उसकी सारी कोशिशे सारी जिद अनसुनी कर दी गईं। लाख सिर पटकने पर भी उसकी माँ ने उसे तैरना सीखने की अनुमति नहीं दी। मछुआरे का बेटा तैरना ना जाने , बस्ती के लोग हँसते थे पर वो डरी हुई थीं। ये समुन्द्र उनके जीवनसाथी को निगल चुका था अब वो अपने बेटे को उसके पास भेजने से भी डरती थीं।उसके साथी बच्चे जब लहरों की सवारी करते वह गुमसुम सा उन्हें देखा करता। एक दिन शायद समुन्द्र ही उसकी उदासी से पिघल गया और ऐसा बरसा कि उसके आँगन तक पहुँच गया। उसने भी कहाँ देर की कूद पड़ा उथले पानी में और लगा हाथ पैर चलाने। समुन्द्र और मछुआरे का मिलन हो ही गया।
कविता वर्मा
कविता वर्मा
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteछोटी सी कथा मगर आनंद आ गया , कविता जी सादर !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
प्राकृति अगर चाहे तो कौन रोक सकता है ...
ReplyDeleteकहानी अर्थपूर्ण है ...
अगर चाह हो तो रास्ता निकल ही आता है
ReplyDeleteसार्थक लघु कथा !
Sunder va saarthak laghu katha...
ReplyDeleteअहा! क्या बात है.. लघु में सागर समान सन्देश!
ReplyDeletebahut umda likha....... jahna chah hoti hai wahna rah bhi hoti hai..... badhai
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