Saturday, July 24, 2010

भारतीय संस्कृति में शादी में लेन-देन का प्रचलन बहुत अधिक है,और ये कभी कभी लालच की हद तक जा पहुँचता है.जब भी इस बारे में घर में बाते होती है वो इस रूप में होती है जैसे लड़के वाले ज्यादा से ज्यादा हडप कर लेना चाहते है ,उनके रिश्तेदार ज्यादा सयानापन दिखा रहे है,इसी तरह शादी के रिसेप्शन के खर्चे,गहनों कपड़ो पर होने वाला खर्च आदि के बारे में बाते सहज रूप में न हो कर एक आक्षेप के रूप में होती है । जहा घर के लोग इन्हें सहज लेते है वहा रिश्तेदार बाल की खाल निकल कर सहज रिश्तों को तनाव का रूप देने से नहीं चूकते,लड़की जिस घर में पली-बड़ी है उस से उसका लगाव स्वाभाविक है ,जब वो इन बातों के लिए अपने परिवार को परेशान होते देखती है उसके मन में ससुरालवालों के लिए एक दुर्भावना आ जाती है ,शादी के बाद भी वो इन बातों से ही घर के व्यवहार को जोड़ कर देखती है जो पूर्वाग्रह के रूप में नज़र आती है ।

2 comments:

  1. जहा घर के लोग इन्हें सहज लेते है वहा रिश्तेदार बाल की खाल निकल कर सहज रिश्तों को तनाव का रूप देने से नहीं चूकते।

    चाय से ज्यादा गर्म केटली होती है।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साह बढाती है।
सार्थक टिप्पणियों का सदा स्वागत रहेगा॥

अनजान हमसफर

 इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। ग...