Friday, April 12, 2013

मील का पत्थर

वनिता अप्रेल अंक में मेरी कहानी "परछाइयों के उजाले"...
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Tuesday, April 9, 2013

जब तुम लौटोगे




जब तुम लौटोगे 
खिले फूल बेरंग हो मुरझा चुके होंगे। 

अठखेलियाँ करती नदी थक कर 
किनारों पर सर रखे सो गयी होगी। 
तुम्हारे इंतज़ार में खड़ा चाँद 
गश खाकर गिर पड़ा होगा 
धरती और आसमान के बीच गड्ढ़ में।  

आँखों की नमी सूख चुकी होगी 
चहकते महकते कोमल एहसास 
बन चुके होंगे पत्थर। 

लेकिन तुम एक बार आना जरूर 
देखने तुम्हारे बिना 
कैसे बदल जाता है संसार। 

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...