Thursday, January 19, 2012

याद


गली के मुहाने पर
 बंद सा एक मकान 
अपनी खामोश उदासियों 
में भीगा सा 
जाने क्यूँ पुकारता रहा मुझे 
बरसों पहले 
उसके बंद कपाटों से 
आती महक 
तेरा जिक्र होते ही 
फिर छा गयी .

16 comments:

  1. ओह ये यादें भी पीछा नहीं छोडतीं

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  2. कविता जी ! इस याद को बार - बार पढ़ा और मन में एक हलचल सी रही ! बंद कपाट , महक और वर्षों पहले , सब कुछ उद्वेलित कर दे रहा है !

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  3. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति ..

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  5. वाह बेहतरीन अभिव्यक्ति ....

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  6. यादों की ख़ुश्बू...

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  7. यादों की महक...
    बहुत सुन्दर..

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  8. यादो का सुहाना सफर

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  9. बेहतरीन !

    यादों की ये महक जीवन भर उस कसक को बनाए रखती है।

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  10. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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