Wednesday, December 21, 2011

बस यूँ ही ....



देर रात तक तारों संग ,
खिलखिलाने को जी चाहता है.
चांदनी के आँचल को खुद पर से,
 सरसराते गुजरते जाने को जी चाहता है. 
पीपल की मध्धिम परछाई से छुपते छुपाते ,
खुद से बतियाने को जी चाहता है. 
चलते देखना तारों को ओर खुद ,
ठहर जाने को जी चाहता है .
रात के सन्नाटे में पायल की आहट दबाते,
 नदी तक जाने को जी चाहता है .
दिल में छुपा कर रखे अरमानों को ,
खुद को बताने को जी चाहता है. 
तेरी मदहोश कर देने वाली बातों को सुन,
 जी जाने को जी चाहता है 
तू नहीं आस पास फिर भी ,
तेरे होने के एहसास को ओढ़
 सो जाने को जी चाहता है .
कविता वर्मा 

9 comments:

  1. बहुत सुंदर, क्या कहने

    चलते देखना तारों को ओर खुद ,
    ठहर जाने को जी चाहता है .

    और

    तेरे होने के एहसास को ओढ़
    सो जाने को जी चाहता है .

    सुंदर अहसासों को आपने बहुत ही अच्छी तरह शब्दों में बांधा है। बहुत बहुत शुभकामनाएं..

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  2. दिल में छुपा कर रखे अरमानों को ,
    खुद को बताने को जी चाहता है.
    तेरी मदहोश कर देने वाली बातों को सुन,
    जी जाने को जी चाहता है
    तू नहीं आस पास फिर भी ,
    तेरे होने के एहसास को ओढ़
    सो जाने को जी चाहता है .
    सुंदर अहसास...शुभकामनाएं..

    ReplyDelete
  3. तू नहीं आस पास फिर भी ,
    तेरे होने के एहसास को ओढ़
    सो जाने को जी चाहता है .

    ....बहुत कोमल अहसास...ख्वाहिशों का बहुत भावपूर्ण चित्रण...बहुत सुंदर

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  4. सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  5. sundar

    http://rhythmvyom.blogspot.com/

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  6. ,
    तेरे होने के एहसास को ओढ़
    सो जाने को जी चाहता है .

    prabhavshali rachana ..abhar

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