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अनजान हमसफर
इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...
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बात तो बचपन की ही है पर बचपन की उस दीवानगी की भी जिस की याद आते ही मुस्कान आ जाती है। ये तो याद नहीं उस ज़माने में फिल्मों का शौक कैसे और ...
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मधु से मंदिर में मिल कर मधुसुदन को कई पुरानी बातें याद आ गयीं .कैसे उसकी मधु से मुलाकात हुई कब वो प्यार में बदली और फिर समय ने कैसी क...
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जिंदगी के हर कदम हर पड़ाव हर मोड़ पर ,घटनाओं को अलग अलग कोण से देखते हुए बहुत कुछ सीखा जा सकता है.सच तो यही है की हर घटना कुछ सिखाने के लिए ...
बधाई व शुभकामनाऐं ।
ReplyDelete"परछाइयों के उजाले" की सभी कहानियां तो मैने भी पढ़ी हैं, कई कहानी इतनी करीब से गुजर गई, लगा कि ये अपने ही इर्द गिर्द बुनी हुई तो नहीं ..कहानी के पात्र वाकई असल जिंदगी के बहुत करीब लगते हैं। पात्रों के भाव और उनके अहसास को जिस तरह प्रस्तुत किया गया है, उसकी जितनी भी प्रशंसा हो कम है। पुस्तक के बारे में कुछ भी कहने में मेरे पास शब्दों की कमी हो जाती है, खैर
ReplyDeleteराहुल खुद लेखक है, इन्होंने जिस तरह किताब की बात की है, लग रहा है मेरे मन की बात थी, जिसे आपने कह दिया। पुस्तक के लिए कविता जी को और पुस्तक की जीवंत समीक्षा के लिए राहुल को ढेर सारी शुभकामनाएं
अभी तक मैंने किताब तो नहीं पढ़ी पर राहुल जी की यह सुन्दर समीक्षा इस बात का प्रमाण है की किताब वाकई खुबसूरत है। बधाई
ReplyDeletebadhai kavita ji .
ReplyDeletebadhai kavita ji .
ReplyDeleteमेरी तरफ से भी बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई.मैं भी पढ़ना चाहती हूँ पर कैसे मिलेगी..?
ReplyDeletemubarkan...
ReplyDeletebahut-bahut shubhkamnayen.....padhke batati hun..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ !!
ReplyDeletehardik Badhayee...bahut sundar
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