टूडेंट्स अपने जरूरी डिस्कशन भी यहाँ कर लेते है आने जाने में टाइम बर्बाद किये बिना तो प्रोफेशनल्स अपनी कामकाजी उलझनें उपलब्धियाँ। साहित्य जगत में ब्लॉग के बाद व्हाट्स एप साहित्यिक गतिविधियों के लिए एक नया साइट बन गया है जिसमे साहित्यिक सामग्री पर लाइव चर्चा संभव हुई है।
तकनीकि जब कुछ सुविधा देती है तो उस सुविधा के साथ कुछ सावधानियाँ रखने की जरूरत भी होती है। ये विडम्बना ही है कि हमारे यहाँ का प्रबुद्ध वर्ग भी ऐसी सावधानियों की ओर से बिलकुल लापरवाह होता है।
मीना ने सहेलियों के ग्रुप पर आया सांप्रदायिक भड़काऊ मैसेज अपने फैमिली ग्रुप पर डाल दिया बिना ये सोचे की परिवार की बातों में ऐसे सांप्रदायिक मैसेज का क्या काम है? उस ग्रुप में बच्चे भी जुड़े थे उन्होंने भी उस मैसेज को बिना ठीक से पढ़े समझे अपने दोस्तों के ग्रुप पर फॉरवर्ड कर दिया। इसका क्या अौचित्य है ये जानने की या बताने की किसी ने जरूरत ही नहीं समझी। बस सब एक गलत सन्देश के वाहक बनते चले गए। किसी ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में नहीं सोचा।
राधा के पास किसी लड़की के किडनैप होने का मैसेज आया उसने बिना सोचे समझे उसे अपनी सहेलियों के ग्रुप पर भेज दिया। उसमे एक फोन नंबर भी दिया गया था। अब नंबर सच था या गलत लड़की को सही में किडनैप किया गया था या उसे बदनाम करने की कोई साजिश थी ये जानने की किसी ने जहमत नहीं उठाई। अगर वह सन्देश गलत था तो उस सन्देश और फोन नंबर की वजह से उस परिवार को कितनी मानसिक तकलीफ उठानी पड़ी होगी। अगर किसी का अपहरण हुआ है तो वह यूं खुले आम सड़कों पर तो नहीं घूम रहा होगा की किसी की नज़रों में आ जाये और पुलिस को खबर हो जाये।
विनीता के पास एक मैसेज आया दूर किसी शहर में किसी को किसी खास ग्रुप के ब्लड की जरूरत है उसने उस मैसेज को अपने शहर की सहेलियों के ग्रुप पर डाल दिया बिना ये सोचे की यहाँ बैठ कर कोई कैसे इतनी दूर अस्पताल में पड़े व्यक्ति की मदद कर पायेगा? बस वह मैसेज ऐसे ही एक ग्रुप से दूसरे ग्रुप तक घूमता रहा बिना किसी विचार या ठोस कार्यवाही के।
धार्मिक राजनैतिक अन्धविश्वास युक्त मैसेज यहाँ तेज़ी से फैलते हैं जिसमे खुद की कोई खास विचारधारा नहीं होती बस हमारे पास आये हैं इसलिए हमें इन्हे आगे भेजना है यही सोच होती है। कई सन्देश तो इस धमकी के साथ आते हैं कि अगर इसे आगे नहीं भेजा तो आपका कोई अहित होगा। क्या हम मन से इतने कमजोर हैं कि कोई सन्देश हमारा हिट अहित कर सके ? लेकिन बस एक सोच रहती है भेज दो भेजने में क्या जाता है ? ऐसी चीज़े धीरे धीरे हमें धर्म भीरु दब्बू बनाती हैं।
दुःख और अचरज तो तब होता है जब महिलाओ पर बने जोक्स सबसे ज्यादा महिलाये ही एक दूसरे को भेजती हैं। चलिए हँसने के लिए इन्हे भेजा जाता है और कोई इन्हे गंभीरता से नहीं लेता वहाँ तक तो ठीक है लेकिन कई सन्देश तो इतने अपमान जनक होते हैं कि उन्हें पढ़ कर भेजने वाले की अक्ल पर तरस आता है।
कभी सोचा है कि क्या आपके ग्रुप के सभी मेंबर्स इन्हे पढ़ते भी हैं ? कभी ध्यान दीजिये एक ही ग्रुप पर एक ही मैसेज कई कई बार भेजा जाता है। किसी ने भेजा आपने नहीं पढ़ा आपने भेजा किसी और ने नहीं पढ़ा लेकिन फिर भी मोबाइल हमेशा हाथ में होता है हर दो मिनिट में चेक किया जाता है कोई नया मैसेज आया क्या ?
