पंद्रह अगस्त आते ही लोगो में देश भक्ति की लहर दौड़ने लगती है। देश के भ्रष्ट नेतायों को,सड गए तंत्र को,कोसने का सिलसिला शुरू हो जाता है.और ये सब इतने खुले आम होता है की वाकई लगता है हम एक स्वत्रंत देश के स्वतंत्र नागरिक है,जब जहाँ चाहे जो चाहे जब चाहे कह सकते हैं। प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रोनिक मीडिया सभी और देश के हालत को कोसने का ,और भ्रष्टाचार को नेताओ की देन बताने का सिलसिला।
आइये याद करे अपने बचपन को .जब हम छोटे थे क्या कभी हमने भ्रष्टाचार का नाम सुना था?क्या इसका इतना प्रचार किया जाता था?देश के नेता बेशक सही मायने में लीडर थे ,उनकी एक साफ सुथरी छवि थी ,उनकी इज्जत थी ,और हम उन पर यकीन करते थे,सिस्टम पर भरोसा करते थे। तो आज इतनी पुरानी बात करने का क्या औचित्य?
आइये बताती हूँ
छोटे बच्चे क्लास ५-६ के,अंतर विद्यालय गायन प्रतियोगिता में भाग लेने गए,नहीं जीत पाए,कोई और स्कूल जीत गया ,अब बच्चों की बातें सुनिए,मेम उस स्कूल के प्रिंसिपल और जजेस की बहुत अच्छी दोस्ती है ,जब भी फलाने स्कूल के प्रिंसिपल जज होते है ,वही स्कूल जीतता है ,मैंने कहा नहीं बेटा ऐसा नहीं है उन बच्चों ने वाकई बहुत अच्छा गाया था इसलिए वो जीते,पर बच्चों के मन से इस बात को निकलना और उनकी खुद की कमियों की और उनको देखने के लिए प्रेरित करना बहुत मुश्किल काम था ।
childran'स डे पर बच्चों को फिल्म दिखने का विचार हुआ,पर निर्णय लेते देर हो गयी ,हम दो तीन टीचर इस बारे में बात कर ही रहे थे की बुकिंग मिलेगी या नहीं ,तभी एक बच्चा बोला मेम उस थिएटर के मालिक मेरे पापा के दोस्त है उनसे कह कर बुकिंग करवा लेते है। (१०-११ साल के बच्चे जान पहचान का महत्त्व समझते है ,सोचते है जान पहचान है तो हर काम हो जायेगा ,चाहे कितना भी मामूली काम क्यों न हो खुद कोशिश करने के बजाय जान पहचान से काम क्यों न निकलवा लिया जाये)।
छुट्टियाँ लगने से पहले बच्चों से पूछा कौन कहा जा रहा है ?बच्चे उत्साहित थे सब अपने-अपने प्लान बता रहे थे,तभी एक बच्चा बोला में सिक्किम जाऊंगा,मैंने कहा मुझे भी जाना है पर अब रेसेर्वाशन नहीं मिलेगा,बच्चे चिल्लाये नहीं मेम आप किसी एजेंट के पास जाइये उनके पास रहते है ,थोड़े पैसे ज्यादा लेते है पर १००% मिल जाता है,हम तो दो घंटे में प्लान बना कर कही भी चले जाते है। (बच्चे के ज्ञान पर अचंभित में सोचने लगी क्या ये बच्चे कभी सीधे तरीके से जिंदगी में कोई काम करना चाहेंगे?)।
पैसे लेकर देकर कोई काम करवाना,किसी की जीत में किसी और का हाथ देखना ,किसी की हार में किसी का हाथ देखना,हर काम का शोर्टकट ढूँढना ,हर अधिकारी कर्मचारी को पैसे लेने देने में उस्ताद समझना ,हर सरकारी तंत्र को आँख मूँद कर बेकार नाकारा समझाना हर नेता को बिकाऊ समझना ,ये सभी बाते हमने अभिव्यक्ति की स्वत्रंतता की आड़ में नयी पीढ़ी के मन में कूट-कूट कर भर दी है ,इस पर हम चाहते है की युवा पीढ़ी इमानदार हो ,मूल्यों और संस्कारों का पालन करे,सिस्टम को इमानदार तरीके से चलने में अपना योगदान दे । क्या हमें नहीं लगता की हम हर समय गलत धुन्धने के कुछ सही ढूंढें और उसका प्रचार ज्यादा करे जिससे नयी पीढ़ी को ये विश्वास हो की हमारे देश में बहुत कुछ अच्छा भी है,क्या आज़ादी की सालगिरह पर हमें हमारी मानसिकता को भ्रष्ट होने से बचाने की जरूरत नहीं है ।
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wah.......dekhiye hamare bachhe jo shiksha paa rahe hain usse jyada jo tathakathit khulapan hamare samaj main unko dekhne ko mil raha hai wo usi ka pratinidhitva kar rahen hai.........
