गरीब के लिये पड़ाव क्या और मंजिल क्या ? रास्ता आसान क्या और कठिन क्या ? उसे तो जब तक सांस है तब तक चलते जाना है अपनी मजबूरियों के साथ। इसी रास्ते में कहीं आम की छाँव मिल जाये तो सुस्ता लिए और कभी केरी सी कोई ख़ुशी मिल जाये तो उसे चुन ले। रोड़े काँटे पत्थर तो वहाँ भी मिलते हैं तब अफ़सोस भी होता है कि काश आसान राह चुनी होती पर जब सुस्ता कर आगे बढ़ते हैं तो लगता है थोड़ा कठिन सही पर इस रास्ते की कोई मंजिल तो है।
http://matrubharti.com/book/4470/
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-06-2016) को "मन भाग नहीं बादल के पीछे" (चर्चा अंकः2363) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteगरीब के पास उम्मीद तो है ही। उम्मीद ही रास्ते की अड़चनों को नजरअंंदाज कर आगे बढती है। एक वेहतरीन रचना । मुझे अच्छी लगी।
ReplyDeleteshukriya Manish Pratap ji
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