देर रात तक तारों संग ,
खिलखिलाने को जी चाहता है.
चांदनी के आँचल को खुद पर से,
सरसराते गुजरते जाने को जी चाहता है.
पीपल की मध्धिम परछाई से छुपते छुपाते ,
खुद से बतियाने को जी चाहता है.
चलते देखना तारों को ओर खुद ,
ठहर जाने को जी चाहता है .
रात के सन्नाटे में पायल की आहट दबाते,
नदी तक जाने को जी चाहता है .
दिल में छुपा कर रखे अरमानों को ,
खुद को बताने को जी चाहता है.
तेरी मदहोश कर देने वाली बातों को सुन,
जी जाने को जी चाहता है
तू नहीं आस पास फिर भी ,
तेरे होने के एहसास को ओढ़
सो जाने को जी चाहता है .
कविता वर्मा
बहुत सुंदर, क्या कहने
ReplyDeleteचलते देखना तारों को ओर खुद ,
ठहर जाने को जी चाहता है .
और
तेरे होने के एहसास को ओढ़
सो जाने को जी चाहता है .
सुंदर अहसासों को आपने बहुत ही अच्छी तरह शब्दों में बांधा है। बहुत बहुत शुभकामनाएं..
Achchhi chahat hai - :)
ReplyDeleteदिल में छुपा कर रखे अरमानों को ,
ReplyDeleteखुद को बताने को जी चाहता है.
तेरी मदहोश कर देने वाली बातों को सुन,
जी जाने को जी चाहता है
तू नहीं आस पास फिर भी ,
तेरे होने के एहसास को ओढ़
सो जाने को जी चाहता है .
सुंदर अहसास...शुभकामनाएं..
खूबसूरत चाहत
ReplyDeleteतू नहीं आस पास फिर भी ,
ReplyDeleteतेरे होने के एहसास को ओढ़
सो जाने को जी चाहता है .
....बहुत कोमल अहसास...ख्वाहिशों का बहुत भावपूर्ण चित्रण...बहुत सुंदर
bahut sunder rachna ......
ReplyDeleteसुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeletesundar
ReplyDeletehttp://rhythmvyom.blogspot.com/
,
ReplyDeleteतेरे होने के एहसास को ओढ़
सो जाने को जी चाहता है .
prabhavshali rachana ..abhar