गली के मुहाने पर
बंद सा एक मकान
अपनी खामोश उदासियों
में भीगा सा
जाने क्यूँ पुकारता रहा मुझे
बरसों पहले
उसके बंद कपाटों से
आती महक
तेरा जिक्र होते ही
फिर छा गयी .
इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...
ओह ये यादें भी पीछा नहीं छोडतीं
ReplyDeletesangeeta ji bahut abhar ...
Deleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
कविता जी ! इस याद को बार - बार पढ़ा और मन में एक हलचल सी रही ! बंद कपाट , महक और वर्षों पहले , सब कुछ उद्वेलित कर दे रहा है !
ReplyDeleteBEHTARIN
ReplyDeleteअच्छी कविता,
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteवाह बेहतरीन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteयादों की ख़ुश्बू...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteयादों की महक...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
यादो का सुहाना सफर
ReplyDeleteबेहतरीन !
ReplyDeleteयादों की ये महक जीवन भर उस कसक को बनाए रखती है।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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