मम्मी मम्मी कल स्कूल में रेशम की राखी बनाना सिखायेंगे ,मुझे रेशम का धागा दिलवा दो ना.
बिटिया की बात सुनकर सीमा अपने बचपन के ख्यालों में खो गयी .दादी ने उसे रेशम के धागे से राखी बनाना सिखाया था .चमकीले रेशम की सुंदर राखी जब उसने सितारों से सजा कर अपने भाई की कलाई पर बाँधी थी तो उसके भाई ने भावावेश में उसे गले लगा लिया था. लेकिन रेशम की डोर में गाँठ टिकती ही नहीं थी .राखी बार बार खुल जाती और भाई बार बार उसके पास आकर राखी बंधवाता रहा .तब एक बार झुंझलाकर उसने दादी से कहा था -दादी इसकी डोरी बदल दो ना इसमें गाँठ टिकती ही नहीं.
दादी ने मुस्कुरा कर कहा था -बेटा रेशम की डोर इसीलिए बाँधी जाती है ताकि भाई बहनों के रिश्ते में कभी कोई गाँठ ना टिके .छोटी सी बच्ची सीमा ऐसी बात कहाँ समझ पाती?
समय बदला हाथ से बनी राखी की जगह बाज़ार में बिकने वाली सुंदर सजीली महँगी राखियों ने ले ली .अब राखी के दाम के अनुसार उन्हें कलाई पर टिकाये रखने के लिए सूती डोरियाँ और रिबन लगाने लगे .जिसमे मजबूत गाँठ लगती है और राखियाँ लम्बे समय तक कलाई पर टिकी रहती है .
ऐसी ही एक गाँठ सीमा ने अपने मन में भी बाँध ली थी जो समय के साथ सूत की डोरी की गाँठ सी मजबूत होती जा रही थी .भाई बहन के स्नेह के बीच फंसी वह गाँठ समय के साथ सूत की डोरी की गाँठ सी मजबूत होती जा रही थी .उसकी कसावट और चुभन के बीच भाई बहन का रिश्ता कसमसा रहा था लेकिन वह गाँठ खुल नहीं पा रही थी. आज बेटी के बहाने उसे राखी का उद्देश्य फिर याद आ गया .
मम्मी मम्मी बिटिया की आवाज़ सीमा को यथार्थ में खींच लाई . में हरी लाल और पीली राखी बनाउंगी .
हा बेटा तुम्हे जो भी रंग चाहिए में दिलवाउंगी ,और एक राखी में भी बनाउंगी .रेशम की डोर वाली अब कहीं और कोई गाँठ नहीं रहने दूँगी .सीमा ने जैसे खुद से कहा और बाज़ार जाने को तैयार होने लगी.
कविता वर्मा
बहुत बढिया !!
ReplyDeleteसमय बदला हाथ से बनी राखी की जगह बाज़ार में बिकने वाली सुंदर सजीली महँगी राखियों ने ले ली
ReplyDeleteजैसे ही राखियों के बनने का प्रचलन बदला ...वैसे ही रिश्तों की आत्मीयता भी बदल गयी ......! आपने बहुत सटीक तरीके से अपने मन की बात को राखी के माध्यम से हम तक पहुँचाया है .....आपका आभार
हाँ इधर सूत के धागे प्रयोग में लाये जा रहे हैं...लोग इनके शुभ होने की बात मानते हैं...पर रेशम के धागों का मतलब आपने बखूबी बता दिया...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति ... मन की गांठें जल्दी ही खुल जाएँ तो निशाँ भी नहीं रहते .
ReplyDeleteवाह बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं….!
जय हिंद जय भारत
कोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteकल 17/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
कविता जी,सही ही कहा है दादी ने.रेशम के डोर सरीखी ही कोमल होती है रिश्तों की डोर.मन को भावुक करती रचना.
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबेटा रेशम की डोर इसीलिए बाँधी जाती है ताकि भाई बहनों के रिश्ते में कभी कोई गाँठ ना टिके ...........एक अन्यी बात पता चली..आज .आपका शुक्रिया !
ReplyDeleteबहुत अच्छी लघु कथा ...बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रेरक लघुकथा
ReplyDeleteसुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
आप से निवेदन है इस लेख पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दे!
ReplyDeleteतुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा
एक सुंदर प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति... आभार...
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteभाई बहन के रिश्ते इसी तरह बिन गांठ बनी रहे ! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसच है रिश्तों में कोई गाँठ नहीं होनी चाइये ... बदलते समय में रिश्ते दूर हो रहे हैं .. बचाना होगा उन्हें ...
ReplyDeleteवाह ! रेशम की डोर की बहुत सार्थक व्याख्या की है।
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