एक और ट्रेंड है सुबह होते ही गुड मॉर्निंग करते फोटो भेजने का अगर आप दो चार ग्रुप के मेंबर हैं तो समझ लीजिये सुबह सुबह आपके मोबाइल में ४० / ५० फोटो आ जायेंगे अब जब भी फुर्सत मिले उन्हें डाउन लोड करिये फिर डिलीट करिये बिना हिसाब लगाये की इसमे आपका कितना समय और नेट वाउचर का पैसा जाया होता चला जाता है। घर के लोगों के साथ सुबह बिना गुड मॉर्निंग बोले हो सकती है लेकिन समूह पर आप नज़र अंदाज हो जाएगी अगर आपने फूलों के गुलदस्ते या राधा कृष्ण साईं बाबा के फोटो नहीं भेजे।
धार्मिक फोटो से साथ ही कर्मकांड फ़ैलाने का काम भी इन दिनों खूब हो रहा है। साईं बाबा का दुग्ध स्नान करता फोटो लाखों चूड़ियों से सुसज्जित देवी का चित्र और ऐसे ही कई। समझ नहीं आता जिन साईं बाबा ने फकीरी में जीवन जिया वे इस तरह दूध स्नान से कैसे प्रसन्न होंगे। लेकिन उनके भक्तों के पास इतना सोचने का समय ही कहाँ है वे तो बस अंध श्रद्धा वश फोट मैसेज आगे बढ़ाते जा रहे हैं।
किसी सोशल या पर्सनल इवेंट के समय तो पढ़े लिखे प्रबुद्ध कहे जाने वाले लोग भी ऐसे मैसेज भेजते हैं कि उनके पढ़े लिखे होने पर शक होने लगता है। फिर चाहे विराट कोहली के आउट होने पर अनुष्का को पनौती कहने वाले मैसेज हों या शाहिद की शादी कम उम्र मीरा से होने और इसे करीना से बदला करार देने वाले मैसेज हों लोगों के दिमागी दिवालियेपन पर अफ़सोस होता है और ऐसे सन्देश ऐसी पढ़ी लिखी महिलाये भी आगे बढाती हैं जो स्वयं को सामाजिक सरोकारों की पुरोधा समझती हैं।
नेपाल में भूकंप के दौरान वहाँ के कई फोटो तेज़ी से फैले जिनमे कई वहाँ बिखरी लाशों के बिलखते औरतों और बच्चों के थे तो कई संदेश अगले भूकंप के झटकों के बारे में। जबकि भूकंप की पूर्व चेतावनी नहीं की जा सकती है। ऐसे संदेशों से वहाँ फंसे लोगों में बेवजह घबराहट फैली खाने पीने की वस्तुओं के दाम अचानक कई गुना बढ़ गए और संदेश करने वाले अपने इस असामाजिक कृत्य से बेपरवाह ही रहे।
इस माध्यम से जानकारी युक्त सन्देश भी भेजे जाते हैं लेकिन उन संदेशों की प्रमाणिकता की जाँच कोई नहीं करता। आयुर्वेदिक नुस्खों की तो भरमार है यहाँ। आप किसी तकलीफ का जिक्र भर करिये और देखिये फटा फट दो चार उपाय बता दिए जायेंगे। इन पर विश्वास उतना ही होता है जितना ये उपाय बताने वाले पर आपका विश्वास है। उपाय काम कर गया तो ठीक नहीं किया तो कौन सा आपने फीस दी है बल्कि कुछ समय बाद तो ये भी भूल जायेंगे कि ये उपाय बताया किसने था आखिर तो ग्रुप में बहुत सारे लोग हैं।
हाँ जो लोग नए नए इस माध्यम से जुड़ते हैं उन्हें तो आने वाले हर सन्देश नए लगते हैं उनकी सक्रियता से तो डर ही लगता है। मजे की बात ये है कि कई सन्देश इस टैग लाइन के साथ होते हैं कि मार्केट में नया है जल्दी आगे भेजो। ये एक तरह का मानसिक प्रभाव पैदा करता है खुद की पीठ थपथपाने को प्रोत्साहित करता है कि हमने इतना बढ़िया मैसेज सबसे पहले भेजा और फिर बार बार चेक करते हैं कि कितने लोगों ने इसे पढ़ा या इस पर वाह वाह की कितनी तालियाँ बजीं और कितने लाइक्स आये। देखा जाये तो ये बाजार वाद में आपको पूरी तरह जकड़ने का तरीका होता है जिसमे आप फंसते जाते हैं। अपना बहुमूल्य समय इस पर जाया करते हैं और अपने जरूरी काम या शौक का समय इस पर बर्बाद कर बैठते हैं और इन सबका अफ़सोस हावी होता जाता है।
