इस साल छुट्टियों में घूमने जाने का कार्यक्रम बना अलीबाग का .वही समय की
कमी इसलिए ज्यादा दूर जा नहीं सकते.अचानक के प्रोग्राम में रिजर्वेशन
नहीं मिलता इसलिए कार से ही जाना तय हुआ.(वैसे भी न रिजर्वेशन की कोशिश की न
ट्रेन से जाने का सोचा).बस तय हुआ की शनिवार की शाम निकलेंगे रात नाशिक
में रुकेंगे .फिर आगे का कार्यक्रम..
तो शुक्रवार शाम हमने अपनी यात्रा शुरू की.नासिक ४३० किलोमीटर था सोचा
था रात १२ बजे तक पहुँच जायेंगे. लेकिन AB रोड पर इतना ट्राफिक की गाड़ी की
स्पीड ही नहीं बन पा रही थी. एक तो वीक एंड का ट्राफिक भी था. बिना रुके
चलते रहे तब भी रात के २ बज गए. अब होटल ढूंढना बड़ी टेढ़ी खीर थी इतनी रात
कोई सड़क पर था भी नहीं .होटल में लगातार बात हो रही थी लेकिन न कोई साइन
बोर्ड था न रास्ता सूझ रहा था.एक बार तो लगा की आज रात तो होटल मिलने से
रहा. एक तो मराठी नाम इतने मुश्किल थे याद करना ,की बात करते समय हा हूँ कर
देते और फिर सड़क गली के नाम भूल जाते.भगवन
को याद किया ही था की लूना से एक आदमी आता दिखा. उसे रोक कर होटल में बात
करवाई और फिर उसके पीछे पीछे होटल पहुंचे.उस समय वह व्यक्ति सच में भगवन
का भेजा दूत ही लगा.होटल में सब हमारा ही इंतजार कर रहे थे. रात १० बजे से
बात हो रही थी और हम पहुंचे रात २:३० पर. लेकिन साफ सुथरा होटल देख कर
तबियत खुश हो गयी. बस सामान रखा हाथ मुह धोया और लम्ब लेट हो गए.
बच्चों ने ट्रेवल xp पर नासिक में सुला वाइनरी देखी थी और उन्हें वहां जाना
था. रोमांच इस बात का की हम वो जगह देखेंगे जो ट्रेवल xp पर देखी है
.वैसे तो वहा उनका रेसोर्ट भी है लेकिन वहां रुकना बहुत महंगा था. इसलिए
नेट पर रुकने के लिए होटल्स ढूँढना शुरू हुआ.और जल्दी ही एक होटल मिल भी
गया. फिर अलीबाग की व्यवस्था के लिए ट्रेवल एजेंट के पास गए उसने जो
रेसोर्ट बताये वो बहुत ही महंगे थे .लौटते में पूना जाना था वहां
कजिन सिस्टर रहती हैं और जिस दिन हमारा कार्यक्रम बना उसी दिन वो लोग भी
अलीबाग में थे. जीजाजी ने कहा अरे आप लोगो की आराम से रुकने की व्यवस्था हो
जाएगी में एक दो नंबर देता हूँ . बस फिर क्या था बात बन गयी.
सुला वाइनरी दिन के ११:३० बजे खुलती
है शहर से दूर इस गर्मी में दूर दूर तक फैले अंगूर के बगीचों की हरियाली
ने मन मोह लिया. साफ सुथरी क्यारियां तरतीब से फैली बेलें .सुला में पर
पर्सन टूर का चार्ज था १५० रुपये जिसमे ४ किस्म की वाइन को टेस्ट करना
शामिल था. यहाँ जनवरी से मार्च के बीच हार्वेस्टिंग सीजन रहता है अभी तो
खेत खाली थे.पूरे टूर में हमारे गाइड ने अंगूर तोड़ने उसके संग्रहण से लेकर
विभिन्न तरह की वाइन बनाने की पूरी प्रक्रिया हमें समझाई. उसके स्वाद और
रंग के लिए किये जाने वाले ट्रीटमेंट से लेकर बोटलिंग तक सब हमने देखा. फिर
हम पहुंचे टेस्टिंग रूम. वहां से बिना परमिट के २ लीटर और परमिट पर ९ लीटर वाइन खरीद सकते
थे.जब सुला से बाहर निकले एक नयी जगह नयी चीज़ देखने की संतुष्टि थी.
