रोज़ की तरह सुबह घर से स्कूल जाते हुए रास्ते में बनने वाले एक घर को देखती। वहां देखभाल करने वाले चौकीदार के परिवार में दो छोटे -छोटे बच्चे भी हैं जो सड़क पर खेलते रहते हैं .जब भी कोई गाड़ी निकलती उनकी माँ उन बच्चों को किनारे कर लेती .वहां से गुजरते हुए चाहे कितनी भी देर क्यूँ न हो रही हो गाड़ी की गति धीमी कर लेती.पता है बच्चे सड़क पर ही खेल रहे होंगे.हमेशा उनकी माँ को ही उनके साथ देखा.आज सुबह दोनों बच्चे सड़क पर बैठे थे उनकी माँ वहां नही थी पर उनके पिता पास ही खड़े थे। जैसे ही गाड़ी का हार्न बजा पिता ने गाड़ी की और देखा और तुंरत ही उनकी नज़र बच्चों की तरफ़ घूम गई ।बच्चों को किनारेबैठा देख कर वह फ़िर बीडी पीने में मशगूल हो गया। लापरवाह से खड़े पिता की ये फिक्र मन को छू गई।
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अनजान हमसफर
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भास्कर मधुरिमा पेज़ २ पर मेरी कहानी 'शॉपिंग '… http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/19022014/mpcg/1/
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आईने में झांकते देखते अपना अक्स नज़र आये चहरे पर कुछ दाग धब्बे अपना ही चेहरा लगा बदसूरत ,अनजाना घबराकर नज़र हटाई अपने अक्स से और देखा...
आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteNice observation. Succinct presentation.
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