ऐसा नहीं है कि इसे बिलकुल बंद ही कर दिया जाना चाहिये। आपा धापी की इस जिंदगी में दोस्तों घर परिवार वालों के संपर्क में रहने का ये बहुत अच्छा साधन है बस जरूरत है इसके सदुपयोग की।
* अपने व्हाट्स ऍप के समय को समूह के सभी साथियों की सहमति से सीमित करिये। तय करिये ऐसा समय जब अधिकतर लोग फुर्सत में हो कर इस पर बात कर सकें। बाकि समय या तो इसे बंद करिये या अपने मन को कड़ा करिये कि आप बार बार मैसेज चेक नहीं करेंगी।
* समूह में सबकी रूचि किस मे है ये तय करिये फोटो विडिओ चुटकुले या आपसी बातचीत उसके अनुसार समय सारिणी बनाइये। हफ्ते में एक दिन निश्चित समय पर सब चैट करेंगे ऐसा कुछ तय करिये ताकि आप अपनों से जुड़े रह सकें उनके हालचाल पता हों।
* अपने समूह के नियम बनाइये जिसमे अश्लील सांप्रदायिक सामग्री महिलाओं के बारे में फूहड़ जोक्स जैसी सामग्री शेयर ना की जाये। परिवार और दोस्तों के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान भाव पैदा करना हम महिलाओं की ही जिम्मेदारी है।
* व्यक्ति विशेष को निशाना बना कर होने वाली टिप्पणियों से बचिये।
* सुनिश्चित करिये हफ्ते में कम से कम एक दिन कुछ रोचक ज्ञानवर्धक सामग्री साझा की जाएगी जिससे सभी लाभान्वित होंगे। उस पर चर्चा की जा सकती है।
तकनीकि एक सुविधा हमें प्रदान करती है लेकिन उस सुविधा का विवेक पूर्ण उपयोग हमें ही सुनिश्चित करना है।
व्हाट्स एप पर किसी भी तरह के धार्मिक राजनैतिक सामाजिक व्यवस्था को आहत करने वाले संदेश गंदे चित्र या वीडियो नहीं पोस्ट करें।
किसी वर्ग संप्रदाय भौगोलिक क्षेत्र विशेष से संबंधित किसी भी प्रकार के भड़काऊ बहकाने वाले संदेश पोस्ट ना करें।
क्या आप जानते हैं व्हाट्स एप विश्व की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है।
व्हाट्स एप की कीमत जमैका , आइसलैंड उत्तरी कोरिया की जी डी पी से ज्यादा है।
लगभग पचास करोड़ लोग व्हाट्स एप का उपयोग करते हैं।
व्हाट्स एप में लगभग 55 कर्मचारी हैं जो सभी अरबपति हैं।
हर रोज़ लगभग दस लाख लोग इससे जुड़ते हैं।
लगभग पाँच करोड़ फोटो इस पर शेयर किये जाते हैं।
इस कंपनी की कीमत नासा के साल भर के बजट जो लगभग १७ अरब डॉलर है उससे ज्यादा है।
इस सबमे हम आप बिना सोचे समझे अपना समय और पैसा लगा रहे हैं जो हमारे किसी काम नहीं आ रहा है। ये पैसा बाहर जा रहा है टेलीकॉम कम्पियों की जेब में जा रहा है और हम खुश हैं कि हम कितने सक्रिय हैं। जरा रुकिए और सोचिये ये कितना जायज है।
कविता वर्मा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-07-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2396 दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद