Thursday, August 13, 2015

गणपति उत्सव

मुंबई इंदौर से होते हुए देश के अनेक शहरों में फैले गणपति उत्सव को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस उद्देश्य से शुरू किया था कि धार्मिक माहौल में इस तरीके से लोगों को एकजुट किया जा सकता है।  ये परंपरा मुख्य रूप से आज़ादी की लड़ाई के लिए लोगों को संगठित करने और उसकी विभिन्न गतिविधियों से लोगो को परिचित करवाने के लिए थी। कालांतर में यह जन जन का उत्सव तो बना लेकिन इसका मूल उद्देश्य ही इसमें से गायब हो गया जो था एकजुटता। पहले जहाँ एक गाँव या शहर में एक गणपति विराजते थे वहीँ आज हर गली मोहल्ले में दो तीन गणपति की स्थापना होने लगी है। और तो और एक कुटुंब के हर परिवार में गणपति स्थापना होने लगी। कहीं कहीं तो घर के अंदर पूजा के लिए एक और बाहर झाँकी के लिये एक गणपति होते है जो बच्चों की जिद या बड़ों की शान का प्रतीक होते हैं। 
बड़ी संख्या में गणपति स्थापना ने मिट्टी के बजाय पी ओ पी से बनी मूर्तियों के बाज़ार को बढ़ावा दिया। कई बरस ये मूर्तियाँ नदियों तालाबों में विसर्जित की जाती रहीं और इन्हे प्रदूषित करती रहीं। अब जब पर्यावरणविदों का ध्यान इस ओर गया और इन पर रोक लगाने की माँग उठने लगी तब तक ये मूर्तिकार संगठित हो कर किसी भी बात को समझने से इंकार करने लगे। साथ ही इनकी अपेक्षाकृत कम कीमत के चलते लोग भी इन्हे खरीदने के आदि हो गए। इन मूर्तियों का विसर्जन नदी तालाब में हो या पानी की बाल्टी में पी ओ पी और रंग भूमि प्रदूषण तो करते ही हैं। 

गणपति के जन्म से दस दिन चलने वाला ये उत्सव घर में स्थापित गणपति की मूर्तियों की पूजा अर्चना के साथ भी तो मनाया जा सकता है। मूल भाव तो आराधना है।  इस तरह घर घर में स्थापित पी ओ पी की मूर्तियों में कमी आएगी जिससे उनके विसर्जन से होने वाले भूमि जल प्रदूषण को भी रोका जा सकेगा। 
कविता वर्मा 

6 comments:

  1. गणपति उत्सव की तैय्यारियां शुरू.

    ReplyDelete
  2. बहुत सार्थक सोच...

    ReplyDelete
  3. जी आपने सही कहा है यदि हम घर के गणेश जी की पूजा करते है तो पीओपी के इतने सारी मूर्ती बनाने की जरूरत नहीं होगी ।

    ReplyDelete
  4. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

    ReplyDelete
  5. बधाई हो मित्र ।Seetamni. blogspot. in

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...