ReplyDeleteits good start
ReplyDeletelets we promise we will not chose any shortcut ,we give our child to right suggestion
बात तो आपने सही कही है मगर क्या आज ऐसा संभव है………जैसे हालात हैं उनमे बच्चों को सिखाना नही पडता खुद-ब-खुद सीख जाते हैं…………जब तक ऊपर से बदलाव नही होगा तब तक ऐसा ही होता रहेगा।
ReplyDeleteकाफ़ी विचारणीय आलेख ।
जय हिंद ।
वन्दे मातरम्।
यहाँ भी देखें…… http://redrose-vandana.blogspot.com
कविता जी, उसदिन बिजली चली गयी थी तो आपको धन्यवाद भी नहीं दे सका। आज धन्यवाद कबूल करें।
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
Satya wachan kavita ji..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया व सार्थक प्रस्तुती ...
ReplyDeleteनिहायत उम्दा आलेख, स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteरामराम.
विचारणीय!
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
vishay vastu sochne ko majboor karti hai,,,,sunder template ke sath badhiya rchna ......
ReplyDeleteबहुत ही गंभीर बात को उठाया है आपने.. आम जिन्दगी में किस कदर प्रतक्ष या परोक्ष रूप से भ्रस्ताचार पसर रहा है.. घर कर रहा.. दिलो दिमाग पर हावी हो रहा है.. बच्चों तक को प्रभावित कर रहा है.. आपने बहुत सहजता से प्रस्तुत किया है.. विचारनीय रचना !
ReplyDeletebahut sahi kaha hai aapne! aam tarike se kaam karne kee koi sochta hi nhi in dino! humari maansikta me bhrastachar samata jaa raha hai! aadarsh aalekh
ReplyDeleteइतना आसान नहीं, मानसिकता को भ्रष्ट होने से बचाना!
ReplyDeleteऔर मैं अपने अनुभवों से तो यही कहूंगा कि जैसा माहौल हमारे चारों और वैसे में अगर बच्चे दब्बू बने रहे तो दुनियां में जी पाना मुश्किल हो जायेगा।
sagarji aapki bat bilkul sahi hai,shayd yahi sikke ka doosara pahloo hai....
ReplyDeletebharstachar ke khilaph aapke sujhav srahniye h .aap dhanywad ke patr h .
ReplyDeleteFeeling vibrations to see a few lines on Corruption. My God where and what is our destination. Truth and transprency is not in sight. It appears everyone has accepted the funds of corruption.
ReplyDeleteviveksharma
बच्चा कच्ची मिटटी समकक्ष होता है और जैसे कुम्हार उसे घड़ता है वैसे ही वातावरण शिशु को घड़ता है। दुर्भाग्य से इस देश की हवाओं ने भ्रष्टाचार को वैधानिकता की मान्यता दे दी है जिसका बिना जंगलराज मिट पाना सम्भव नहीं।
ReplyDeleteबच्चा कच्ची मिटटी समकक्ष होता है और जैसे कुम्हार उसे घड़ता है वैसे ही वातावरण शिशु को घड़ता है। दुर्भाग्य से इस देश की हवाओं ने भ्रष्टाचार को वैधानिकता की मान्यता दे दी है जिसका बिना जंगलराज मिट पाना सम्भव नहीं।
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