आगे का सफर था अलीबाग का जो यहाँ से
करीब ३०० किलोमीटर था. खाना खा कर सफ़र शुरू हुआ. हालाँकि रास्ता अच्छा था
लेकिन बिना डिवाइडर ओर वीक एंड के ट्राफिक में गाड़ी चलाना वाकई मुश्किल
था.बहुत कोशिश करके भी एवरेज स्पीड ५५-६० से ज्यादा नहीं आ पा रही थी.
रास्ते में होटल से फ़ोन आया की हम आ रहे है या नहीं?या हमारा रूम किसी को
दे दिया जाये. हमने भरोसा दिलाया की नहीं हम आ रहे है और ९ बजे तक
पहुंचेंगे. दरअसल अभी तक सिर्फ फोन पर बात हुई थी और हमने कोई डिपोसिट
नहीं दिया था.सारा काम विश्वास पर चल रहा था.वहां भी भाषा की समस्या सामने
आयी. रास्ते में किसी और से फ़ोन पर बात करवाई तब ढूँढते हुए हम अपने
रेसोर्ट पहुंचे.
अलीबाग पुरानी बस्ती है और वहां के
बीच अभी नए नए डेवेलप हो रहे है वहां के रहवासी अपने पुराने घरों के ही एक
हिस्से को तुडवा कर या रिनोवेट करवा कर उसे रेसोर्ट का रूप दे रहे है. ये
लोग बहुत प्रोफेशनल नहीं हैं .उन्ही के किचन में खाना बनता है, जब
हम पहुंचे तो वहां रेसोर्ट के मेनेजर के नानाजी आये हुए थे. वो कहने लगे
आपने बहुत देर कर दी. आप लोगों ने कोई डिपोजिट भी नहीं किया था ऐसे कैसे
भरोसे पर सामने आये कस्टमर को लौटा दें वगैरह वगैरह. हमारे दो रूम तो बुक
थे लेकिन वो अगल बगल में न हो कर अलग अलग मंजिल पर लेकिन आमने सामने थे.
खैर वहां का पूरा माहौल घरेलू था इसलिए चिंता नहीं हुई. बेटियों ने झट
फर्स्ट फ्लोर का रूम ले लिया . बस नहा के फ्रेश हुए तब तक खाना लग गया ओर
खाना खा कर हम अगले दिन की प्लानिंग के साथ सो गए .
देर रात तक गाड़ियों के शोर सुनाई
देते रहे ओर सुबह चार बजे से फिर गाड़ियाँ. आखिर ६ बजे सब उठ ही गए बीच पर
जाने को तैयार.समुद्र तो बच्चों ने पहले भी देखा था लेकिन इस बार तय्यारी
लहरों के साथ खेलने की थी. बच्चे तो तुरंत पानी में पहुँच गए और में
किनारे पर खड़ी समुद्र की विशालता और उसके सामने इन्सान की...खैर विचार
कहाँ पीछा छोड़ते है .
नागांव बीच अलीबाग का नया विकसित हो
रहा बीच है .साफ सुथरा रेतीला किनारा दूर दूर तक फैला है .यहाँ वाटर
स्पोर्ट्स भी है तेज़ रफ़्तार से पानी में चलने वाली बाइक, बनाना
राइड,वेलोसिटी राइड .अथाह पानी में इतनी तेज़ गति से जाना रोमांचक भी था और
डराने वाला भी .थोड़ी देर तो में
दूर खड़ी लहरों को देखती रही बच्चों के फोटो लेती रही लेकिन फिर सबने मिल
कर मुझे भी पानी में खींच ही लिया. बड़ी छोटी लहरें उनमे डूबना उतराना.लहर
आने पर जम्प लगाना .धूप तेज़ थी लेकिन पानी में महसूस नहीं हो रही थी. हम
करीब दो घंटे पानी में रहे लेकिन ठण्ड भी नहीं लगी. इसकी बजाय अगर दो घंटे
किसी नदी में रहते तो सब ठिठुरने लगते. उस दिन बच्चों ने बाइकिंग की जब
तक वो पानी में रहे एक पल को नज़रें उन पर से नहीं हातीं.हालाँकि वो इतनी
दूर थे की न तो उन तक आवाज़ पहुँच सकती थी न ही कोई मदद.
nagao beech |
जब समय को पकड़ने की कोशिश न की जाये
या उसे किसी सीमा में बांधा न जाये तो वह भी अपने पूरे विस्तार के साथ
आपके साथ होता है. हमने जितना भी समय वहां गुजारा वह अपने पूरे विस्तार के
साथ हमें मिला न कहीं जाने की हड़बड़ी न कोई काम ख़त्म करने की चिंता. इन २-३
घंटों में जैसे सिर्फ समुद्र का विस्तार लहरों की मौज हमारे साथ थी.जिसके
सामने चिंता फिक्र काम सब लहरों के साथ रेत से बह गए थे. मन प्रफुल्लित था
इसलिए कोई थकावट नहीं थी .
रेसोर्ट पहुँच कर नहाया नाश्ता किया
उसके बाद क्या किया जाये? तभी याद आया आज तो सत्य मेव जयते आने वाला है
.बहुत सालों बाद ऐसा लगा जैसे रामायण के युग में ( धारावाहिक ) पहुँच गए
हैं. जब ९ बजते ही सब काम धाम छोड़ कर टीवी के सामने बैठ जाते थे. ब्रेक में
दिन की प्लानिंग होने लगी. आते हुए हम कल्याण से निकले थे.वहां के मार्केट
में खरीदी की बहुत इच्छा थी लेकिन अंजान जगह समय से पहुंचना ही ठीक है ये
सोच कर नहीं रुके थे. इसलिए बच्चों का मन था मुंबई जा कर शौपिंग की जाये.
लेकिन वहा से ४० कम दूर से फेरी मिलती और वहां तक जाना वो भी सन्डे के
ट्राफिक में मन नहीं हुआ. जैसे तैसे उन्हें समझाया की पापा कब से ड्राइव कर
रहे है आज उन्हें आराम करने दो अभी पुणे जाना है वहां देखते हैं.
थकान कोई खास नहीं थी इसलिए ३ बजते
बजते सब उठ गए.अब भूख लगी थी रेसोर्ट का मेस तो बंद हो गया था .अलीबाग के
एक रेस्टारेंट में खाना खाया और वही से वर्सोली बीच चले गए सन सेट देखने
.देर तक रेत में टहलते रहे ओर सन सेट के बाद भी देर तक वहीँ बैठे रहे. भूख
कोई खास नहीं थी इसलिए मार्केट से कुछ हल्का फुल्का बेकरी आइटम ले लिया
ताकि रात में जरूरत हो तो खाया जा सके. सन्डे की रात रेसोर्ट पूरा खाली
हो चूका था. सड़क बिलकुल शांत थी.थोड़ी देर गपशप करके टी वी देखा फिर अगले
दिन किस किस राइड पर जाना है ये प्लानिंग करके सो गए. (क्रमश )
छुट्टी,अलीबाग,यात्रा ,समुद्र
गर्मी की छुट्टियों का वाकई बढिया इस्तेमाल किया आपने..
ReplyDeleteरोचक यात्रा वृतांत, बस अगली यात्रा मेरी भी अलीबाग... चीयर्स
This comment has been removed by the author.
Deleteखुबसूरत साथ हो , मन तंग न हो और परिवार का साथ ऐसी यात्रा को अविस्मरनीय बना देती है .
ReplyDeleteइश्वर यात्रा को रोचक बनाये रखे शुभकामनाओं सहित . सुन्दर चित्रों सहित संस्मरण यात्रा की ........
बढिया यात्रा वृत्तांत…………सुला वाइनरी कभी हम भी जाना चाहेगें।
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा वर्णन ! चित्र लगाये ज्यादा -हमें भी आनंद मिलेगा !
ReplyDeleteबहुत मस्त यात्रा वृतांत...मज़ा आया पढ़ कर...
ReplyDeleteनीरज
आनंद आ गया...अलीबाग की सैर का...खूबसूरत यात्रा वृतांत...
ReplyDeleteअलीबाग नया नाम है मेरे लिए ।। yatra ka var nan bahut ruchikar laga....
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